हिंदी को मिले ‘राष्ट्रभाषा’ वाला सम्मान

Edited By Pardeep,Updated: 14 Sep, 2018 03:56 AM

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आज वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभर चुकी है। हमारे देश में हिन्दी बोलने व समझने वाले लोगों की संख्या 70 करोड़ से अधिक है। पूरी दुनिया में 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है।...

आज वैश्वीकरण के वर्तमान दौर में हिंदी विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली भाषा बनकर उभर चुकी है। हमारे देश में हिन्दी बोलने व समझने वाले लोगों की संख्या 70 करोड़ से अधिक है। पूरी दुनिया में 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें  बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही हैं। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हिन्दी प्रेम तो जगजाहिर है। वह अपने विदेश दौरों के दौरान जिस तरह हिन्दी में बोलकर हमारी मातृभाषा को महिमामंडित करते हैं, वह वाकई काबिले-तारीफ  है। सनद रहे कि हिंदी को सशक्त भाषा के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने के लिए भारत सरकार की पहल पर बीते माह 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में ‘हिन्दी, विश्व और भारतीय संस्कृति’ के मूल बिंदु पर केन्द्रित आयोजित 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन को कई कारणों से याद किया जाएगा। उक्त सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में हिन्दी को परम्परा व भूगोल के आईने से देखा गया और उसकी धुरी को पहचानने के प्रयास हुए। गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रधानमंत्री का हिंदी में अभिभाषण समूचे विश्व में हिन्दी को गौरवान्वित कर गया था। 

बीते 50 सालों में जितनी प्रगति हिन्दी ने की है, उतनी संसार की किसी भाषा ने नहीं की। आज हिन्दी भाषा में विज्ञान, आयुर्ज्ञान, अभियांत्रिकी आदि विषयों तथा शब्दकोशों एवं ज्ञानकोशों की बड़ी निधि तैयार हो चुकी है। भाषा विज्ञानियों का मानना है कि सर्वाधिक सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ ङ्क्षहदी आज विश्व की संभवत: सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है जिसे बोलने और चाहने वाले लोग दुनिया भर में बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हिन्दी और इसकी बोलियां उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में तो बोली ही जाती हैं, साथ ही अन्य देशों जैसे फिजी, मॉरीशस, गुयाना, सूरीनाम और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है। 

हमारी सरकार हर सम्भव कोशिश कर रही है कि हिन्दी के प्रचलन को बढ़ावा देने के लिए उचित माहौल तैयार किया जा सके। इसके तहत ङ्क्षहदी के विकास के लिए खासतौर से राजभाषा विभाग का गठन किया गया है। यह विभाग इस दिशा में प्रयासरत है कि केन्द्र सरकार के अधीन कार्यालयों में अधिक से अधिक कार्य ङ्क्षहदी में हो। देवनागरी लिपि के कारण हिन्दी को इंटरनैट, सूचना प्रौद्योगिकी तथा जनसंचार के क्षेत्रों में बीते कुछ सालों में व्यापक लोकप्रियता मिली है। जानना दिलचस्प होगा कि लोगों को हिन्दी सिखाने के मकसद से बीते वर्ष हिन्दी दिवस के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राजभाषा विभाग द्वारा सी डैक के सहयोग से तैयार किए गए लर्निंग इंडियन लैंग्वेज विद आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस (लीला) की मोबाइल ऐप का लोकार्पण भी किया था। उक्त अवसर पर राष्ट्रपति ने देशभर के विभिन्न मंत्रालयों, विभागों व कार्यालयों के प्रमुखों को राजभाषा कार्यान्वयन में उत्कृष्ट कार्य हेतु पुरस्कृत करते हुए हिन्दी को संवाद और मौलिक सोच की भाषा कहा था। 

