Opinion: विफलताओं के भंवर में फंसी हिमाचल सरकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jun, 2018 09:52 AM

himachal government stuck in the vortex of failures

हिमाचल प्रदेश में ठाकुर जयराम सरकार अपने गठन के समय से ही विसंगतियों का शिकार रही है। विधानसभा चुनावों में जनता-जनार्दन का फैसला आने के बाद पहले दिन ही इस बात का पेंच फंस गया था कि आखिर बहुमत हासिल कर चुकी  भाजपा का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन...

हिमाचल प्रदेश में ठाकुर जयराम सरकार अपने गठन के समय से ही विसंगतियों का शिकार रही है। विधानसभा चुनावों में जनता-जनार्दन का फैसला आने के बाद पहले दिन ही इस बात का पेंच फंस गया था कि आखिर बहुमत हासिल कर चुकी  भाजपा का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? 

भाजपा नेतृत्व द्वारा जिन्हें चुनावों से पहले मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया था, वह सदन में ही नहीं पहुंच पाए और भाजपा प्रदेश में अपनी जीत का जश्न मनाने से ही वंचित रह गई। प्रो. प्रेम कुमार धूमल के अलावा प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सतपाल सत्ती भी हार गए। भाजपा के कुछ और वरिष्ठ नेता भी अपने हलकों में लुढ़क गए यानी बहुमत पाकर भी भाजपा  अनिश्चितता के बादलों से घिर गई। भाजपा आलाकमान के दूतों के समक्ष शिमला में नेतृत्व को लेकर चला ‘‘हाई वोल्टेज  ड्रामा’’ पूरे प्रदेश की जनता ने देखा। अंतत: भाजपा आलाकमान ने ठाकुर जयराम के नाम पर मोहर लगाई। 

ठाकुर जयराम एक नेक, शरीफ और ईमानदार इंसान हैं। अभी तक उनकी चादर भी सफेद रही है और वह कमोबेश विवादों से भी दूर रहे हैं लेकिन प्रशासनिक अनुभव की कमी और भाजपा की भीतरी राजनीति की छाया ने उन्हें अभी तक भंवर में ही उलझा कर रखा है। स्थितियां कई बार सरकार के वश से बाहर होती दिखी हैं। कानून व्यवस्था के मोर्चे पर तो सरकार कटघरे में खड़ी नजर आई ही है, साथ ही राजधानी में पैदा हुए जल संकट से निजात पाने में सरकार के पसीने छूटते नजर आए। ऐसा पहली बार हुआ कि पर्यटन के मौसम में पहाड़ों की रानी शिमला में उपजा अभूतपूर्व जल संकट राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की चर्चा बन गया। पर्यटन व्यवसाय को तो चपत लगी ही, साथ ही सरकार की भी खूब किरकिरी हुई।

प्रदेश में भाजपा सरकार बने 6 महीने हो रहे हैं। इस अवधि में कानून व्यवस्था को लेकर कई बार सवाल खड़े हुए हैं। महिलाओं व अबलाओं से रेप की दर्जनों घटनाओं ने जहां देवभूमि को शर्मसार किया है, वहीं हत्याओं की वारदातों ने प्रदेश को थर्राया भी है। कसौली में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनुपालना के लिए गई एक सरकारी महिला अधिकारी की दिनदिहाड़े पुलिस की मौजूदगी में हत्या करके पिस्तौल लहराते हुए हत्यारा भाग निकला। लचर प्रशासनिक तंत्र पर कोर्ट ने भी लताड़ लगाई तो सरकार के हाथ-पांव फूलते नजर आए। बाद में पुलिस ने मशक्कत करके कुछ दिनों बाद हत्यारा तो पकड़ लिया लेकिन सरकार के प्रति लोगों के भरोसे में दरार आ गई। 

ठाकुर जयराम सरकार के समक्ष मुश्किलें एक नहीं, अनेक रही हैं। मुख्यमंत्री को सत्ता संभालने के बाद सबसे पहले अपने ही गृह विधानसभा क्षेत्र में जनता के आक्रोश, रैलियों व धरना-प्रदर्शनों से दो-चार होना पड़ा। स्थिति संभालते-संभालते कई दिन लग गए। फिर रेप व हत्याओं की दर्जनों वारदातें मीडिया की सुर्खियां बनने लगीं। आर्थिकसंकट से इस समय देश के कई सरकारें जूझ रही हैं। ठाकुर जयराम सरकार भी इस संकट से अछूती नहीं है। पूर्व वीरभद्र सरकार के विरुद्ध प्रदेश को कर्जों में डुबोने का आए दिन राग अलापने वाली भाजपा भी आज अपनी सरकार में कर्ज लेकर घी पी रही है यानी जो लोग कांग्रेस पर प्रदेश को कर्जों में डुबोने का आरोप लगाते थे, आज खुद कर्जे ले रहे हैं। केन्द्र से प्रदेश को जो आॢथक सहायता मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिल रही। 

केन्द्र व प्रदेश में एक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद अभी तक जयराम सरकार केन्द्र की मोदी सरकार से प्रदेश के लिए कोई आर्थिक व औद्योगिक पैकेज नहीं ला पाई है जबकि भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता द्वारा प्रधानमंत्री मोदी जी के हिमाचल प्रेम का बढ़-चढ़कर बखान किया जाता है। हिमाचल प्रदेश में रेल विस्तार के भाजपा नेताओं के दावे भी हवा-हवाई हैं और भाजपा नेता अभी तक कागजों में ही रेल दौड़ा रहे हैं। बहुप्रचारित राष्ट्रीय राजमार्ग भी अभी तक हवा में हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रदेश के भाजपा कार्यकत्र्ताओं को ही अभी तक यह एहसास नहीं हो पा रहा कि प्रदेश में उनकी सरकार है। 

आम जनता ही नहीं बल्कि भाजपा कार्यकत्र्ताओं में भी यह धारणा बल पकड़ रही है कि राज्य में उनकी सरकार ए.बी.वी.पी. व आर.एस.एस. से जुड़े लोगों के ‘मार्गदर्शन’ से चल रही है और अफसरशाही का भी पूरी तरह राजनीतिकरण कर दिया गया है। कार्यकत्र्ता भी यह गिला कर रहे हैं कि उनकी ही सरकार में उनके काम नहीं हो रहे। जन-आकांक्षाओं पर खरा उतरने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को यह मिथ तोडऩा होगा और खुद कोमजबूती से साबित करना होगा। समस्याओं के भंवर से बाहर आने के लिए जिस राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है, वह अभी तक दिखाई नहीं दी है।-राजेन्द्र राणा (विधायक हिमाचल प्रदेश) 

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