कांग्रेस के लिए आसार अच्छे दिखाई नहीं देते

Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Aug, 2017 10:22 PM

hope does not look good for congress

कहते हैं कि मुसीबत एक बार नहीं बल्कि बार-बार आती है और भव्य पुरानी कांग्रेस पार्टी वर्तमान में इसका अनुभव .....

कहते हैं कि मुसीबत एक बार नहीं बल्कि बार-बार आती है और भव्य पुरानी कांग्रेस पार्टी वर्तमान में इसका अनुभव कर रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में मात्र 44 सीटें (अब तक की सबसे कम) प्राप्त करने के बाद 2015 में बिहार तथा 2017 में पंजाब में शानदार प्रदर्शन के अतिरिक्त कांग्रेस का लगातार पतन हो रहा है। अब महागठबंधन को तोड़ कर भाजपा से हाथ मिला कर गत सप्ताह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले झटके के बाद कांग्रेस को गुजरात में संकट का सामना है क्योंकि वहां पार्टी विधायक विद्रोह के मूड में हैं। 6 पहले ही त्याग पत्र दे चुके हैं तथा अन्य कई ऐसा करने की धमकी दे रहे हैं। 

गुजरात में कांग्रेस टूटने की कगार पर है क्योंकि राज्यसभा के होने वाले चुनावों में क्रास वोटिंग के पूरे अवसर हैं जिसमें कांग्रेस रणनीतिकार तथा वरिष्ठ पार्टी नेता अहमद पटेल अपने पांचवें कार्यकाल के लिए लड़ रहे हैं। यदि वह हार जाते हैं तो इसका अर्थ कांग्रेस नेतृत्व में एक शीर्ष चेहरे का नुक्सान होगा। अहमद पटेल पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक तथा सोनिया गांधी के सलाहकार रहे हैं और वह एक रणनीतिकार भी हैं। यहां राज्यसभा की तीन सीटें हैं, जिनमें से दो पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह व कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी लड़ रही हैं जबकि तीसरी सीट से पटेल चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा एक विद्रोही कांग्रेस विधायक बलवंत सिंह राजपूत का समर्थन कर रही है, जो अहमद पटेल के दाएं हाथ माने जाते थे और पार्टी छोड़ चुके हैं। यद्यपि बैकफुट पर होने के बावजूद पटेल सीट जीतने के लिए तमाम कोशिशें कर रहे हैं। 

कांग्रेस एक चौराहे पर खड़ी है। गुजरात में, जहां इस वर्ष के आखिर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, सत्ताधारी भाजपा कांग्रेस की कमजोरियां उजागर कर इसे शॄमदा करने की योजना बना रही है। ऐसा करने का एक तरीका कांग्रेस विधायक दल को तोडऩा तथा कुछ विधायकों को अपने खेमे में लाना था। इसने किसी समय अपने नेता रहे शंकर सिंह वाघेला से सम्पर्क साधा जो तब कांग्रेस में थे। परेशानी गत सप्ताह तब शुरू हुई जब वाघेला ने पार्टी के साथ-साथ गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे दिया। यद्यपि वाघेला विधायक बने रहे और कहा जाता है कि उनके पास कम से कम 11 कांग्रेस विधायकों का समर्थन है। 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के 57 विधायक हैं। पटेल को जीतने के लिए 47 वोटों की जरूरत है। वाघेला के समर्थक 6 विधायक पहले ही त्याग पत्र दे चुके हैं जिनमें इसके मुख्य व्हिप बलवंत सिंह राजपूत तथा प्रवक्ता तेजश्रीबेन राजपूत शामिल हैं, जो किसी समय अहमद पटेल के करीबी सहयोगी रहे हैं। बलवंत सिंह राजपूत अब भाजपा के समर्थन से तीसरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। 