गौरतलब हो कि हिन्दी न सिर्फ हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक मजबूत सेतु है अपितु भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही यह 11 राज्यों और 3 संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। वर्तमान के तकनीकी युग में यदि विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी हिंदी को उचित स्वीकार्यता मिल सके तो देश की प्रगति में ग्रामीण युवाओं की भी अच्छी-खासी तादाद अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकेगी। इन पहलुओं पर विचार करते हुए राजभाषा विभाग ने सरल ङ्क्षहदी शब्दावली तैयार की है ताकि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में तकनीकी ज्ञान से संबंधित साहित्य का सरल अनुवाद किया जा सके। 

यही नहीं, राजभाषा विभाग द्वारा राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन योजना के द्वारा हिंदी में ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों के लेखन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे हमारे विद्यार्थियों को ज्ञान-विज्ञान संबंधी पुस्तकें हिंदी में उपलब्ध होंगी। ङ्क्षहदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने ‘राजभाषा कीर्ति पुरस्कार’ व ‘राजभाषा गौरव पुरस्कार’ जैसी अनेक पुरस्कार योजनाएं भी चालू कर रखी हैं। आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी में पुस्तक लेखन को प्रोत्साहन देने के लिए भी सरकार पुरस्कार प्रदान करती है। इन प्रोत्साहन योजनाओं से हिंदी के विस्तार को बढ़ावा मिल रहा है। भारत सरकार के राजभाषा विभाग द्वारा उठाए गए कदमों के परिणामस्वरूप कम्प्यूटर पर हिंदी में कार्य करना बीते कुछ सालों में सुविधाजनक हो गया है। राजभाषा विभाग द्वारा वैब आधारित सूचना प्रबंधन प्रणाली भी विकसित की गई है, जिससे सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों द्वारा संचालित जन कल्याण की विभिन्न योजनाओं की जानकारी आम नागरिकों को हिन्दी में मिलने से गरीब, पिछड़े और कमजोर वर्ग के लोग भी लाभान्वित होते हुए देश की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। इसके साथ ही विदेश मंत्रालय द्वारा विश्व हिंदी सम्मेलन और अन्य अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य भी तेजी से किया जा रहा है। सनद रहे कि यूनेस्को की सात भाषाओं में हिंदी को भी मान्यता हासिल है। उम्मीद है कि हिंदी को शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा भी प्राप्त हो सकेगा। 

नोबेल पुरस्कार विजेता विश्व कवि गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने हिंदी के महत्व को अत्यन्त भावपूर्ण रूप में परिभाषित करते हुए कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं जबकि हिंदी महानदी।’ हिन्दी को देश की एकता की कड़ी बनाने में मीडिया, टी.वी. और सिनेमा की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। यदि यह कहें कि इन माध्यमों ने हिन्दी को विश्वभाषा बना दिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। टैलीविजन, चित्रपट, संगीत तथा धारावाहिकों ने हिन्दी को महलों से लेकर झोंपड़ी तक सर्वत्र पहुंचा दिया है। यह भाषा विभिन्न भाषाओं के उपयोगी और प्रचलित शब्दों को अपने में समाहित कर सही मायनों में भारत की सम्पर्क भाषा होने की भूमिका निभा रही है। हिन्दी आज विश्व में मनोरंजन की दुनिया में सबसे आगे है। अनेक मनोरंजक चैनलों सहित दर्जनों न्यूज चैनल हिन्दी भाषा में प्रसारित होने लगे हैं। 

माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स का यह कहना वाकई काफी मायने रखता है कि जब बोलकर लिखने की तकनीक उन्नत हो जाएगी तो हिन्दी अपनी लिपि की श्रेष्ठता के कारण सर्वाधिक सफल होगी। हम जानते हैं कि अब कई सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर अंतॢनर्मित ङ्क्षहदी यूनिकोड की सुविधा के साथ आ रहे हैं। जहां तक तकनीक में हिंदी के प्रयोग की बात है तो जैसे-जैसे तकनीक विकसित होती जाएगी, देवनागरी लिपि के प्रयोग की स्पष्ट विधि भी निकाल ली जाएगी। विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली माने जाने वाले देश अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा तो अपने देश के नागरिकों को कई बार हिंदी सीखने की सलाह दे चुके हैं क्योंकि उन्हें भी लगता है कि भारत एक उभरती हुई विश्व शक्ति है और भविष्य में ङ्क्षहदी सीखना अनिवार्य होगा। 

