कश्मीर की चुनौतियों से आगे देखना होगा

Edited By ,Updated: 07 Sep, 2019 12:25 AM

have to look ahead of the challenges of kashmir

पाकिस्तान खुद अपने द्वारा खड़े किए गए युद्धोन्माद में बुरी तरह से जकड़ा गया है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने तथा वर्तमान स्थिति के मद्देनजर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुछ दिन पूर्व भारत को सीधे सैन्य संघर्ष और यहां तक कि परमाणु हथियारों...

पाकिस्तान खुद अपने द्वारा खड़े किए गए युद्धोन्माद में बुरी तरह से जकड़ा गया है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने तथा वर्तमान स्थिति के मद्देनजर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कुछ दिन पूर्व भारत को सीधे सैन्य संघर्ष और यहां तक कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल तक की धमकी दे डाली। क्या उन्हें परमाणु युद्ध के परिणाम का पूरी तरह से एहसास है? मुझे आशा है उन्हें है। फिर यह राग क्यों? यह इमरान खान से लेकर इस्लामाबाद की बेतुकी बातों के खेल का पर्दाफाश करता है और अब यू-टर्न लेते हुए इस्लामाबाद ने कहा है कि उसकी परमाणु नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। कोई नहीं जानता कि कब तक? 

फिर भी मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को समाप्त करना इस्लामाबाद के लिए ङ्क्षचता का विषय कैसे हो गया? यह एक अस्थायी व्यवस्था थी जब जवाहर लाल नेहरू नई दिल्ली में सत्तासीन थे। इसलिए यह भारत का आंतरिक मामला था और है। मगर इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान के नेता किसी भी कीमत पर इस राज्य पर कब्जा करना चाहते थे। पाकिस्तान द्वारा शुरू किए गए कबायलियों के हमले इसकी बड़ी योजना का हिस्सा थे, जो सफल नहीं हुई। उस स्थिति में कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के पास भारत से सैन्य सहयोग लेने तथा राज्य को ‘पाकिस्तान प्रायोजित हमले’ से बचाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था। तब से भारत जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के ‘छद्म युद्ध’ के खिलाफ कड़ा संघर्ष कर रहा है। 

इमरान के घडिय़ाली आंसू
आज हम जो देख रहे हैं, वे कश्मीर को लेकर प्रधानमंत्री इमरान खान के घडिय़ाली आंसू हैं। वह अवश्य भूल गए होंगे कि भारत ने एक धर्म 
शासित राष्ट्र बनने से इंकार कर दिया था क्योंकि इससे हमारे लोगों की प्रतिभा तथा उनके सभ्यात्मक मूल्यों को गम्भीर चोट पहुंचती। हमारे भाजपा नेताओं को अवश्य ऐसे किसी रवैये के गम्भीर उलझावों का एहसास होना चाहिए। हमें हिन्दू उन्मुख होने के बावजूद एक धर्मनिरपेक्ष, बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र के तौर पर अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखना होगा मगर हिन्दूवाद विश्व का सबसे महान उदार दर्शन है। और केरल के नवनियुक्त राज्यपाल के शब्दों को याद करें। वह कहते हैं कि आज भारत में राम एकीकरण का सबसे बड़ा कारक हैं। 

मेरा दृढ़विश्वास है कि हमें सहनशीलता की भावना तथा एक खुले मन के साथ अपने सभ्यात्मक मूल्यों को अवश्य बचाए रखना है। यह सहिष्णुता ही है जो विभिन्नता उत्पन्न करती है। हमें विभिन्नता के डर को अपनी सहिष्णुता को नष्ट करने तथा एक असहिष्णु समाज बनाने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। मुझे अफसोस है कि हमारे नेता एक काल्पनिक जगत में रह रहे हैं और वैश्विक नेताओं को अपने सभ्यात्मक मूल्यों बारे सही संदर्भ में नहीं बता सके। 

हजारों सालों तक घाटी को भगवान शिव की पत्नी उमा के मूर्तरूप के तौर पर जाना जाता रहा। इसके साथ ही श्रीनगर भी ऋग्वेद में उल्लेखित वितास्त्र (जिसका नाम अब जेहलम कर दिया गया है) के किनारे बसा था (और है)। भारत के अन्य हिस्सों के विपरीत कश्मीर के इतिहास का एक अविरल रिकार्ड है। इसका पहले का अधिकतर हिस्सा पौराणिक है, जिसका उल्लेख कश्मीर के महान इतिहासकार कल्हण ने अपने दस्तावेज ‘राजतरंगिणी’ में किया है। कल्हण स्वीकार करते हैं कि उन्होंने खुद इतिहास पर लगभग 11 रचनाओं से मदद ली थी। वे उपलब्ध नहीं हैं। मगर पंडित पोनराजा इस इतिहास को 15वीं शताब्दी तक ले गए जबकि श्रीवर तथा दीवान कृपाराम इसे 1586 तक आगे ले गए जब घाटी पर मुगलों ने कब्जा कर लिया था। 

