Edited By Pardeep,Updated: 11 Oct, 2018 04:57 AM
प्रस्ताव पास करने के इरादे से कोई प्रस्ताव पास कर देना महत्व नहीं रखता। उद्देश्यहीन प्रस्ताव कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाता है। जब तक प्रस्ताव में उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वचनबद्धता न दिखाई जाए और उस वचनबद्धता को प्राप्त करने हेतु नीति बनाने का...
प्रस्ताव पास करने के इरादे से कोई प्रस्ताव पास कर देना महत्व नहीं रखता। उद्देश्यहीन प्रस्ताव कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाता है। जब तक प्रस्ताव में उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वचनबद्धता न दिखाई जाए और उस वचनबद्धता को प्राप्त करने हेतु नीति बनाने का जिक्र न हो तो प्रस्ताव एक बनावटी बात बनकर रह जाता है।
कांग्रेस की सर्वोच्च समिति (वर्किंग कमेटी) ने एक प्रस्ताव पास करके देश को भारतीय जनता पार्टी के चंगुल से आजाद करवाने के लिए ‘स्वतंत्रता संग्राम’ शुरू करने की घोषणा की है। कहा गया है कि यह संग्राम उसी तरह का होगा जैसा महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के पंजे से देश को मुक्त करवाने के लिए चलाया था। कांग्रेस का प्रस्ताव यह नहीं दिखाता कि पार्टी जनता तक कैसे पहुंच बनाएगी। स्वतंत्र भारत में शासन बदलने का एकमात्र तरीका ‘चुनाव’ हैं। चुनावों के माध्यम से ही सत्ता पलटी जाती है।
पश्चिम बंगाल में माकपा के नेतृत्व में वाम मोर्चा ने 1977 से लेकर 2011 तक शासन किया। उससे पूर्व 1947 में देश आजाद होने के बाद 1967 तक कांग्रेस का शासन रहा। उसके बाद 1972 तक के समय के दौरान दो बार नई सरकारें बनीं और कांग्रेस पिछड़ गई। 1972 में फिर कांग्रेस आई और उसने 5 वर्षों तक शासन किया, जिसके बाद 2011 तक वाम मोर्चा शासन करता रहा। 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में 35 वर्षों तक लगातार सत्ता में रहे वाम मोर्चा की सरकार को ताश के पत्तों की तरह उड़ा दिया। यह सारा परिवर्तन चुनावों से ही हुआ। इसमें संदेह नहीं कि कांग्रेस की नजरें भी 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर हैं।
कांग्रेस यह बात जोर-शोर से कह रही है कि 2019 के चुनावों में वह भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान केन्द्र सरकार को गिरा देगी। इसलिए कांग्रेस द्वारा चुनाव लडऩे हेतु महागठबंधन बनाने का प्रयास किया जा रहा है, मगर यह कैसे बनेगा, इस बारे अभी तक कोई रूपरेखा नहीं बन सकी। महागठबंधन में जिन दलों को शामिल करने की चर्चा है उनमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस तथा मायावती की बहुजन समाज पार्टी का नाम सबसे ऊपर है परन्तु न तो ममता बनर्जी और न ही मायावती ने अभी तक कांग्रेस के साथ चलने की कोई स्पष्ट घोषणा की है। अभी सारी बात हवा में ही है।
यदि ममता बनर्जी तथा मायावती की राजनीतिक चालों को ध्यान से देखा जाए तो ऐसी बात नजर नहीं आती कि वे कांग्रेस के नेतृत्व में महागठजोड़ में शामिल होंगी। 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए इनकी अपनी रणनीतियां हैं और ये उन्हीं के अनुसार कदम उठा रही हैं। मायावती ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से स्पष्ट इंकार कर दिया है और कांग्रेस विरोधी अजित जोगी की पार्टी से गठबंधन कर लिया है। ऐसी स्थिति में देश को भारतीय जनता पार्टी के कब्जे से मुक्त करवाने के लिए ‘स्वतंत्रता संग्राम’ शुरू करने की बात महज प्रतीकवाद ही है।
एक समय विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के शासन के विरुद्ध भी आवाज उठाई थी और देश को उनकी तानाशाही से मुक्त करवाने का नारा लगाया था। इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लागू करने पर सभी विपक्षी दल उनके विरुद्ध इक्कठे हो गए थे। निशाना एक ही था कि इंदिरा गांधी की हुकूमत को समाप्त करना है। उस निशाने को बल मिला जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व से। आंदोलन ने अटल बिहारी वाजपेयी तथा जामा मस्जिद के इमाम बुखारी को एक मंच पर ला खड़ा किया, मगर आज कांग्रेस ऐसी हवा के कहीं नजदीक भी दिखाई नहीं देती। जिन विरोधी दलों का महागठजोड़ बनाने की बात हो रही है, वे तो बिखरे पड़े हैं।
इसका कारण यह है कि वे यह जानते हैं कि देश को नरेन्द्र मोदी की तानाशाही से मुक्त करवाने के लिए ‘स्वतंत्रता संग्राम’ शुरू करने की बात दरअसल पर्दे में नेहरू वंश के चौथे उत्तराधिकारी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की कोशिश है। यह बात अन्य विरोधी दलों को पच नहीं रही। अभी तक किसी भी प्रमुख विरोधी दल ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को भविष्य में प्रधानमंत्री के तौर पर स्वीकार नहीं किया है। विरोधी दलों को एकजुट करने की बात ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’ वाली बनी हुई है। हो सकता है कि कुछ अन्य हालात मिलकर 2019 के लोकसभा चुनावों में मुकाबला कड़ा बना दें। यह भी हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत न मिले मगर उस हालत में विपक्ष भी अपने खुद के बोझ तले नहीं दबेगा, ऐसी बात भी नहीं है।
इसलिए कांग्रेस कार्य समिति ने जो प्रस्ताव पारित किया है उसके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कांग्रेस को अपनी योग्यता दिखानी होगी। पार्टी में और भी कई ऐसे नेता हैं जिनकी योग्यता को इसके लिए आजमाया जा सकता है परन्तु यह पार्टी की बदकिस्मती है कि योग्य नेता भी राहुल गांधी के आगे घुटने टेके बैठे हैं। देश को नरेन्द्र मोदी की तानाशाही से मुक्त करवाने के लिए ‘स्वतंत्रता संग्राम’ शुरू करने का प्रस्ताव पारित करने की बजाय वर्किंग कमेटी को राहुल गांधी के नेतृत्व से छुटकारा पाने हेतु प्रस्ताव पारित करना चाहिए था। कांग्रेस जब तक इस बारे में गम्भीर नहीं होती तब तक पार्टी को कोई लाभ नहीं हो सकता। हवा में तलवारें चलाना कोई मायने नहीं रखता।-बचन सिंह सरल