हरियाणा-पंजाब के पास‘जल विवाद’ सुलझाने का मौका

Edited By ,Updated: 25 Jul, 2019 03:27 AM

haryana punjab s chance to resolve a  water dispute

क्या हरियाणा और पंजाब के मसले को हिंदुस्तान और पाकिस्तान के झगड़े की तरह लड़कर निपटाया जाएगा? या कि इस मसले को दोनों प्रदेशों और पूरे देश के हित को ध्यान में रखते हुए सुलझाया जाएगा? आज यह सवाल सिर्फ हरियाणा और पंजाब के नागरिकों के सामने ही नहीं,...

क्या हरियाणा और पंजाब के मसले को हिंदुस्तान और पाकिस्तान के झगड़े की तरह लड़कर निपटाया जाएगा? या कि इस मसले को दोनों प्रदेशों और पूरे देश के हित को ध्यान में रखते हुए सुलझाया जाएगा? आज यह सवाल सिर्फ हरियाणा और पंजाब के नागरिकों के सामने ही नहीं, पूरे देश के सामने मुंहबाय खड़ा है। बहुत समय बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक मौका दिया है इस मसले को हमेशा के लिए सुलझाने का। क्या इन दोनों प्रांतों में ऐसे नागरिक बुद्धिजीवी संगठन और राजनेता हैं जो इस मौके का फायदा उठा सकें या कि हमेशा की तरह यह मसला एक बार फिर पिछली राजनीति के लुच्चे वाक्युद्ध, झूठे वाद-विवाद और नकली झगड़े में उलझ कर रह जाएगा? 

इसी 9 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा राज्य सरकारों के बीच नदी जल के बंटवारे के पुराने मुकद्दमे पर एक महत्वपूर्ण आदेश दिया। इस मामले में पुराने आदेश को लागू करवाने की बजाय सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों को आदेश दिया कि वे मिल-बैठकर बातचीत करें और कोई समाधान निकालने की कोशिश करें। कायदे से तो यह प्रयास बहुत पहले होना चाहिए था लेकिन अफसोस कि इतने वर्षों तक दोनों राज्यों के बीच ऐसी पहल नहीं हो पाई। जो काम राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकत्र्ताओं को करना चाहिए था, वह काम आखिर सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा। 

जनता का झगड़ा नहीं
दरअसल रावी और ब्यास नदी के पानी के बंटवारे को लेकर हरियाणा और पंजाब सरकार के बीच का यह विवाद उतना ही पुराना है जितना कि हरियाणा राज्य। यह दोनों सरकारों का झगड़ा है, हरियाणा और पंजाब की जनता का झगड़ा नहीं है। विवाद इतना बड़ा नहीं है जितना बताया जाता है। सतलुज नदी के पानी के बंटवारे को लेकर कोई भी विवाद नहीं है। रावी-ब्यास के पानी को लेकर विवाद दो ङ्क्षबदुओं पर है। पहला तो यह कि रावी-ब्यास में कुल पानी कितना है और दूसरा यह कि उसमें पंजाब का कितना हिस्सा होना चाहिए। चूंकि यह विवाद नहीं सुलझा है इसलिए सतलुज-यमुना लिंक कैनाल (एस.वाई.एल.) अटकी हुई है। 

पिछले कई साल से मैं हरियाणा और पंजाब दोनों राज्यों के संजीदा नागरिकों से अपील कर रहा हूं कि हमें मिल-बैठकर इस विवाद का समाधान निकालना चाहिए। मेरा सुझाव यह रहा है कि हरियाणा सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए अपने कानूनी हिस्से में से कुछ अंश पंजाब के लिए छोडऩे पर सहमत हो जाए और उसके बदले में पंजाब सरकार एक निश्चित समय अवधि में एस.वाई.एल. को बनाने और उसमें पानी के निर्बाध प्रवाह के लिए तैयार हो जाए। 

पहला कदम हरियाणा से
समाधान के लिए पहला कदम हरियाणा की तरफ से आना चाहिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के 2002 के फैसले के मुताबिक हरियाणा का पलड़ा भारी है। दक्षिण हरियाणा की पानी की जरूरत वाजिब है लेकिन एस.वाई.एल. को हरियाणा की जीवनरेखा बताने वाली भाषा सही नहीं है। सच यह है कि हरियाणा के राजनेताओं ने एस.वाई.एल. का मुद्दा इसलिए गरमाकर रखा हुआ है कि जब चाहे चुनाव में इसका इस्तेमाल किया जा सके। अगर हरियाणा के नेताओं को दक्षिण हरियाणा की इतनी ही चिंता होती तो वे पिछले 50 सालों में हरियाणा के अपने पानी में से दक्षिण हरियाणा को न्याय संगत हिस्सा देने का प्रयास करते। हरियाणा की जनता के हित में यह है कि उसे रावी-ब्यास के पानी का जितना भी हिस्सा मिलना है वह वास्तव में मिल जाए, एस.वाई.एल. बन जाए तथा यह मामला और 20 साल तक अधर में न लटका रहे। इसलिए पंजाब के साथ बातचीत में हरियाणा को अगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कुछ कम हिस्सा भी स्वीकार करना पड़े तो उसमें कोई हर्ज नहीं है। 

पंजाब के नेता
उधर पंजाब के नेताओं ने भी इस सवाल पर भावनाओं को भड़काया है, समाज में अंतर फैलाए हैं और कई अन्य असंवैधानिक काम किए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इंदिरा गांधी ने पानी के बंटवारे पर एकतरफा फैसला देकर पंजाब के साथ अन्याय किया था और मालवा के किसान को अचानक उस पानी से वंचित नहीं किया जा सकता जिसका इस्तेमाल अब वह दशकों से कर रहा है लेकिन पंजाब के राजनेताओं को एक भी बूंद हरियाणा और राजस्थान को न देने वाली भाषा छोडऩी होगी, पुरानी सरकारों द्वारा किए समझौतों का सम्मान करना होगा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानना होगा। 

इस समाधान में केन्द्र सरकार और राष्ट्रीय दलों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। समय की मांग है कि प्रधानमंत्री दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बैठकर इस पर एक सहमति बनाएं। केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह रावी-ब्यास में बंटवारे के लिए उपलब्ध पानी की पैमाइश करवाए। साथ ही भारत के हिस्से का जो पानी पाकिस्तान बह जाता है उसे भी बचाकर दोनों राज्यों को उपलब्ध करवाया जाए। सबसे बड़ी भूमिका इस देश की तथाकथित राष्ट्रीय पार्टियों की होगी। पिछले कई दशकों से इन पाॢटयों ने दोमुंहा रुख अख्तियार कर रखा है। कांग्रेस और भाजपा की हरियाणा इकाई एक बात करती है, पंजाब इकाई ठीक उलटी बात करती है और राष्ट्रीय नेता चुप्पी बनाए रखते हैं। यही नाटक तमिलनाडु और कर्नाटक के विवाद में भी खेला जाता है।  अगर हमें देश की सचमुच ङ्क्षचता है तो यह पाखंड खत्म कर देश और प्रदेश दोनों के हित में खुल कर बोलना होगा, यही सच्चा राष्ट्रवाद है।-योगेन्द्र यादव
 

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