‘मधुमक्खियां बड़ी संख्या में कम हुईं तो शहद उत्पादन कैसे बढ़ा’

Edited By ,Updated: 05 Feb, 2021 05:01 AM

how honey production increased if bees reduced in large numbers

र्ष 2013 में भारत ने एक फसल की रक्षा के लिए नियोनिकोटिनोइड कीटनाशकों का उपयोग करना शुरू किया था। ये दुनिया में सबसे खराब कीटनाशक हैं और इन्हें धरती पर अरबों मधुमक्खियों को मारने का दोषी पाया गया है। मैंने इन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2014...

वर्ष 2013 में भारत ने एक फसल की रक्षा के लिए नियोनिकोटिनोइड कीटनाशकों का उपयोग करना शुरू किया था। ये दुनिया में सबसे खराब कीटनाशक हैं और इन्हें धरती पर अरबों मधुमक्खियों को मारने का दोषी पाया गया है। मैंने इन कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2014 में आई.सी.ए.आर. की बैठक बुलाई, जिसने मना कर दिया, हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि मधुमक्खी की आबादी तेजी से कम हो रही है। उन्होंने कहा कि कपास - फल, अनाज और फूलों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण थी जो मधुमक्खी के परागण पर निर्भर हैं! 

यदि मधुमक्खियां भारी संख्या में कम हुई हैं, तो शहद का उत्पादन तीन गुणा कैसे हो गया? 2013 तक वार्षिक वृद्धि दर केवल 0.4$ 8 प्रतिशत थी। 2013-14 में विकास दर 5$ 3 से बढ़ कर 11$1 प्रतिशत हो गई थी, यह प्राकृतिक रूप से नहीं हो सकता था। पिछले महीने पर्यावरण पत्रिका डाऊन टू अर्थ ने इस प्रश्न की गहराई से विस्तृत जांच के पश्चात उत्तर दिया जिसमें उन्हें महीनों लग गए।  हम खाद्य मिलावट को गंभीरता से नहीं लेते और फिर भी यह भ्रष्टाचार का उच्चतम रूप है और इस पर मौत की सजा होनी चाहिए। 

आइए मूलभूत बातों से शुरू करते हैं : शहद इसलिए खाया जाता है क्योंकि इसमें एंटीआक्सीडैंट और एंटी माइक्रोबियल (कीटाणुआें को मारने) गुण मौजूद माने जाते हैं। यह बनाना महंगा है क्योंकि हजारों मधुमक्खियों को रखना और लगातार फूलों की मौजूदगी चाहिए, चीनी का कोई पोषक मूल्य नहीं होता और यह वजन बढ़ाने और चिरकालिक बीमारी का कारण बनती है। यह सस्ती है। 

एफ.एस.एस.ए.आई. खाद्य मानकों का प्रभारी होने वाला सरकारी संगठन है। 2017 में एफ.एस.एस.ए.आई. ने आदेश दिया कि शहद का मक्का, गन्ना, चावल और चुकंदर सिरप के साथ मिलावट के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए। परीक्षण को सी3 और सी4 कहा गया। परीक्षण आइसोटोप परीक्षण, एस.एम.आर., टी.एम.आर., बाहरी आेलिगोसेकेराइड परीक्षण और पराग की मात्रा की गिनती करने वाले थे। 2019 में, एफ.एस.एस.ए.आई. ने मापदंडों को संशोधित तथा निम्नतर करने और मिलावट जारी रखने की अनुमति देने के लिए रहस्यमय ढंग से एक निर्देश जारी किया। राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड के निदेशक ने डाऊन टू अर्थ को बताया कि उन्होंने सरकार को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था कि पराग गणना को कम करके एफ.एस.एस.ए.आई. ने मिलावट करने और चावल तथा मकई के सिरप को शहद के रूप में बेचने के व्यवहार को वैध कर दिया है। 

