जी.एस.टी. की ‘वापसी’ बनाम सरकारी  ‘अनुदान’

Edited By ,Updated: 26 Sep, 2019 02:47 AM

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शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से उनके मुख्य सचिव रूप सिंह ने पत्रकारों को बताया कि शिरोमणि कमेटी की ओर से लंगर से संबंधित वस्तुओं की खरीद पर जो जी.एस.टी. अदा किया जा रहा है उसकी वापसी की केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई 67 लाख रुपए की दूसरी...

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की ओर से उनके मुख्य सचिव रूप सिंह ने पत्रकारों को बताया कि शिरोमणि कमेटी की ओर से लंगर से संबंधित वस्तुओं की खरीद पर जो जी.एस.टी. अदा किया जा रहा है उसकी वापसी की केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई 67 लाख रुपए की दूसरी किस्त कमेटी को मिल गई है, जबकि 57.45 लाख रुपए की पहली किस्त उससे पहले ही मिल चुकी है। 

शिरोमणि कमेटी के प्रवक्ता के रूप में ‘अदा किए गए जी.एस.टी. की वापसी’ के किए गए दावे को चुनौती देते हुए कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि शिरोमणि कमेटी को मिली यह राशि, जिसे उसकी ओर से जी.एस.टी. की वापसी बताया जा रहा है, जी.एस.टी. की वापसी नहीं अपितु उसकी ‘भरपाई’ के  नाम पर ‘अनुदान’ है। उन्होंने अपने इस दावे को स्पष्ट करते हुए बताया कि जब केंद्रीय सरकार की ओर से जी.एस.टी. लागू किया गया था तो उसकी लपेट में वे सभी वस्तुएं भी आ गई थीं, जो गुरुद्वारों सहित सभी धार्मिक स्थानों में चलाए जा रहे लंगर में इस्तेमाल होती हैं। फलस्वरूप गुरुद्वारा कमेटियों सहित सभी धार्मिक स्थानों के प्रबंधकों द्वारा लंगर में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर लगाए गए जी.एस.टी. को वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाया जाने लगा। 

सरकार की अधिसूचना : धार्मिक संस्थाओं के बढ़ते दबाव के चलते  केंद्रीय सरकार के सांस्कृतिक विभाग द्वारा जारी एक अधिसूचना में बताया गया कि सरकार ओर से ‘सेवा-भोज योजना’ के तहत सन् 2018-19, 2019-20 के लिए द्वि-वर्षीय सहायता योजना शुरू की गई है, जिसके अनुसार चैरीटेबल (धार्मिक) संस्थाओं द्वारा ‘सेवा-भोज’ के लिए खरीदी गई चुङ्क्षनदा वस्तुओं पर अदा किए गए जी.एस.टी. की भरपाई ( न कि वापसी) के लिए सांस्कृतिक विभाग की ओर से जारी नियमों के अनुसार भारत सरकार द्वारा ‘आॢथक अनुदान’ दिया जाया करेगा, जिसका लाभ लेने की इच्छुक संस्थाओं की ओर से निश्चित नियमों के  तहत अपने आपको पंजीकृत करवाना होगा और ‘सेवा-भोज’ के लिए खरीदी गई वस्तुओं पर अदा किए गए जी.एस.टी. से संबंधित पूरे विवरण के साथ केंद्रीय हिस्से की भरपाई की मांग सांस्कृतिक विभाग से करनी होगी। उसकी गहन जांच करने के बाद विभाग की ओर से ‘अनुदान’ राशि जारी की जाया करेगी। 

धार्मिक सिखों की मान्यता : उपरोक्त सारी स्थिति को देखते हुए धार्मिक सिखों का मानना है कि सिख सिद्धांतों के अनुसार ऐसे किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी ‘अनुदान’ की मांग करना ‘भिक्षा’ मांगने के तुल्य है और इस ‘भिक्षा’ को स्वीकार किए जाने से गुरु रामदास जी के शब्दों में ‘लोभ लालच के साथ ही पराधीनता का अहसास पैदा होगा।’ गुरु साहिब ने ये विचार उस समय प्रकट किए, जब बादशाह अकबर ने लंगर की परम्परा के निरंतर चलते रहने की कामना करते हुए गुरुघर के लिए कुछ गांव जागीर के रूप में भेंट करने की इच्छा प्रकट की। 

