केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया जी.एस.टी. क्या ‘असली’ है

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Nov, 2017 12:12 AM

gst implemented by the central government what is real

वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) एक बढिय़ा अवधारणा थी और आज भी है। यह एक ऐसा टैक्स है जो दुनिया के 160 देशों में विधिवत लागू है और शेष देशों में कुछ बदलावों के साथ प्रयुक्त किया जाता है। इसका आधारभूत सिद्धांत यह है कि पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं पर...

वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) एक बढिय़ा अवधारणा थी और आज भी है। यह एक ऐसा टैक्स है जो दुनिया के 160 देशों में विधिवत लागू है और शेष देशों में कुछ बदलावों के साथ प्रयुक्त किया जाता है। इसका आधारभूत सिद्धांत यह है कि पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं पर एक ही टैक्स लागू किया जाता है। विशेष स्थिति में किसी सेवा या वस्तु को कर माफी दी जा सकती है। 

मुख्य आर्थिक सलाहकार ने राजस्व निरपेक्ष दर (आर.एन.आर.) पर अपनी रिपोर्ट में 15 या 15.5 प्रतिशत टैक्स दर की सिफारिश की थी। वैट से जी.एस.टी. तथा सेवा कर से जी.एस.टी. की ओर संक्रांति के विकट मार्ग का संज्ञान लेते हुए उन्होंने धनात्मक एवं ऋणात्मक आर.एन.आर. को भी स्वीकार किया था। इससे जहां जी.एस.टी. का महत्वपूर्ण सिद्धांत अक्षुण्ण बना रहना था, वहीं संक्रांति की प्रक्रिया भी बहुत सुखद ढंग से सम्पन्न होनी थी। 

यह असली जी.एस.टी. नहीं 
राजग/भाजपा सरकार ने असली जी.एस.टी. के सिद्धांतों का उल्लंघन किया, मुख्य आर्थिक सलाहकार की रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया और अपने हिसाब से जी.एस.टी. गढ़ लिया। जिस प्रकार भाजपा को नए-नए जुमला रूपी नाम रखने का शौक है उसके चलते यह इस टैक्स को जी.एस.टी. की बजाय कोई अन्य नाम दे सकती थी क्योंकि अब जो हमें हासिल हुआ है वह असली जी.एस.टी. नहीं और न ही एक ‘गुड एंड सिम्पल टैक्स’ है। राहुल गांधी ने तो जी.एस.टी. को गब्बर सिंह टैक्स कहकर इसके परखच्चे उड़ाए हैं और अब यही लेबल इस टैक्स पर चिपक गया है। इस लेबल से पल्ला छुड़ाने के लिए ढेर सारी मशक्कत करनी होगी।

जी.एस.टी. और इसका निष्पादन अपनी संकल्पना, डिजाइन, दर या दरों, समावेशन अथवा गैर समावेशन कसौटियों, टैक्स माफी के स्तरों, प्रचार- प्रसार, अनुपालन प्रावधानों तथा आधारभूत ढांचे, तैयारी के स्तर, प्रशिक्षण इत्यादि की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण था। 1 जुलाई 2017 को जो जी.एस.टी. लागू हुआ उसमें एक भी बात सही नहीं थी। अत्यंत त्रुटिपूर्ण जी.एस.टी. तथा जल्दबाजी में इसके निष्पादन से जो नतीजे निकले हैं वे सबके सामने हैं। सबसे अधिक नुक्सान छोटे और मंझोले उद्यमों को झेलना पड़ा है-खास तौर पर कारखाना व्यवसाय में। स्वरोजगार का स्रोत माने जाते सूक्ष्म उद्यम बंद हो गए हैं या उनके कारोबार में कमी आ गई है। मुख्य तौर पर पारिवारिक सदस्यों की श्रमशक्ति पर चलने वाले छोटे उद्यम भी जिंदा रहने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इनमें से कई एक ने तो अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं और उन्हें दोबारा कारोबार शुरू करने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं देती। 

90 प्रतिशत गैर कृषि श्रमशक्ति कोरोजगार देने वाले मंझोले कारोबार भी मुश्किल से सांस ले पा रहे हैं लेकिन उन्हें भारी कीमत अदा करनी पड़ी है। उन्होंने अपने उत्पादन में कटौती की है, श्रमशक्ति में कमी की है, अतिरिक्त कार्यशील पूंजी के लिए कर्ज लिए हैं तथा जी.एस.टी. के अनुपालन हेतु प्रोफैशनल सहायता लेने के लिए भी उन्हें भारी राशियां अदा करनी पड़ रही  हैं। इस सब कुछ के बावजूद वह लगातार टैक्स अधिकारियों के आतंक में दिन बिता रहे हैं। जब इस कानून पर चर्चा हो रही थी तो सरकार ने संसद में की गई आलोचना को बहुत हिकारत से ठुकरा दिया। इसने व्यावसायिक संघों और टैक्स विशेषज्ञों द्वारा सद्भावनापूर्ण दिए गए परामर्श को भी एक तरफ धकेल दिया। इसने कानूनों को कलमबद्ध करने और इनका निष्पादन करने का काम नौकरशाहों के हवाले कर दिया। जिन्होंने जीवन भर न कोई कारोबार चलाकर देखा है और न ही अपनी कमाई का एक भी रुपया किसी कारोबार को शुरू करने या समर्थन करने पर खर्च किया है। नतीजा यह हुआ है कि कानून में अनगिनत त्रुटियां रह गई हैं जिनके फलस्वरूप व्यवसायी समुदाय व उपभोक्ता भारी-भरकम मुसीबतों के बोझ तले दब गए हैं। 

