‘न्याय की प्रतीक्षा में’ कब तक मरते रहेंगे ‘पीड़ित लोग’

Edited By Pardeep,Updated: 16 Sep, 2018 03:01 AM

how long will the  suffering people  wait for justice

काफी समय से देश की अदालतों में जजों की कमी चली आ रही है जिस कारण लंबित मुकद्दमों के निपटारे में विलंब को लेकर अक्सर बहस होती रहती है। हालत यह है कि इस समय निचली अदालतों में जजों के 23 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं जबकि जिला एवं अधीनस्थ अदालतों...

काफी समय से देश की अदालतों में जजों की कमी चली आ रही है जिस कारण लंबित मुकद्दमों के निपटारे में विलंब को लेकर अक्सर बहस होती रहती है। हालत यह है कि इस समय निचली अदालतों में जजों के 23 प्रतिशत से अधिक पद खाली पड़े हैं जबकि जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में पौने 3 करोड़ से अधिक केस लंबित हैं। 

उल्लेखनीय है कि जून 2018 में देश की जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में स्वीकृत 22,444 पदों के मुकाबले में केवल 17,221 जज ही कार्यरत थे तथा 5223 पद खाली पड़े थे। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने देश की सभी 24 हाईकोर्टों को जजों की नियुक्ति में तेजी लाने तथा जजों की भर्ती के लिए परीक्षा और इंटरव्यू समय पर करवाने के लिए कहा है। 

जजों की कमी का ही यह परिणाम है कि अनेक मामलों में फैसले का इंतजार करते-करते याचियों की मौत तक हो जाती है। ऐसा ही एक मामला हाल ही में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में सामने आया जहां 312 रुपए की कोर्ट फीस को लेकर दायर एक मुकद्दमे का फैसला आने में 43 वर्ष लग गए और जब याचिकाकत्र्ता गंगा देवी के पक्ष में फैसला आया तब वह इस पर खुश होने के लिए जीवित नहीं रही क्योंकि उसकी 2005 में मृत्यु हो चुकी है। 

1975 से चल रहे इस केस के ट्रायल में अंतिम सुनवाई करते हुए मिर्जापुर की सिविल जज लवली जायसवाल ने 31 अगस्त को गंगा देवी के पक्ष में फैसला सुनाया। अदालत ने स्वीकार किया कि गंगा देवी ने कोर्ट फीस जमा कर दी थी लेकिन फाइल में गड़बड़ी के कारण यह मामला चलता रहा। देश में जजों की कमी इसी प्रकार बनी रही तो ऐसे न जाने कितने मामले सामने आते रहेंगे व न्याय की प्रतीक्षा में पीड़ित लोगों की मृत्यु होती रहेगी। अत: देश में जजों की कमी शीघ्र दूर करने की जरूरत है।—विजय कुमार 

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