सिख इतिहास के अनुसार बादशाह अकबर ने ऐसी ही पेशकश गुरु अमरदास जी को भी उस समय की जब वह गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब पहुंचा और गुरुघर की परम्परा ‘पहले पंगत, पाछे संगत’ के अनुसार गुरु साहिब के दर्शन करने से पहले उसे आम लोगों के साथ पंगत में बैठकर लंगर छकना पड़ा। उस समय भी गुरु साहिब ने उसकी पेशकश को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ‘यह लंगर संगत का है और वह ही अपने दसवंध से बिना किसी रोक-रुकावट के इसे चलाए रखने में सक्षम है।’ इन स्थापित ऐतिहासिक मान्यताओं के सामने होते हुए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सत्ता पर काबिज बादल अकाली दल के मुखियों की ओर से लंगर के लिए (सेवा-भोज के नाम पर) सरकारी वित्तीय सहायता स्वीकार करना धार्मिक सिख मान्यताओं का स्पष्ट उल्लंघन है और संभवत: ऐसा केवल और केवल बादल अकाली दल के मुखी ही निज-स्वार्थ के तहत कर सकते हैं। 

एक अद्वितीय पहल : मध्य प्रदेश के शहर इंदौर के सिखों की ओर से गुरु नानक देव जी के 550 साला प्रकाश पर्व को समॢपत एक अद्वितीय और प्रेरणादायक पहल की गई है। गुरुद्वारा इमली साहिब की धर्म प्रचार कमेटी के मुखी दविन्द्र सिंह ने बताया कि शहर के सभी गुरुद्वारों के मुखियों की सहमति से यह फैसला लिया गया है कि 55 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों जोकि शारीरिक रूप से अक्षम हैं और परिवार की अवहेलना का शिकार हो अकेले रहने को मजबूर हो रहे हैं, को उनकी केवल एक काल पर उन तक गुरु का लंगर पहुंचाने का प्रबंध किया जाए।  उन्होंने बताया कि शहर में 35 गुरुद्वारे हैं, परन्तु यह सेवा 7 गुरुद्वारों इमली साहिब, वेटमार साहिब, पिपलियाराव, खालसा बाग, तेजा जी नगर और गुरुद्वारा नानक साहिब से शुरू की गई है। इन गुरुद्वारों में चौबीसों घंटे लंगर चलता है।

उन्होंने बताया कि शहर में सिखों की कुल आबादी 70 हजार के लगभग है, जबकि बुजुर्गों की संख्या 20 हजार के करीब।  दविन्द्र सिंह के अनुसार गुरुद्वारा साहिब की ओर से बीते 15 वर्षों से  ‘गुरु नानक भलाई केंद्र’ का संचालन भी किया जा रहा है, जिसके तहत हर माह 1 से 5 तारीख तक जरूरतमंद और विधवा औरतों को 500 रुपए तक का राशन दिया जाता है, जिस पर हर माह लगभग 75 हजार रुपए खर्च होते हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि लगभग 200 सिख परिवार तो नियमित रूप से सहयोग करते हैं, जबकि अन्य सिख परिवार समय-समय पर अपना योगदान देते रहते हैं। 

बात काली सूची की : इन्हीं दिनों भारत सरकार की ओर से घोषणा की गई है कि लम्बे समय से विदेशों में रह रहे सिखों से संबंधित वह काली सूची खत्म कर दी गई है जिसके चलते उन्हें अपने देश और परिवारों तथा सज्जन-मित्रों से मिल-बैठ कर उनके साथ दुख-सुख सांझा करने का अवसर देने में रुकावट आ रही थी। अब केवल दो नाम ही काली सूची में शेष रह गए हैं। 

सरकार की ओर से की गई इस घोषणा का स्वागत करते हुए दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के., एस.एस.एफ. के संरक्षक करनैल सिंह पीर मोहम्मद आदि सहित सिख संस्थाओं के मुखियों ने मांग की है कि जो काली सूची खत्म की गई है उसमें दर्ज सभी नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिएं। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि पहले भी केंद्रीय सरकारों की ओर से समय-समय पर काली सूची खत्म कर दिए जाने की घोषणाएं की जाती रही हैं, परन्तु कभी भी उसने पूरी तरह खत्म होने का नाम नहीं लिया। 

जिनके नाम काली सूची में से निकाल देने की बात की जाती रही उनमें से कई सिख जब वीजा लेने के लिए स्थानीय भारतीय दूतावासों में जाते तो उन्हें यह कह कर वीजा देने से मना कर दिया जाता है कि उनके पास अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं कि उनका नाम काली सूची में से निकाल दिया गया है। यही कारण है कि अब सिख मुखी चाहते हैं कि जो काली सूची खत्म की गई है, उसमें दर्ज नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिएं।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैरजसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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