अब तक शहद बेचने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर बढ़ गई हैंं और बहुत शक्तिशाली हो गई हैं। लेकिन अजीब है कि शहद के सभी किसान दिवालिया हो रहे हैं क्योंकि इन कंपनियों ने उनका शहद खरीदना बंद कर दिया है। तो हमारे पास एक बहुत बड़ा शहद उद्योग है जो शहद का उपयोग नहीं करता है? तो ‘शहद’ की बोतलों में क्या होता हैं? चीन से भारत में चीनी सिरप का आयात लगातार बढ़ा है। फ्रुक्टोज और ग्लूकोज सिरप को चीन से भारत में भारी मात्रा में आयात किया जा रहा है। ये सिरप ‘फ्रुक्टोज सिरप (एफ55/एफ42’, ’शहद मिश्रित सिरप’, ‘टैपिआेका फ्रुक्टोज सिरप’, ‘गोल्डन फ्रुक्टोज ग्लूकोज सिरप’ यहां तक कि ‘फ्रुक्टोज राइस सिरप फॉर हनी’ के नाम से आयात किए जाते हैं। 

एफ.एस.एस.ए.आई. ने चीनी आयातकों को निर्देश जारी करते हुए कहा कि उनके पास इस बात के साक्ष्य हैं कि इस चीनी आयात का इस्तेमाल शहद में मिलावट करने के लिए किया जा रहा था। एफ.एस.एस.ए.आई. ने 2020 में घोषणा की कि न्यूक्लियर मैग्रेटिक रैजोनेंस स्पैक्ट्रोस्कोपी (एन.एम.आर.) अब शहद का निर्यात करने वाली किसी भी कंपनी के लिए अनिवार्य था। क्या फ्रुक्टोज सिरप आयात बंद हो गया है? जी नहीं, बस इसका नाम बदल दिया गया है। भारत में कंपनियां इस रासायनिक मिश्रण का आयात कर रही हैं, जिसे कुछ मामलों में भारत में चीन से ‘औद्योगिक कच्चे माल’ और यहां तक कि ‘पेंट मिश्रण’ के रूप में भेजा जा रहा है। इस मिश्रण का 11,000 टन सालाना आया है। 

डाऊन टू अर्थ ने वुहू फूड्स और सी.एन.एन. फूड्स नामक दो चीनी आपूर्तिकत्र्ताओं से अनलाइन नमूनों को आर्डर किया। अपने आर्डर में उन्होंने विशेष रूप से कहा कि वे चाहते थे कि यह सिरप सभी सरकारी परीक्षणों को पास करे। दोनों कंपनियों ने लिखा कि उनका उत्पाद किसी भी भारतीय परीक्षण को पास कर सकता है, भले ही मिलावट 80 प्रतिशत तक हो और कहा कि उनके भारतीय ग्राहक इस प्रतिशत का उपयोग अपनी तथाकथित शहद की बोतलों में करते हैं। डाऊन टू अर्थ ने शुद्ध कच्चा शहद लिया और इसे 25 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के विभिन्न अनुपात में चीनी और भारतीय मिलावटी वस्तुआें (जसपुर की एक कंपनी से) में खुद मिलाया-और फिर इसे राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की गुजरात स्थित लैब सैंटर फार एनालिसिस एंड लॄनग इन लाइवस्टाक एंड फूड (सी.ए.एल.एफ.) को भेज दिया। 75 प्रतिशत तक मिलावट वाले नमूनों ने भी सभी परीक्षणों को पास कर लिया! लेकिन डाऊन टू अर्थ ने एक प्रसिद्ध जर्मन लैब से संपर्क किया जो केवल एन.एम.आर. सहित शहद में मिलावट परीक्षणों में माहिर है और उन्हें इसके नमूने भेजे-उसी बैच से जो गुजरात में परीक्षण पास कर चुके थे। 

केवल तीन कंपनियां परीक्षण में पास हुईं : अन्य सभी फेल हो गए-जिनमें बड़ी कम्पनियां शामिल हैं जिन्होंने इसे अपने लेबल पर लिखा है कि उनके शहद ने एन.एम.आर. परीक्षण पास किए हैं। कोविड लाकडाऊन के दौरान, लोगों ने अपने स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए सभी प्रयास किए। मार्च 2020 से शहद की बिक्री 35 प्रतिशत बढ़ गई, लेकिन अपने शरीर को स्वस्थ बनाने की बजाय लोग वास्तव में चीनी सिरप की खुराक के साथ दिन की शुरुआत कर रहे हैं जो सिर्फ जहर है। चीनी शरीर में सूजन को बढ़ाती है, प्रतिरक्षा को कम करती है और शरीर को मधुमेह और कोरोना सहित बीमारी की चपेट में लाती है।-मेनका गांधी    

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