‘गुरुद्वारा बाला साहिब’ अस्पताल फिर विवादों में

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2021 03:46 AM

gurudwara bala sahib  hospital again in controversy

दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रबंधाधीन गुरुद्वारा बाला साहिब का अस्पताल एक बार फिर विवादों में आ गया है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंधकों की ओर से कमेटी की महासभा से स्वीकृति लिए बिना

दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रबंधाधीन गुरुद्वारा बाला साहिब का अस्पताल एक बार फिर विवादों में आ गया है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंधकों की ओर से कमेटी की महासभा से स्वीकृति लिए बिना ही ‘किसी’ एन.जी.ओ. को गुरुद्वारा बाला साहिब में डायलिसिस सैंटर स्थापित करने का अधिकार दे दिया गया है। 

गुरुद्वारा कमेटी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार गुरुद्वारा बाला साहिब में इस सैंटर का शुभारंभ 7 मार्च को किया जा रहा है। दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व मुख्य को-आर्डीनेटर इंद्रमोहन सिंह ने गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों से मांग की है कि वे उस समझौते की शर्तों को सार्वजनिक करें जिनके आधार पर यह डायलिसिस सैंटर स्थापित किए जाने का अधिकार ‘एन.जी.ओ.’ को दिया गया है। 

दूसरी ओर केंद्रीय सिंह सभा के अध्यक्ष और गुरुद्वारा कमेटी के सदस्य तरविंदर सिंह मरवाह ने इस सैंटर को स्थापित किए जाने पर कई सवाल खड़े किए हैं जिनमें से मुख्य सवाल यह है कि जिस किसी एन.जी.ओ. को यह सैंटर स्थापित किए जाने का अधिकार दिया गया है, क्या उस (अधिकार) की स्वीकृति गुरुद्वारा कमेटी की महासभा से ली गई है? यदि नहीं तो किस अधिकार के तहत गुरुद्वारा कमेटी की इतनी बहुमूल्य जायदाद ‘किसी’ एन.जी.ओ. को इस्तेमाल करने के लिए सौंप दी गई है? उन्होंने यह भी पूछा है कि क्या संबंधित एन.जी.ओ. ने इस सैंटर की स्थापना के लिए संबंधित स्वास्थ्य विभाग से एन.ओ. (आपत्ति नहीं) प्रमाणपत्र प्राप्त किया है? 

क्या यह सैंटर स्थापित करने के लिए मैडीकल शर्तों का पालन किया जा रहा है? यदि डायलिसिस पर किसी मरीज की तबीयत बिगड़ जाती है तो क्या उसके लिए आपातकालीन सेवा का प्रबंध किया गया है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके संबंध में स. मरवाह का कहना है कि ऐसे किसी भी सैंटर की स्थापना के लिए स्वीकृति दिए जाने से पहले, इन सवालों का संतुष्टतापूर्ण जवाब मिलना बहुत जरूरी है। 

सरना-समर्थकों ने भी उठाए सवाल : उधर शिरोमणि अकाली दल दिल्ली के समर्थकों की ओर से भी इस डायलिसिस सैंटर की स्थापना को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। उनका कहना है कि आज बादल अकाली दल के वे मुखी कहां हैं जो उस समय लठ लेकर स. सरना के गिर्द हो गए थे। जब परमजीत सिंह सरना की ओर से अपने अध्यक्षता काल के दौरान विश्व मान्यता प्राप्त मैडीकल संस्था के साथ आपसी सहयोग से इसी स्थान पर आधुनिक सहूलियतों से लैस पांच सौ बिस्तरों का एक ऐसा अस्पताल स्थापित किए जाने के प्रयत्न किए जा रहे थे, जिसमें वे सभी मैडीकल सहूलियतें प्राप्त हों, जो समय की जरूरतों को पूरा कर सकें। 

सरना समर्थकों ने कहा कि उस समय दल के मुखियों ने ऐसे अस्पताल की स्थापना में रुकावटे डालीं, यदि वह अस्पताल उस समय तैयार हो गया होता तो आज गुरुद्वारा कमेटी को डायलिसिस केंद्र की स्थापना की जरूरत न होती। अब तक वह गुरुद्वारा कमेटी की आय में लाखों की बढ़ौतरी करने में ही न केवल सहयोग कर रहा होता अपितु लाखों जरूरतमंदों के लिए ‘मसीहा’ भी साबित होता। उस समय तो उन्होंने स. सरना पर अस्पताल बेच दिए जाने जैसे आधारहीन आरोप लगाने शुरू कर दिए थे।

सरना समर्थकों ने यह सवाल भी उठाया कि आज वे बादल क्यों चुप हैं, जबकि गुरुद्वारा कमेटी के मुखियों की ओर से गुरुद्वारा बाला साहिब की वह बहुमूल्य जगह, जहां पांच सौ बिस्तरों का आधुनिक अस्पताल स्थापित हो सकता है, किसी एन.जी.ओ. को केवल डायलिसिस सैंटर कायम करने के लिए दे दी गई है? कहीं ऐसा तो नहीं कि संबंधित एन.जी.ओ. को बादल परिवार का संरक्षण प्राप्त है, जिस कारण उन्हें अपनी जुबान बंद रखने पर मजबूर होना पड़ रहा है? 

