बिहार में ‘हर हर मोदी’ बनाम ‘अरहर मोदी’

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2020 12:52 AM

har har modi vs arhar modi in bihar

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार का काम शुरू हो चुका है। गठबंधन और महागठबंधन का स्वरूप भी सामने आ चुका है। एक तरफ नीतीश और मोदी के दल हैं तो दूसरी तरफ लालू, राहुल के दलों के साथ वाम मोर्चा है। तीसरा मोर्चा भी बन रहा है। अलबत्ता चिराग पासवान

बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार का काम शुरू हो चुका है। गठबंधन और महागठबंधन का स्वरूप भी सामने आ चुका है। एक तरफ नीतीश और मोदी के दल हैं तो दूसरी तरफ लालू, राहुल के दलों के साथ वाम मोर्चा है। तीसरा मोर्चा भी बन रहा है। अलबत्ता चिराग पासवान ने पूरे चुनाव को खोल दिया है। 

एकतरफा चुनाव अब कई नई संभावनाओं को जन्म देने लगा है। वैसे तो पिछले 15 साल का इतिहास बताता है कि बिहार में मोटे तौर पर 3 दल हैं। लालू, नीतीश और मोदी का दल। इनमें से जो दो दल मिलकर चुनाव लड़ते हैं वे सत्ता में आ जाते हैं। बहुत संभव है कि इस बार भी ऐसा ही हो लेकिन आज हम वोटों की राजनीति की जगह दाल की राजनीति की बात करते हैं जो अपने आप में खासी दिलचस्प है। 

पिछले विधानसभा चुनाव 2015 में हुए थे। तब मोदी का नाम एक तूफान की तरह था जो विपक्ष को उड़ा ले जाता था। तब बिहार में यू.पी. की तर्ज पर नारा लगा था। हर हर मोदी का नारा। उधर लालू यादव और नीतीश कुमार इसके जवाब में अरहर मोदी का नारा ले आए थे। अरहर मोदी के नारे ने हर हर मोदी, घर घर मोदी के नारे को पीट दिया था। पूरी कहानी आपको बताते हैं। इससे पहले बता दें कि अरहर के साथ-साथ पी ओ टी (पॉट) की भी भाजपा चिंता करने लगी है। पी ओ टी (पॉट) का मतलब घड़े से नहीं है। पी से पोटेटो यानी आलू, ओ से ओनियन यानी प्याज और टी से टोमैटो यानी टमाटर। कुल मिलाकर कोरोना  काल में हो रहा बिहार का चुनाव अरहर की दाल और आलू-प्याज-टमाटर के बीच झूल रहा है। 

आपको याद होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने तब एक रैली में अपने ही अंदाज में विकास का पैकेज सामने रखा था। साठ हजार करोड़ दूं या 70 हजार करोड़...80 हजार करोड़ दूं या...चलो सवा लाख करोड़ का पैकेज दिया। ऐसा लग रहा था कि इस नारे के बाद भाजपा की एकतरफा जीत हो जाएगी। मैं उस समय बिहार में था, पहले चरण की वोटिंग से कोई एक महीना पहले। चुनाव बराबर का लग रहा था। यानी एक चौराहे पर भाजपा समर्थक मिलते तो दूसरे चौराहे पर लालू-नीतीश का महागठबंधन? उसके बाद विकास की गंगा बहाने वाला सवा लाख करोड़ का वायदा। 

चुनाव भाजपा की तरफ झुकता दिखाई दे रहा था। ऐसे माहौल में हर हर मोदी, घर घर मोदी का नारा भाजपा ने उछाला था। सोने पर सुहागा सरीखा। लेकिन उस समय दिल्ली में अरविंद केजरीवाल दाल मिल मालिकों से मिल रहे थे। वहां मौजूद एक दाल मिल मालिक ने मुझसे कहा था कि वहीं केजरीवाल के कान में कुछ फुसफुसाया था। अरहर की दाल 180 से 200 रुपए किलो में रिटेल पर मिल रही थी। महागठबंधन ने अरहर मोदी का नारा उछाला और जानकारों का कहना है कि देखते ही देखते चुनाव पलट गया। 

5 साल बाद भाजपा को अरहर मोदी का नारा याद आने लगा है। यही वजह है कि मोदी सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि दाल के दाम काबू में रहें। लेकिन बाजार से अच्छी खबर नहीं आ रही है। पिछले 20 दिनों में सभी तरह की दालों के दाम 30 से 50 फीसदी तक बढ़ गए हैं। इस साल माना जा रहा है कि दाल की पैदावार में कमी आएगी लिहाजा आने वाले समय में दाल के दाम और ज्यादा बढऩे की आशंका पैदा हो गई है। यहां साफ करना जरूरी है कि थोक बाजार में दाल के दाम 30 से 50 प्रतिशत तक बढ़े हैं जाहिर है कि खुदरा यानी स्थानीय करियाने की दुकान पर इसमें और ज्यादा इजाफा हुआ है। 