एक रिपोर्ट के अनुसार राकांपा के शरद पवार तथा जद (यू) के नीतीश कुमार ने 3 सदस्यों के समर्थन का प्रस्ताव किया है। यदि ऐसा होता भी है तो अहमद पटेल के लिए यह अत्यंत कड़ी टक्कर होगी। भाजपा के लिए राज्यसभा चुनाव में पटेल की पराजय का अर्थ एक बड़ी राजनीतिक विजय होगा। गुजरात कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण क्यों है? कांग्रेस आने वाले विधानसभा चुनावों में अच्छी कारगुजारी दिखाने की आशा कर रही थी जिसका आधार मुख्य रूप से भाजपा के सामने सत्ता विरोधी लहर तथा कांग्रेस की निरंतर बनी रही 30 प्रतिशत मत हिस्सेदारी है। भाजपा तथा कांग्रेस राज्य में दो मुख्य पार्टियां हैं और कांग्रेस तीन दशकों से सत्ता से बाहर है। 

गत कुछ वर्षों के दौरान गुजरात में कुछ बड़े आंदोलन देखने को मिले हैं जिन्हें जनता का भारी समर्थन मिला। हार्दिक पटेल नीत पटेल आंदोलन, इसके जवाब में अल्पेश ठाकुर के नेतृत्व में ओ.बी.सी. क्षत्रियों का आंदोलन, गाय को लेकर हिंसक समूहों द्वारा उना में दलितों पर अत्याचार तथा सूरत व अन्य जगहों पर कपड़ा तथा हीरा व्यापारियों द्वारा जी.एस.टी. विरोधी जबरदस्त प्रदर्शनों ने कांग्रेस के हाथ मुद्दे थमा दिए हैं। कुछ माह पहले तक कांग्रेस को असंतोष का इस्तेमाल करके गुजरात में काफी लाभ प्राप्त करने की आशा थी। तो क्यों कांग्रेस ने भाजपा को अपना लाभ खो दिया? पहली बात तो यह कि कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष को नियंत्रित करने में असफल रही, जो कुछ समय से सुलग रहा था। अहमद पटेल के पास राज्य का पूरा नियंत्रण था। स्थानीय कांग्रेस नेता खुद को दरकिनार किए जाने से नाखुश थे। जमीनी हकीकत का एहसास न करते हुए कांग्रेस नेतृत्व ने विद्रोह उठते नहीं देखा तथा अनदेखी के कारण सम्भवत: अपना एक सुनहरी अवसर गंवा दिया।

दूसरे, वाघेला समूह द्वारा अपनी ताकत दिखाने के बाद भी पार्टी नेतृत्व यह देखते हुए असंतुष्टों को संतुष्ट करने में असफल रहा कि अपनी राज्यसभा सीट के लिए उसे वाघेला कैम्प से संबंधित 11 विधायकों की जरूरत होगी। वाघेला, जो पार्टी के बड़े कद के नेता रहे हैं, इस बात को लेकर परेशान थे कि पार्टी उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में रुचि नहीं रखती। वह अन्य असंतुष्ट तत्वों के लिए एक चुंबक बन गए। परिणाम यह निकला कि भाजपा के लुभाने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी। तीसरे, कांग्रेस नेतृत्व गत कुछ महीनों से निरंतर आ रहे खतरे के संकेतों को नहीं देख सका। यह गत माह तब सामने आया जब वाघेला ग्रुप से संबंधित 11 कांग्रेस विधायकों ने क्रास वोटिंग करते हुए राजग के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन किया। इस्तीफों के बाद, हालांकि देर से कदम उठाते हुए कांग्रेस ने अपने 44 विधायकों को बेंगलूर के एक पांच सितारा रिसोर्ट में भेज दिया। दल-बदली अहमद पटेल के लिए परेशानी खड़ी कर रही है।

गुजरात प्रधानमंत्री मोदी तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है और यहां उनके ऊंचे दाव लगे हैं। दोनों राज्य को अपने हाथ में रखने तथा सत्ता विरोधी लहर से पार पाने के लिए अपना पूरा जोर लगा रहे हैं। चुनावों में अब कुछ ही महीने बचे हैं और भाजपा राज्य को जीतने के लिए अपनी सभी युक्तियां इस्तेमाल कर रही है, जबकि कांग्रेस संगठनात्मक हितों की अनदेखी करके अपने ही जाल में फंस गई है। अहमद पटेल यदि भाग्यशाली हुए तो सम्भवत: पार पा लें मगर कांग्रेस के लिए स्थितियां अच्छी दिखाई नहीं दे रही हैं।    

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!