वंशवाद की गिरफ्त में हरियाणा की राजनीति

Edited By ,Updated: 05 Oct, 2024 05:04 AM

haryana s politics is in the grip of dynasty politics

भारतीय राजनीति में वंशवाद की बहस नई नहीं है। हर चुनाव में परिवारवाद का मुद्दा उठता है, पर टिकता नहीं। शायद इसलिए कि उससे परहेज तो किसी को नहीं। तीन लालों की राजनीति के लिए हरियाणा देश भर में चॢचत रहा। बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल ने दशकों तक हरियाणा...

भारतीय राजनीति में वंशवाद की बहस नई नहीं है। हर चुनाव में परिवारवाद का मुद्दा उठता है, पर टिकता नहीं। शायद इसलिए कि उससे परहेज तो किसी को नहीं। तीन लालों की राजनीति के लिए हरियाणा देश भर में चॢचत रहा। बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल ने दशकों तक हरियाणा की राजनीति पर राज किया। तीनों लाल जीवनकाल में ही अपने लालों को भी राजनीति में स्थापित कर गए। अब उन लालों की अगली पीढ़ी भी राजनीति में आ चुकी है। चर्चा भले अक्सर 3 लालों और उनके परिवारवाद की होती रही हो, पर चंद अपवादों को छोड़ दें तो हरियाणा की पूरी राजनीति ही वंशवाद की गिरफ्त में है। 

अब जबकि हरियाणा की 15वीं विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं तो ऐसे उम्मीदवार बड़ी संख्या में हैं, परिवारवाद की पूंछ पकड़ कर ही राजनीति कर रहे हैं। यह और भी आश्चर्यजनक है कि परिवारवाद से पोषित राजनीति अब परिवार तोड़ भी रही है। कभी कहा जाता था कि एक ही परिवार के सदस्य अलग-अलग दल में इसलिए रहते हैं कि सत्ता कभी परिवार से बाहर न जाने पाए, पर वह रणनीति भी अब रार में बदलती साफ नजर आती है। 

संख्या के लिहाज से चुनाव मैदान में सबसे ज्यादा सदस्य चौधरी देवीलाल के परिवार के हैं। देवीलाल परिवार 2 दल चला रहा है। एक, मूल पार्टी इंडियन नैशनल लोकदल यानी इनैलो, जिसके सर्वेसर्वा देवीलाल के राजनीतिक उत्तराधिकारी ओमप्रकाश चौटाला और उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला हैं। दूसरा, परिवार में अलगाव के बाद बनी जननायक जनता पार्टी यानि जजपा, जिसके सर्वेसर्वा ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय सिंह चौटाला और उनके दोनों बेटे दुष्यंत एवं दिग्विजय हैं। 

जजपा साढ़े 4 साल हरियाणा में भाजपा के साथ सरकार में जूनियर पार्टनर रही और दुष्यंत डिप्टी सी.एम. देवीलाल के ही एक बेटे रणजीत सिंह चौटाला 2019 में रानिया से निर्दलीय विधायक चुने गए थे। उन्हें भाजपा ने न सिर्फ मंत्री बनाया, बल्कि इसी साल लोकसभा चुनाव में हिसार से पार्टी टिकट भी दिया, पर हार गए। अब जब भाजपा ने रानिया से विधानसभा टिकट लायक नहीं समझा, तो रणजीत फिर निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। दिलचस्प यह कि चाचा रणजीत के मुकाबले अभय चौटाला ने अपने बेटे अर्जुन को चुनाव मैदान में उतार दिया है।

मंडी डबवाली से भाजपा टिकट न मिलने पर अपने एक और चाचा जगदीश के बेटे आदित्य को अभय ने इनैलो उम्मीदवार बना दिया, लेकिन रणजीत के मामले में वैसी उदारता नहीं दिखाई। शायद इसलिए कि रणजीत के रिश्ते दुष्यंत से ज्यादा अच्छे रहे हैं। मंडी डबवाली से जजपा ने दुष्यंत के छोटे भाई दिग्विजय को मैदान में उतार कर चुनाव को राजनीति के साथ-साथ पारिवारिक मुकाबला भी बना दिया है। अभय के एक और चचेरे भार्ई रवि की पत्नी सुनैना चौटाला फतेहाबाद से इनैलो उम्मीदवार हैं।