सच्चाइयों का सामना
जहां हमें अतीत के उतार-चढ़ावों को असम्बद्ध करते हुए वर्तमान कश्मीर की सच्चाइयों का सामना करने की जरूरत है, वहीं गहरे समाए अपने सभ्यात्मक मूल्यों को भी निरंतर मन में रखना होगा। इस्लाम के आगमन तक कश्मीर संस्कृति का एक फलता-फूलता केन्द्र था। यहां तक कि अल बिरूनी ने भी पाया था कि यह भूमि चिकित्सा, अंतरिक्ष विज्ञान तथा ज्योतिष विद्या जैसे विषयों में ‘‘हिन्दू विज्ञान’’ का हाई स्कूल’ थी।
कश्मीर की समृद्ध विरासत की कुछ झलकियां दिखाने के पीछे मेरा उद्देश्य यह है कि हमारे राजनीतिज्ञों को पाकिस्तानी दुष्प्रचार, धार्मिक आतंकवाद तथा कट्टरवाद के अवांछित प्रभाव के अंतर्गत वैदिक साहित्य तथा कलाओं के पहलुओं की समझ को नहीं भुलाना चाहिए। 

इतिहास के साथ-साथ पाकिस्तान ने 70 वर्षों से कश्मीर पर अपनी नीति को जारी रखा है। यह भारत तथा इसके लोगों को स्वीकार्य नहीं है। इतिहास एक महान अध्यापक है। यदि सही सबक न सीखा जाए या उसका अनुसरण न किया जाए तो यह घटनाक्रमों की रफ्तार को बढ़ा देता है। हम एक व्यापक उदार दृष्टिकोण के साथ एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। हमें लोकतंत्र के औजारों का समझदारीपूर्वक इस्तेमाल करते हुए सभी सम्प्रदायों के लिए सहिष्णुता, समझ तथा सम्मान के साथ 21वीं शताब्दी के भारत के लिए नई छवि बनानी होगी। नीति निर्माण के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में देश को इसकी विविधतापूर्ण अलोकतांत्रिक शक्ति के साथ समझौता करते हुए नहीं देखा जाना चाहिए। 

लोकतंत्र की शक्ति के अतिरिक्त आज की वैश्विक व्यवस्था में यह याद रखा जाना महत्वपूर्ण है कि असली ताकत बंदूक की नली से नहीं बहती बल्कि आर्थिक मांसपेशियों की शक्ति से निकलती है, जिन्हें कोई राष्ट्र फडफ़ड़ाने में सक्षम हो। इसलिए आज नेतृत्व का पहला तथा सबसे महत्वपूर्ण कार्य आर्थिक चुनौतियों को शीर्ष प्राथमिकता पर रखना है। दुख की बात है कि मोदी सरकार ने इस विकट कार्य को नजरअंदाज किया है। जरूरत अर्थव्यवस्था को नौकरशाही के चंगुल से आजाद करवाने तथा बिना किसी डर अथवा संदेह के आगे बढऩे हेतु नए उद्यमियों के लिए अवसरों की स्थितियां तैयार करने की है। 

स्रोतों व मानवीय कौशल का लाभ
हमारे सिस्टम में प्रचुरता से उपलब्ध स्रोतों तथा मानवीय कौशल से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए हमें अपने देश में अवसरों की श्रेणियों तथा आयामों को व्यापक बनाना होगा। कश्मीर में भारत के सामने चुनौतियों तथा इमरान खान के पाकिस्तान व इसके जनरलों की बेवकूफियों को ध्यान में रखते हुए इस कड़वे सच को प्रधानमंत्री मोदी तक पुन: पहुंचाना होगा। हमारे नेताओं को स्वीकार करना होगा कि भारत अब कुछ ऐसी भू-राजनीतिक स्थितियों में उलझ गया है, जिन्हें मैत्रीपूर्ण नहीं कहा जा सकता। चीन की ताकत बहुत बढ़ रही है, ऐसे ही पाकिस्तान की कौमपरस्ती। 

इन परिस्थितियों में यह याद रखने की जरूरत है कि कल के भारत के नवीनीकरण तथा पुनॢनर्माण की जड़ें एकतरफा तथा घिसे-पिटे नारों में नहीं हैं। अच्छा समाज व्यक्तियों के उद्यम तथा प्रयासों के साथ-साथ राज्य के समझदारीपूर्ण तथा संवेदनशील दखलों से संचालित किया जा सकता है। निश्चित तौर पर भारत के भविष्य की परिकल्पना को रि-डिजाइन करने के लिए, जम्मू-कश्मीर की जमीनी हकीकतों तथा मुख्यधारा भारत के साथ इसके एकीकरण को ध्यान में रखते हुए एक कड़े यथार्थवाद की जरूरत है। बहुत कुछ घाटी के लोगों को साथ लेकर चलने के साथ कड़े विकल्प चुनने की प्रधानमंत्री मोदी की राजनीतिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करेगा।-हरि जयसिंह
 

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