सरकार ‘मुरम्मत’ में जुटी 
जब कोई ‘टैक्स समस्या’ इतनी बिगड़ जाती है कि इसके ‘राजनीतिक समस्या’ बनने का खतरा पैदा हो जाता है केवल तभी जाकर ही सरकार की नींद टूटती है। अब सरकार जी.एस.टी. व्यवस्था में दरपेश आ रही समस्याओं को सही करने के लिए संघर्ष कर रही है। सरकार की हताशा जगजाहिर है: जरा यह देखें कि 1 जुलाई 2017 को जी.एस.टी. का निष्पादन प्रभावी होने के बाद गत 4 महीनों में किए गए बदलावों, निलंबित प्रावधानों और क्षमादान की संख्या कितनी बड़ी है। इन बदलावों पर अभी भी अमल नहीं किया गया और समस्याओं को दुरुस्त करने के लिए 11 नवम्बर 2017 को जी.एस.टी. परिषद की एक अन्य बैठक होगी। आप मेरी इस बात पर विश्वास करें कि इस उद्देश्य के लिए यह मीटिंग भी अंतिम नहीं होगी। 

मैंने गिनती करके देखा है कि दर-कटौती के 27; छूट प्रदान करने के 22; समय वृद्धि के 15 तथा क्षमादान का एक उदाहरण सामने आया है। 28 अक्तूबर 2017 को जी.एस.टी. नियमों में 11वां संशोधन किया गया था। इनमें से बहुत से बदलाव तो इसके डिजाइन और ढांचे में मौजूद स्पष्ट खामियों को सही करने के लिए थे-खास तौर पर छोटे और मंझोले उद्यमों से संबंधित प्रावधानों में। कुछ बदलाव विवादग्रस्त या जटिल प्रावधानों को भविष्य की तिथि तक स्थगित करने के लिए थे। जैसे कि ‘रिवर्स चार्ज मैकानिज्म’, टी.डी.एस./टी.सी.एस. निष्पादन, तथा ई-वे बिल प्रणाली इत्यादि। चार माह तक छोटे और मंझोले उद्यमों को सूली पर टांगे रखने के बाद आखिर सरकार को कुछ अक्ल आई है। 

जरूरत है मुकम्मल ओवरहाल की
कुछ चीजें ऐसी हैं जिन्हें फटाफट ठीक नहीं किया जा सकता-उदाहरण के तौर पर मल्टीपल रेट ढांचा, एच.एस.एन. प्रमाणन, विद्युत एवं पैट्रोलियम उत्पादों को जी.एस.टी. दायरे से बाहर रखना, परत दर परत प्रभावशीलता, ‘अदा पहले करो, रिफंड बाद में लो’ एवं दोहरी नियंत्रण प्रणाली। इन तत्वों में बदलाव करने के लिए वर्तमान जी.एस.टी. ढांचे के मुकम्मल कायाकल्प के साथ-साथ अन्य कानूनों में भी व्यापक संशोधनों की जरूरत होगी लेकिन ऐसा लगता है कि यह प्रणाली सरकार की समझ से बाहर की बात है। 

सरकार की आलोचना भारत तक ही सीमित नहीं थी। समाचार पत्र ‘द फाइनांशियल टाइम्स’ ने ऐसे छोटे कारोबारों की कहानियां प्रकाशित कीं जो बंद हो गए थे। इसने सिंगापुर आधारित अर्थशास्त्री डा. जहांगीर अजीत के हवाले से कहा कि सरकार ने आर्थिक वृद्धि और इस पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव और लम्बे समय तक इनके मंदगति से जारी रहने के बारे में इस टैक्स संक्रांति के प्रभावों को बहुत कम करके आंका था। ‘द इकानोमिस्ट’ अखबार ने एक बहुत कटु सम्पादकीय में नोटबंदी के कारण पैदा हुए व्यवधानों और कठिनाइयों का स्मरण करते हुए कहा कि ‘‘जिस प्रकार से इस अधकचरे जी.एस.टी. कानून को निष्पादित किया गया है उससे स्थितियां और भी बदतर होने की सम्भावना है।’’ अखबार ने जो निष्कर्ष निकाला वह इससे भी अधिक निष्ठुरतापूर्ण था: ‘‘भाजपा को नीति में कोई दिलचस्पी नहीं। यह मुख्य तौर पर मतदाताओं का ध्यान भटकाने वाले आकर्षण प्रस्तुत कर रही है।’’ 

अर्थव्यवस्था को दो जबरदस्त आघात सहन करने पड़े हैं। यह भी एक तथ्य है कि जी.डी.पी. वृद्धि दर 6 तिमाहियों दौरान 9.1 प्रतिशत से फिसलकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है। यह सम्भव है कि 5.7 प्रतिशत का आंकड़ा शायद इस गिरावट का न्यूनतम ङ्क्षबदू सिद्ध होगा और यहीं से ऊपर की ओर वृद्धि शुरू हो जाएगी। ऐसा होने से सरकार को अपनी हेकड़ी दिखाने के अधिकार मिल जाएंगे लेकिन इन तथ्यों से कौन इंकार कर पाएगा कि कारोबार ठप्प हो गए हैं और रोजगार समाप्त हो गए हंै। इस स्थिति का कोई ‘फटाफट’ उपाय नहीं है।-पी. चिदम्बरम

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