20 दिन  पहले जो अरहर की दाल थोक बाजार में 80 रुपए किलो बिक रही थी उसी के भाव अब 120 रुपए हो गए हैं व उड़द की दाल के 70 रुपए से बढ़कर सौ रुपए हो गए हैं। इसी तरह 20 दिन पहले जो मूंग 70 रुपए किलो बिक रही थी वह अब 90 रुपए है। चना भी इस दौरान 50 से बढ़कर 70 और मसूर 60 से बढ़कर 65 रुपए किलो हो गई है व भारत में इस समय यानी खरीफ के मौसम  में अरहर, उड़द और मूंग की दाल बाजार में आती है। अरहर या तुअर की दाल की पैदावार मध्य प्रदेश और कर्नाटक में सबसे ज्यादा होती है। इस बार बारिश के चलते करीब 10 से 15 फीसदी तक फसल खराब हुई  है। इसी तरह मूंग की दाल राजस्थान में बहुत होती है जहां बारिश से  नुक्सान हुआ है। कुछ जानकारों के अनुसार वैसे भी पैदावार इस बार कम हुई है। दूसरी तरफ आयात करने में सरकार ने तेजी नहीं दिखाई। यही वजह है कि आम उपभोक्ता को 50 प्रतिशत से ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं। 

खरीफ के अलावा रबी में मसूर और चना होता है। गरीब आदमी के लिए प्रोटीन का सबसे बड़ा स्रोत्र दाल ही है। भारत में हर साल औसत रूप से 220 से 230 लाख टन दाल का उत्पादान होता है जबकि  खपत करीब 240 से 250 लाख टन की है। इस लिहाज से हर साल कमी करीब 20 से 30 लाख टन की रह जाती है जिसकी पूर्ति आयात करके की जाती है। लेकिन जानकारों का कहना है कि किसान जहां 80 प्रतिशत धान और गेंहू बाजार में बेचता है वहीं 60 फीसदी से ज्यादा दाल नहीं बेचता क्योंकि अपने परिवार की खपत के लिए खुद बचा कर रखता है। 

लिहाजा बाजार में दाल की जितनी कमी बताई जाती है वास्तविकता में उससे कहीं ज्यादा होती है। जानकार कहते हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम कानून में बदलाव के बाद दाल व्यापारियों के लिए दाल का स्टाक रखने की सीमा हटा दी गई है लिहाजा होॄडग (भंडारण) की आशंका भी सता रही है। इस कारण सरकार ने दाल के आयात में तेजी नहीं दिखाई तो त्यौहार का मौसम महंगा साबित हो सकता है। इससे भी बड़ी बात है कि अगर दाल के दाम  इसी तरह बढ़ते रहे तो बिहार चुनाव में भी इसका असर देखने को मिल सकता है। 

दाल के साथ-साथ आलू-प्याज-टमाटर का भी ध्यान रखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने ही अपनी खास शैली में पॉट यानी पी से पोटैटो, ओ से ओनियन और टी से टोमैटो का नारा दिया था। प्याज के दाम बारिश में फसल खराब और कम होने के कारण बाजार में बढऩे लगे थे। तभी पिछले महीने मोदी सरकार ने प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी। यहां तक कि समुद्री जहाजों पर लदा प्याज भी उतार लिया गया। 

मीडिया में तो यहां तक छपा कि जो प्याज बंगलादेश निर्यात किया जा रहा था और जो जहाज समुद्र के बीच पहुंच गए थे उनको वापस बुला लिया गया। हालांकि बाद में सरकार ने कहा कि निर्यात के पहले से लिए गए आर्डर का सम्मान किया जाएगा। प्याज के दाम जब 40 रुपए थे तभी सरकार घबरा गई थी और आनन-फानन में निर्यात पर रोक लगा दी गई थी। इससे साफ है कि सरकार प्याज के आंसू रोना नहीं चाहती। आज प्याज के दाम 50 रुपए किलो के आसपास हैं और भाजपा इसमें भी बढ़ौतरी नहीं चाहती है। आलू और टमाटर के दाम को लेकर भी यही सोच है।अब देखना दिलचस्प रहेगा कि इस बार बिहार में हर हर मोदी का नारा चलता है या फिर विपक्ष को अरहर मोदी का नारा लगाने का मौका मिलता है।-विजय विद्रोही    
 

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