सूचना-तकनीक कानून के नियमों में पर्याप्त नियंत्रण व संतुलन हों

Edited By Pardeep,Updated: 27 Dec, 2018 05:03 AM

have sufficient control and balance in the rules of technology law

केन्द्र सरकार के दो हालिया कदमों ने एक बार फिर आम जनता तथा मीडिया पर चौकसी बढ़ाने के इसके प्रयासों पर ध्यान केन्द्रित कर दिया है। यह मीडिया को नियंत्रित करने के उद्देश्य से इसके द्वारा उठाए गए कई कदमों के अतिरिक्त है। यह अब एक सामान्य जानकारी की बात...

केन्द्र सरकार के दो हालिया कदमों ने एक बार फिर आम जनता तथा मीडिया पर चौकसी बढ़ाने के इसके प्रयासों पर ध्यान केन्द्रित कर दिया है। यह मीडिया को नियंत्रित करने के उद्देश्य से इसके द्वारा उठाए गए कई कदमों के अतिरिक्त है। 

यह अब एक सामान्य जानकारी की बात है कि सरकार अथवा सत्ताधारी पार्टी मीडिया के बड़े वर्गों पर अपना नियंत्रण कायम करने में सक्षम होती है। यह उद्देश्य या तो धमकियां देकर तथा कुछ मीडिया हाऊसिज को धमकाने के लिए अपनी एजैंसियों का इस्तेमाल करके अथवा आपराधिक मानहानियों के मामलों सहित मानहानि के मामले दर्ज करने को बढ़ावा देकर मीडिया को चुप कराने के लिए हासिल किया जाता है। 

बहुत से मीडिया हाऊसिज ने इससे संकेत लेते हुए स्वत: लोकतंत्र के पहरेदार के तौर पर अपनी भूमिका से पीछे हटने तथा सरकार के पालतू बनने को अधिमान दिया। इससे सर्वाधिक बुरी तरह से प्रभावित टैलीविजन मीडिया है। चर्चाओं का उद्देश्य, जिनमें एंकर खुद एकतरफा चर्चाओं का हिस्सा बन जाते हैं, इन चैनलों के एजैंडे पर संदेह करने के लिए कोई जगह नहीं छोड़ता। उनमें से बहुत से ऐसे किसी भी मुद्दे को दिखाने अथवा उस पर चर्चा करने से बचते हैं, जिसे सरकार विरोधी माना जाता है। कोई हैरानी की बात नहीं कि अधिकतर लोगों ने टैलीविजन समाचार देखना छोड़ दिया है। 

अब ध्यान सोशल मीडिया पर
जहां सरकार ने सम्भवत: इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को काफी हद तक नियंत्रित करने का अपना उद्देश्य हासिल कर लिया है, वहीं अब ऐसा दिखाई देता है कि अब यह अपना ध्यान सोशल मीडिया पर केन्द्रित कर रही है। नवीनतम प्रस्ताव के अंतर्गत यह सोशल मीडिया संबंधी नियमों का एक मसौदा लेकर आई है, जो सरकारी अधिकारियों को अत्यंत शक्तियां प्रदान करते हैं। ये नियम, जिन्हें संसद में प्रस्तुत नहीं किया जाएगा और न ही उन पर चर्चा होगी क्योंकि संबंधित मंत्रालय इन्हें अधिसूचित कर सकेंगे, व्हाट्सएप, फेसबुक, गूगल तथा ट्विटर जैसे सोशल मैसेजिंग एप्स के लिए आवश्यक बना देंगे कि किसी भी मैसेज के मूल की खोज तथा रिपोॄटग की आज्ञा दी जाए। वर्तमान में इनमें से कुछ कम्पनियां व्यक्तिगत इस्तेमालकत्र्ताओं की निजता की सुरक्षा करती हैं तथा वार्तालापों या संदेशों का कोई रिकार्ड नहीं रखतीं। 

प्रस्ताव सूचना तकनीक कानून की धारा 79 के अन्तर्गत नियमों में संशोधन करने तथा ऐसी विषय-वस्तुओं, जिन्हें ‘गैर-कानूनी’ के तौर पर देखा जाता है, के मूल का पता लगाने हेतु ऑनलाइन प्लेटफाम्र्स के लिए ‘अत्यंत सक्रिय रूप से तकनीक लागू करना’ अनिवार्य बनाता है। सरकारी एजैंसियों को प्रस्तावित व्यापक शक्तियों का आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है जैसा कि अतीत में पहले भी कई बार हो चुका है। 