पंथक सेवा दल सक्रिय : पिछले गुरुद्वारा चुनावों के बाद मंच से दूर रहा पंथक सेवा दल, नए गुरुद्वारा चुनावों की आहट सुनते ही मंच पर आ गरजा है। दल के महासचिव करतार सिंह कोछड़ ने बताया कि पंथक सेवा दल, बिना किसी पार्टी से चुनाव-गठजोड़ किए अपने बूते ही गुरुद्वारा कमेटी की सभी 46 सीटों पर चुनाव लड़ेगा। उन्होंने बताया कि बीते समय दल की बैठकों से गायब रहने वाले सभी सदस्यों और पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाकर उनके स्थान पर नए पदाधिकारियों को जिम्मेदारियां सौंप दी हैं। उनके अनुसार परमजीत सिंह (वीर जी) को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं जबकि पूर्व विधायक और दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व सदस्य अवतार सिंह कालकाजी को दल का संयोजक बनाया गया है और हरदित सिंह गोबिंदपुरी को दल का मीडिया सचिव एवं धर्म प्रचार कमेटी के चेयरमैन की जिम्मेदारी दी गई है। 

इनके अलावा वरिष्ठ उपाध्यक्षों और उपाध्यक्षों के साथ सचिवों की एक मजबूत टीम गठित की गई है। उन्होंने बताया कि दल की ‘कोर कमेटी’ अलग से बनाई गई है जो दल की नीतियों का संचालन करने की रणनीति तैयार करेगी। दल की ओर से दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी के पूर्व सदस्यों एवं दल के पूर्व मुखियों, गुरलाड सिंह और इंद्रजीत सिंह मौंटी का धन्यवाद किया गया कि उन्होंने पिछले गुरुद्वारा चुनाव में दल के लिए ‘ट्रैक्टर’ चुनाव चिन्ह सुरक्षित करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। भोगल बने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष : शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने दिल्ली के वरिष्ठ अकाली मुखी कुलदीप सिंह भोगल को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष के रूप में शामिल कर उन्हें सम्मानित किया है। कुलदीप सिंह भोगल दल के एक ऐसे मुखी हैं, जिनकी वफादारी दल और उसके नेतृत्व के प्रति चुनौतीहीन रही। दल के उतार-चढ़ाव से परिपूर्ण सफर में वे दृढ़ता से उसके साथ खड़े रहे। 

सुखबीर की दोहरी नीति : जब कथित भ्रष्टाचार के आरोप के मामले में मनजीत सिंह जी.के. के विरुद्ध एफ.आई.आर. दाखिल हुई तो शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने तुरन्त ही उनसे गुरुद्वारा कमेटी और प्रदेश अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा मांग लिया था परन्तु अब मनजिंदर सिंह सिरसा के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों के आधार पर एक नहीं, दो एफ.आई.आर. दाखिल हो चुकी हैं, उनसे इस्तीफा मांगने के मुद्दे पर सुखबीर का चुप्पी साधे रखना, शंका पैदा करता है कि जी.के. पर किसी साजिश के तहत ही आरोप लगाए गए और उनके विरुद्ध एफ.आई.आर. दाखिल करवाई गई, जिसके चलते उनसे इस्तीफा ले लिया गया?

...और अंत में : बीते कई वर्षों से देश की विभिन्न जेलों में लगभग 188 ऐसे सिख बंदी हैं जिनमें से अधिकांश अपनी सजा पूरी कर चुके हैं। इनमें कई सिख तो ऐसे भी हैं जिन्हें अपनी सजा पूरी किए 4 से 9 वर्ष तक का समय बीत चुका है, फिर भी न जाने किन कारणों से उन्हें रिहा नहीं किया जा रहा। इतना ही नहीं, कोई सिख जत्थेबंदी भी ऐसी दिखाई नहीं दे रही जो उन्हें रिहा करवाने के प्रति गंभीर हो।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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