गुरुद्वारा कमेटी : सत्ता के लिए लगने लगी ‘वफादारी की बोली’

Edited By ,Updated: 03 Sep, 2021 03:56 AM

gurdwara committee  bid of loyalty  started for power

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव होने के बाद अब कमेटी में सत्ता हासिल करने के लिए सदस्यों की वफादारी खरीदने का जोड़-तोड़ शुरू हो गया है। इसके लिए बोलियां भी लगने लगी हैं। नतीजन, सभी पाॢटयां अपने जीते हुए सदस्यों को सुरक्षित रखने में...

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आम चुनाव होने के बाद अब कमेटी में सत्ता हासिल करने के लिए सदस्यों की वफादारी खरीदने का जोड़-तोड़ शुरू हो गया है। इसके लिए बोलियां भी लगने लगी हैं। नतीजन, सभी पाॢटयां अपने जीते हुए सदस्यों को सुरक्षित रखने में जुट गई हैं। बहुमत के जादुई आंकड़े के करीब खड़े शिरोमणि अकाली दल ने अपने सदस्यों को बचाने के लिए कशमकश तेज कर दी है। यही कारण है कि सदस्यों को दो-तीन दिन तक दिल्ली से बाहर रखा गया। पहले अमृतसर स्थित श्री दरबार साहिब में दर्शन के लिए ले जाया गया, फिर चंडीगढ़ के एक रिजॉर्ट में डिनर करवाया गया। बाद में पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के साथ सभी की मुलाकात करवाई गई। 

वहीं दूसरी ओर बागी अकाली नेता और शिरोमणि अकाली दल संयुक्त के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींडसा बादल विरोधी दलों को एकजुट करने में जुट गए हैं। इसके लिए उन्होंने कांस्टीच्यूशनल क्लब में परमजीत सिंह सरना की अगुवाई वाले शिरोमणि अकाली दल (दिल्ली) और मंजीत सिंह जी.के. की अगुवाई वाली जागो पार्टी के जीते हुए सदस्यों को सम्मानित करके बादल दल के खिलाफ लड़ाई लडऩे का संकेत दिया है। 

दो कोआप्शन सीटों को लेकर जंग शुरू : सारी लड़ाई दो कोआप्शन सीटों को लेकर हो रही है। एक कोआप्शन सीट के लिए 16 सदस्यों की जरूरत होती है। अकाली दल दोनों सीटें जीतने की फिराक में लगा हुआ है। इसी वजह से उन्होंने एक दिन पहले सरना दल के वरिष्ठ नेता और करीबी सुखबीर सिंह कालरा को तोड़ लिया। अकाली दल के पास अब सदस्यों की संख्या 28 हो गई है। 4 सदस्यों के और टूटने के बाद बादल दल दोनों कोआप्शन सीटें जीत सकता है। 

उधर, सरना और जी.के. की तरफ से परमजीत सिंह सरना कोआप्शन सीट के लिए उम्मीदवार हो सकते हैं, जबकि बादल दल की तरफ से पहली सीट पर विक्रम सिंह रोहिणी ने पर्चा भर दिया है। दूसरी सीट के लिए अवतार सिंह हित, कुलदीप सिंह भोगल, मंजीत सिंह औलख, जसविंदर सिंह जौली आदि का नाम चल रहा है। जागो पार्टी के 3 सदस्यों का समर्थन सरना के अलावा किसी आजाद उम्मीदवार को मिल जाए तो कमेटी अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा उसे अपना समर्थन दे सकते हैं। कोआप्शन सीटों के लिए नामजदगी 4 सितम्बर को और मतदान 9 सितम्बर को होगा। 

सदस्यों की कीमत 5 करोड़ रुपए तक लगी : गुरुद्वारा कमेटी में सत्ता के लिए वैसे तो शिरोमणि अकाली दल को बहुमत मिल चुका है, बावजूद इसके वह ज्यादा से ज्यादा संख्या बल अपने पक्ष में जुटाने के लिए कोशिश कर रहा है। सुखबीर सिंह कालरा को तोड़कर दो दिन पहले इसकी शुरूआत भी हो गई। वहीं सरना दल वाले गठबंधन के पास 16 सीटें हैं। इनमें सरना पार्टी की अपनी 14 सीटें हैं, जिनमें से एक सीट कम हो गई। हालांकि तीन सीट जीतने वाली जागो पार्टी का सरना दल को खुला समर्थन है। इस हिसाब से सरना दल की सीटें बढ़ कर 18 हो गई हैं। कोआप्शन की 1 सीट भी उन्हें मिल सकती है।

हालांकि लॉटरी से निकलने वाली सिंह सभाओं के अध्यक्ष (2 सीट) किसके साथ जाएंगे, यह अभी नहीं पता। रिजल्ट निकलने के दूसरे दिन कमेटी अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा ने दावा किया था कि सरना द्वारा उनके जीते हुए मैंबरों से संपर्क किया जा रहा है। उन्हें वफादारी बदलने के बदले लालच दिए जा रहे हैं। इसके बाद सिरसा ने दावा किया कि उनका कोई भी सदस्य परमजीत सिंह सरना के हाथों नहीं बिकेगा। सदस्यों ने दावा किया कि उन्हें पाला बदलने के बदले 4 से 5 करोड़ रुपए तक की पेशकश की जा रही है। 

सिरसा के मास्टर स्ट्रोक से सभी क्लीन बोल्ड: दिल्ली कमेटी के अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा इस पूरी चुनावी प्रक्रिया में सबसे बड़े खिलाड़ी बनकर उभरे हैं। वह खुद अपनी सीट पर भले ही चुनाव हार गए हों लेकिन पार्टी को जिताने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। सिरसा के कई मास्टर स्ट्रोक इतने कामयाब रहे कि विरोधी दल चाहकर भी विरोध नहीं कर पाए। नतीजन सिरसा के लिए रास्ता आसान होता चला गया। पूरे चुनाव में सिरसा ने अपनी ही पार्टी हाईकमान को अलग रखा और अपने एवं पार्टी की युवा टीम के दम पर रणनीतिक तरीके से विजयश्री हासिल की। सिरसा ने पूरा चुनावी अभियान एवं प्रचार को सकारात्मक रखा, यही कारण है कि तमाम आरोपों के बावजूद संगत ने सिरसा को ही गुरुघर की रखवाली के लिए कमान सौंपी। 

और अंत में... दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में सदस्यों की वफादारी बदलने एवं खरीदने का पुराना इतिहास रहा है। चूंकि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी में सदस्यों के दल-बदल कानून लागू नहीं हैं, इसलिए जीते हुए सदस्य अपने भविष्य और रसूख को देखकर पाला बदलते रहे हैं। यह हर चुनाव में होता है। चुनाव के बाद परमजीत सिंह सरना ने जोड़-तोड़ का संकेत दिया था, जबकि सिरसा ने तोड़कर दिखा भी दिया है। अभी कितने और सदस्य टूटेंगे, इसका तो पता नहीं है लेकिन दोनों दल गोटी फिट करने में जुट गए हैं। दोनों दल दावा कर चुके हैं कि दूसरे दलों के सदस्य उनके संपर्क में हैं।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 

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