पंचायतों को गतिमान करने का महा अभियान

Edited By ,Updated: 26 May, 2019 05:19 AM

great campaign to mobilize panchayats

भारतीय शासन व्यवस्था की मूल इकाई ग्राम पंचायत मानी गई है। प्राचीन भारतीय राजतंत्र में भी ऐसी व्यवस्थाएं देखने को मिलती थीं। महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता से पूर्व उसी पारम्परिक पंचायत तंत्र की कल्पना देश के समक्ष प्रस्तुत की थी। स्वतंत्रता के 45...

भारतीय शासन व्यवस्था की मूल इकाई ग्राम पंचायत मानी गई है। प्राचीन भारतीय राजतंत्र में भी ऐसी व्यवस्थाएं देखने को मिलती थीं। महात्मा गांधी ने भी स्वतंत्रता से पूर्व उसी पारम्परिक पंचायत तंत्र की कल्पना देश के समक्ष प्रस्तुत की थी। स्वतंत्रता के 45 वर्ष बाद 1992 में पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी। इसके लिए भारत के संविधान में 73वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद-243 को जोड़कर पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी जबकि राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश तथा महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में यह व्यवस्था संविधान संशोधन से पूर्व ही कार्य कर रही थी। 

इस नई व्यवस्था में प्रत्येक जिले के अंदर पंचायत की कार्यप्रणाली को तीन स्तरों में विभाजित किया गया। प्रत्येक गांव के स्तर पर एक सरपंच और कुछ सदस्यों को 5 वर्ष के लिए चुना जाता है जिसे ग्राम पंचायत कहा जाता है। इसके ऊपर ब्लॉक स्तर पर गठित पंचायती राज इकाई को पंचायत समिति या ब्लाक समिति कहा जाता है।

यह ब्लॉक समिति तहसील स्तर पर कार्य करती है जिसे कुछ राज्यों में मंडल या ताल्लुका शब्दों से सम्बोधित किया जाता है। इस पंचायत समिति में पंचायत समिति सदस्यों और पंचायत समिति अध्यक्ष के अलावा स्थानीय सांसद और विधायक तथा एस.डी.ओ. मनोनीत सदस्य होते हैं। यह पंचायत समिति भी 5 वर्ष के लिए चुनी जाती है। जिले की सभी तहसीलों को मिलाकर एक जिला परिषद बनती है जिसमें जिला परिषद सदस्य और अध्यक्ष के अलावा जिला कलैक्टर, सांसद और जिले के सभी विधायक तथा विशेष रूप से मनोनीत कुछ सदस्य होते हैं।

राजनीतिक तंत्र की मूल इकाई
गांव स्तर पर कार्य करने वाली ग्राम पंचायत वास्तव में देश के राजनीतिक तंत्र की मूल इकाई है। गांव के अंदर विकास का प्रत्येक कार्य करने का दायित्व इसी ग्राम पंचायत का होता है। ग्राम पंचायत को कोष एकत्र करने के सीमित साधन प्राप्त होते हैं। वास्तव में राज्य सरकार द्वारा आबंटित कोष ही ग्राम पंचायत के लिए धन का स्रोत बनते हैं। ग्राम पंचायत यदि चाहे तो अपने बल पर भी कोष का निर्माण कर सकती है। राज्य सरकार से प्राप्त धन जिला परिषद को प्राप्त होते हैं और वहां से तहसील स्तरीय पंचायत समिति के माध्यम से ग्राम पंचायत तक पहुंचते हैं। इस प्रकार ग्राम पंचायतों को धन और साधनों की प्राप्ति के लिए पंचायत समितियों और जिला परिषदों से ही आशा करनी पड़ती है। 

ग्राम पंचायतें यदि अपने दायित्व को पूरे व्यापक रूप में समझें तो ग्राम पंचायत का काम किसी राज्य सरकार या केन्द्र सरकार को चलाने की तरह ही होगा, बेशक ग्राम पंचायत के कार्यों का स्तर और स्वरूप बहुत छोटा दिखाई देता है। गांव में सड़कों, नालियों और छोटे पुलों के निर्माण से लेकर जल प्रबंध, शिक्षा, चिकित्सा की सुविधाएं उपलब्ध कराना और भाईचारे को बनाए रखना, गांव में उद्योगों की स्थापना से ग्रामवासियों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना, खेती तथा पशुपालन के क्षेत्रों में किसानों के लिए हर प्रकार की सुविधा और सहायता का प्रबंध करना, केन्द्र और राज्य सरकारों की समाज कल्याण योजनाओं का लाभ ग्रामवासियों को उपलब्ध कराना, युवाओं को स्वरोजगार में सहायता करना तथा विभिन्न प्रकार की को-ऑप्रेटिव संस्थाओं का निर्माण करके गांव के प्रत्येक पक्ष को समृद्ध बनाना ग्राम पंचायतों का ही दायित्व है।