फर्जी या गैर-कानूनी समाचार
यहां तक कि ऐसा इस बात को परिभाषित किए बिना किया जा रहा है कि ‘फर्जी समाचार’ तथा ‘गैर-कानूनी समाचार’ क्या है। यह सर्वविदित है कि सरकार आलोचना पसंद नहीं करती तथा वर्तमान सरकार इस मामले में कहीं अधिक संवेदनशील होने के लिए जानी जाती है। इसका हालिया उदाहरण राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एन.एस.ए.) के तहत मणिपुरी पत्रकार की महज इसलिए गिरफ्तारी है कि उसने सरकार की कार्यप्रणाली की आलोचना की थी। 

नवीनतम प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के 2015 के निर्णय के भी खिलाफ जाएगा जिसमें इसने आई.टी. कानून की धारा 66ए को रद्द कर दिया था, जो उन लोगों की गिरफ्तारी का अधिकार देता था, जो कथित तौर पर भड़काऊ विषय- वस्तु ऑनलाइन पोस्ट करते हैं। जहां उन संदिग्धों के बीच बातचीत सुनने की जरूरत समझ में आती है, जो राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हैं अथवा नफरत तथा साम्प्रदायिकता फैलाने का प्रयास कर रहे हैं, सभी नागरिकों की सुरक्षा तथा निजता से समझौता करना न्यायसंगत नहीं है। इसका अर्थ यह होगा कि सरकारी एजैंसियां हर किसी के साथ दोषी की तरह व्यवहार कर सकती हैं, जब तक कि वे निर्दोष साबित न हो जाएं। नवीनतम कदम एक अन्य कड़े निर्णय के तौर पर आया है, जिसके अंतर्गत 10 सरकारी एजैंसियां ‘किसी भी उत्पन्न, प्रेषित, प्राप्त अथवा किसी कम्प्यूटर में संग्रहित सूचना को बीच में रोक तथा उसकी निगरानी कर सकती हैं और उसे डीकोड कर सकती हैं।’ 

यद्यपि आदेश यह कहता है कि ऐसी किसी भी कार्रवाई के लिए गृह सचिव की स्वीकृति की जरूरत होगी और ऐसे मामलों के लिए एक समीक्षा पैनल गठित किया जाएगा, एक व्यवस्था यह है कि आपातकालीन मामलों में इनमें से कोई भी एजैंसी सूचना प्राप्त कर सकती है और उसे तीन दिनों के भीतर गृह सचिव को इसकी जानकारी देने की जरूरत होगी। इसके साथ ही यदि अगले सात दिनों में स्वीकृति नहीं दी जाती तो सूचना में बाधा डालना (इंटरसैप्शन) रोकना होगा। इससे ऐसी एजैंसियों को किन्हीं व्यक्तियों अथवा संगठनों की जासूसी करने के लिए एक व्यापक लाइसैंस हेतु स्पष्टत: 10 दिन मिल जाएंगे। 

राजनीतिक दलों का डर
सरकार का तर्क है कि ये आदेश पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में भी अस्तित्व में थे लेकिन तथ्य यह है कि सुप्रीम कोर्ट का निजता के अधिकार को एक मूलभूत अधिकार बनाने संबंधी हालिया निर्णय तब अस्तित्व में नहीं था। इसके साथ ही संदेह का माहौल तथा राजनीतिक दलों द्वारा व्यक्त किया गया यह डर कि इन नियमों का दुरुपयोग उनके खिलाफ जासूसी के लिए किया जाएगा, इस आवश्यकता को दर्शाता है कि नियमों में पर्याप्त नियंत्रण तथा संतुलन अवश्य शामिल किए जाने चाहिएं। नौकरशाहों, जो आमतौर पर सरकार द्वारा किए जाने वाले गलत कार्यों के खिलाफ खड़े नहीं होते, की ओर से आदेश देने की बजाय ऐसी किसी भी चौकसी का आदेश देने से पूर्व इसमें न्यायपालिका को शामिल करने का प्रावधान होना चाहिए।-विपिन पब्बी

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