14 सितम्बर, 1949 का दिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। इसी दिन संविधान सभा ने ङ्क्षहदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने के लिए और हिन्दी के उपयोग को प्रचलित करने के लिए साल 1953 के उपरांत हर साल 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है। देश के जाने-माने भाषा विज्ञानी और हिन्दीविद् डा. जयन्ती प्रसाद नौटियाल की मानें तो नब्बे के दशक के उपरान्त जब भारत में उदारीकरण व सार्वभौमिकरण का दौर चला तो उस वक्त अनेक बुद्धिजीवियों का मत था कि ग्लोबलाइजेशन से भारत का आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य आमूलचूल परिवर्तित हो जाएगा। 

विदेशी पूंजीवाद से विदेशी संस्कृति हावी हो जाने से हमारा सांस्कृतिक ताना-बाना ध्वस्त हो जाएगा तथा अंग्रेजी का प्रभाव बढऩे से हमारी भारतीय भाषाएं खासतौर पर हिन्दी फिर से खतरे में पड़ जाएगी। ऐसी ही चिंता 1980 के दशक में तब उपजी थी जब भारत में कम्प्यूटरों का आगमन हुआ था। उस दौर में कुछ अंग्रेजी मानसिकता के लोग भारतीय जनमानस को यह कह कर भ्रमित कर रहे थे कि अब बिना अंग्रेजी जाने भारतीयों का कोई भविष्य नहीं है परन्तु हर्ष व गौरव का विषय रहा कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि जिस हिंदी को कुछ समय पहले तक तकनीक और रोजगार की भाषा मानने में हिचक हो रही थी, उन तमाम बाध्यताओं को सफलतापूर्वक पार कर यह भाषा अपने कदम आगे बढ़ाती जा रही है। तमाम मल्टीनैशनल कम्पनियां अपना व्यापार बढ़ाने के लिए हिंदी को अपनाती जा रही हैं। इससे अंग्रेजियत का हौवा भी दिन-ब-दिन कम होता जा रहा है। व्यवसाय की दृष्टि से देखें तो बाजार बिकने वाली वस्तु की ताकत को देखता है। हिंदी भाषा में वह ताकत है। यही कारण है कि आज सर्वाधिक विज्ञापन भी हिंदी में आते हैं। इंटरनैट और सोशल मीडिया पर भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है। 

देश के आम आदमी की भाषा के रूप में हिंदी देश की एकता का सर्वाधिक मजबूत सूत्र है। हमारे यहां 1600 से अधिक बोलियां और भाषाएं हैं, इन सबके बीच ङ्क्षहदी भारतवासियों के बीच भाषा-सेतु के रूप में कार्य करती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे जैसे बोला जाता है वैसे ही लिखा भी जाता है यानी हिंदी भाषा पूरी तरह से ध्वनि और उच्चारण आधारित भाषा है। यह खूबी विश्व की अन्य किसी भी भाषा में नहीं है। एक भाषा के रूप में हिंदी न सिर्फ भारत की पहचान है, बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की संवाहक, सम्प्रेषक और परिचायक भी है। हमारा स्वाभिमान व गरिमा भी हिन्दी से गहराई से जुड़े हैं। इन तमाम खूबियों व सर्वग्राह्यता के बावजूद हिन्दी को अभी तक भारत की ‘राष्ट्रभाषा’ का दर्जा न मिल पाना वाकई पीड़ादायक है। हिन्दी हमारे स्वाभिमान, राष्ट्रीय गरिमा तथा राष्ट्रोत्कर्ष की परिचायिका है। एक ‘राष्ट्रगीत’ तथा एक ‘राष्ट्रध्वज’ के समान हिन्दी को एक ‘राष्ट्रभाषा’ का सम्मान मिलना ही चाहिए।-पूनम नेगी

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