पंचायतें यदि जागरूक हों तो गांववासियों में नैतिकता और आध्यात्मिकता का रुझान पैदा करके आपसी भाईचारे की एक मजबूत नींव तैयार कर सकती हैं। गांव के बच्चों के लिए अक्सर उच्च शिक्षा एक स्वप्न की तरह दिखाई देती है। पंचायतें यदि गतिमान हों तो निकट या दूर के शहरों में गांव के हर बच्चे की उच्च शिक्षा की व्यवस्था सरलतापूर्वक कर सकती हैं। भारत की पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं जिसका उद्देश्य विकास के हर कार्य में महिलाओं को बराबर की भागीदारी प्रदान करना है। प्रत्येक गांव का सरपंच यदि इन सारे कार्यों को अपने दायित्व के रूप में समझ ले और स्वीकार कर ले तो इन कार्यों को करने का मार्ग तलाश करना उसके लिए असम्भव नहीं होगा, बेशक उसे इस कार्य में अच्छी मेहनत और समझदारी का परिचय देना होगा। 

सरपंच का दायित्व 
मेरी दृष्टि में सरपंच का दायित्व राज्य के मुख्यमंत्री या देश के प्रधानमंत्री के समान ही है, अंतर केवल कार्य करने के स्तर का है। मुख्यमंत्री अपने राज्य स्तर पर विकास की हर सुविधा को जुटाने के लिए प्रयासरत रहता है और प्रधानमंत्री देश के स्तर पर इसी उद्देश्य से कार्य करता है। मुख्यमंत्री राज्य के अंदर से प्राप्त होने वाली आय के स्रोतों को बढ़ाने के साथ-साथ बाहर से उद्योगपतियों को निवेश के लिए आमंत्रित करता है और केन्द्र सरकार से अधिकाधिक धन प्राप्त करने का प्रयास करता है। प्रधानमंत्री भी इसी प्रकार देश के अंदर और बाहर से विकास के साधनों को जुटाने के लिए प्रयासरत रहता है। ठीक इसी प्रकार ग्राम पंचायतों को भी अपने दायित्वों को निभाने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तरह सोच पैदा करनी चाहिए। 

पंजाब केसरी सहायता सामग्री वितरण टीम के साथ अनेकों गांवों का दौरा करने और सरपंचों से वार्ता के बाद मैंने यह महसूस किया है कि ग्राम स्तर के इन नेताओं ने अभी अपनी शक्ति को पूरी तरह नहीं पहचाना। सरपंचों तथा अन्य सदस्यों की क्या योग्यताएं होनी चाहिएं? ग्राम स्तर के इन निर्वाचित प्रतिनिधियों के दायित्व और अधिकार क्या हैं? उन्हें पंचायती राज व्यवस्था की मूल भावनाओं से अवगत रहकर जिला तथा राज्य स्तर के अधिकारियों के साथ किस प्रकार वार्तालाप स्थापित करने हैं? गांवों के चहुंमुखी विकास के लिए बड़े-बड़े उद्योगपतियों, दानियों तथा विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों से सहयोग कैसे प्राप्त किया जाए? 

पंचायतों को सशक्त करने की जरूरत
वास्तविकता यह है कि इस संबंध में सरपंचों को कोई विशेष बौद्धिक सहायता और समर्थन भी प्राप्त नहीं होता। एक सरपंच अपने जिले के कलैक्टर या तहसील के एस.डी.ओ. से भी अधिकारपूर्वक वार्तालाप नहीं कर पाता जबकि होना यह चाहिए कि प्रत्येक सरपंच स्वयं को अपने गांव का प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के समान समझकर एक शक्तिशाली नेतृत्व की तरह कार्य करे। देखने में यह शायद बहुत बड़ी कल्पना लगती है परन्तु धीरे-धीरे  यदि देश के सभी सरपंचों को ऐसे विचारों और प्रेरणाओं से प्रशिक्षित करने का अभियान छेड़ दिया जाए तो यह सपना सच्चाई में बदला जा सकता है कि प्रत्येक सरपंच अपने गांव के चहुंमुखी विकास के लिए पूरी योग्यता रखता है। 

देश के सरपंच यदि अपनी योग्यताओं का विकास करके गांव के पूर्ण विकास को सुनिश्चित कराने में रुचि रखें तो वे अवश्य ही इन विचारों को एक बहुत बड़े अभियान के रूप में खड़ा करने में सहयोगी बन सकते हैं। इसलिए आज देश की पंचायतों को गतिमान करने के लिए एक महा अभियान की आवश्यकता है। इस संबंध में पाठकों और विशेष रूप से सरपंचों या पंचायत सदस्यों के विचारों का स्वागत है। जिन पर गम्भीर ङ्क्षचतन-मनन के बाद ऐसा महा अभियान प्रारम्भ किया जा सकता है।-विमल वधावन(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)

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