दुष्यंत दूसरी बार उचाना से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां उनका मुकाबला आई.ए.एस. की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आए बृजेंद्र सिंह से है। बृजेंद्र भी वंशवादी राजनीति से हैं। वह उत्तर भारत के बड़े किसान नेताओं में शुमार रहे चौधरी छोटू राम के वंशज बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं। बीरेंद्र सिंह कहते रहे हैं कि राजीव गांधी की हत्या हो जाने के कारण 1991 में वह हरियाणा का मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। 2014 में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए बीरेंद्र सिंह केंद्र में मंत्री बने, पत्नी प्रेमलता हरियाणा में विधायक और फिर बेटा बृजेंद्र 2019 में हिसार से सांसद, लेकिन इसी साल लोकसभा चुनाव से पहले पूरा परिवार कांग्रेस में लौट आया। बंसीलाल के दोनों बेटे रणबीर महेंद्रा और सुरेंद्र सिंह राजनीति में रहे। रणबीर राजनीति के साथ-साथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में भी सक्रिय रहे और उसके अध्यक्ष बने।

सुरेंद्र सिंह को बंसीलाल ज्यादा पसंद करते थे। इसलिए अपनी हरियाणा विकास पार्टी बना कर आखिरी बार मुख्यमंत्री बने बंसीलाल जब कांग्रेस में लौटे तो सुरेंद्र सिंह ही उनके राजनीतिक वारिस बने। हैलीकॉप्टर दुर्घटना में सुरेंद्र की मृत्यु के बाद उनकी जगह पत्नी किरण चौधरी ने ली, जो पहले दिल्ली में राजनीति कर रही थीं। किरण हरियाणा में मंत्री बनीं और उनकी बेटी श्रुति लोकसभा सांसद, पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लगातार टकराव के चलते दोनों इसी साल भाजपा में चली गईं।

किरण को राज्यसभा सांसद बनाने के बाद भाजपा ने श्रुति को उनकी विधानसभा सीट तोशाम से टिकट दे दिया है, जहां उनका मुकाबला अपने ही ताऊ रणबीर महेंद्रा के बेटे अनिरुद्ध चौधरी से है, जो कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। सबसे लंबे समय तक लगातार हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी राजनीतिक परिवार से हैं। उनके दादा मातूराम समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी रहे तो पिता चौधरी रणबीर सिंह संविधान सभा के सदस्य तथा पंजाब एवं हरियाणा में मंत्री भी रहे। 

2005 में भूपेंद्र हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके बेटे दीपेंद्र भी अमरीकी नौकरी छोड़ कर राजनीति में आ गए, जो रोहतक से चौथी बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। हुड्डा के वर्चस्व को चुनौती देने वाली राज्यसभा सांसद कुमारी सैलजा के पिता दलबीर सिंह कांग्रेस के बड़े दलित नेता रहे। दूसरे हुड्डा विरोधी राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला के पिता शमशेर सिंह सुरजेवाला भी कांग्रेस के बड़े नेता रहे।
अब रणदीप के बेटे आदित्य भी कैथल से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं।

हिसार से कांग्रेस सांसद जयप्रकाश ने कलायत से बेटे विकास सहारण को टिकट दिलवाया है तो रेवाड़ी से दूसरी बार लड़ रहे चिरंजीव राव भी पूर्व मंत्री कैप्टन अजय यादव के बेटे हैं। भजनलाल जीवनकाल में ही पुत्रों को राजनीति में स्थापित कर गए थे। 2005 में प्रचंड बहुमत के बावजूद भजनलाल को मुख्यमंत्री न बनाए जाने पर बनाई हरियाणा जनहित कांग्रेस समेत कांग्रेस में लौटे कुलदीप अब अपने परिवार समेत भाजपा में हैं, तो चंद्रमोहन कांग्रेस में ही रहे। हरियाणा में वंशवाद की फेहरिस्त बहुत लंबी बन सकती है। सभी दलों में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या शायद कम होगी, जो वंशवादी राजनीति की देन नहीं हैं। -राज कुमार सिंह

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