कितना ‘पढ़ा-लिखा’ होना चाहिए नेता

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2019 03:45 AM

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किसी नेता को कितना पढ़ा-लिखा होना चाहिए और यदि उसमें बौद्धिक विश्लेषण की कमी हो तो उसका क्या नतीजा होता है? कांग्रेस स्मृति ईरानी का इस बात के लिए मजाक उड़ा रही है कि वह कालेज नहीं गईं। उन्होंने पत्राचार के माध्यम से एक कोर्स की पढ़ाई शुरू की थी...

किसी नेता को कितना पढ़ा-लिखा होना चाहिए और यदि उसमें बौद्धिक विश्लेषण की कमी हो तो उसका क्या नतीजा होता है? कांग्रेस स्मृति ईरानी का इस बात के लिए मजाक उड़ा रही है कि वह कालेज नहीं गईं। उन्होंने पत्राचार के माध्यम से एक कोर्स की पढ़ाई शुरू की थी लेकिन इसे पूरा नहीं किया।  इसका अर्थ शायद यह है कि आगे की पढ़ाई में उनकी रुचि नहीं थी। 

ईरानी काफी चालाक महिला हैं और औपचारिक उच्च शिक्षा का अभाव कभी भी उनकी उन्नति के मार्ग में बाधा नहीं बना, हालांकि उनकी योग्यता को नीतिगत मामलों में उनके दखल से आंका जा सकता है जिसके बारे में हम में से ज्यादा लोगों को जानकारी नहीं है। यदि किसी ने कालेज शिक्षा प्राप्त न की हो तो इसमें शर्म की कोई बात नहीं है लेकिन ईरानी की मुश्किलें इस बात से बढ़ गईं कि उन्होंने अपनी शिक्षा के बारे में कुछ दावे (येल यूनिवर्सिटी में जाने संबंधी) किए थे, जो यदि पूरी तरह झूठे नहीं थे तो गुमराह करने वाले जरूर थे। 

गांधी परिवार की शिक्षा
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी का वंश भी कोई खास शिक्षित नहीं है। राजीव गांधी कैम्ब्रिज में पढऩे के लिए इंगलैंड गए थे लेकिन  वह परीक्षा में फेल हो गए और डिग्री प्राप्त नहीं कर सके। उनके भाई संजय हाई स्कूल भी पास नहीं थे। उन्होंने ऑटो पार्ट रिपेयर में कोर्स करने के लिए स्कूल छोड़ दिया था। यह काफी आहत करने वाला है कि ऐसा व्यक्ति इतना ताकतवर था और उसे उसकी मां ने नीतिगत मामलों में बड़े दखल की इजाजत दे रखी थी। 

संजय गांधी की पत्नी मेनका ने उससे तब शादी की जब वह 18 साल की थीं और इसलिए वह ठीक से शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकीं। लोकसभा के रिकार्ड में उनकी योग्यता के बारे में सिर्फ इतना कहा गया है कि वह स्कूल गई थीं। सोनिया गांधी भी कालेज नहीं गईं। उनकी पढ़ाई 18 साल की उम्र में खत्म हो गई थी और उन्होंने भी जल्दी शादी कर ली थी। इंदिरा गांधी के पास भी कोई डिग्री नहीं थी। राहुल गांधी को उनके आलोचकों द्वारा पप्पू कहा जाता है लेकिन वह शैक्षिक तौर पर काफी होनहार नजर आते हैं। उन्होंने ट्रिनिटी कालेज, कैम्ब्रिज से डिवैल्पमैंट इकोनॉमिक्स में फिलास्फी में मास्टर डिग्री हासिल की है। यह वही स्थान है जहां नेहरू ने भी पढ़ाई की थी। यह भी रोचक है कि नेहरू ने थर्ड क्लास में डिग्री ली थी और वह एक अच्छे विद्यार्थी नहीं थे। गांधी परिवार के इतिहास में राहुल सबसे ज्यादा शिक्षित व्यक्ति हैं। 

ब्रिटेन के 11 प्रधानमंत्री कभी कालेज नहीं गए
सबसे मशहूर ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल कभी कालेज नहीं गए और उन्होंने औपचारिक शिक्षा भी नहीं ली थी। यह काफी खास बात है क्योंकि वह एक इतिहासकार और उपन्यासकार थे और 1953 में उन्होंने साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार जीता था। एक अन्य ब्रिटिश प्रधानमंत्री जिन्होंने 16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया था और कभी कालेज नहीं गए, जॉन मेजर थे, जिन्हें पुराने पाठक मार्गेट थैचर के उत्तराधिकारी के तौर पर जानते हैं। कुल 11 ब्रिटिश प्रधानमंत्री कभी कालेज नहीं गए। 

नरेन्द्र मोदी ने 17 साल की उम्र में अपने घर और पत्नी को छोड़ दिया था इसलिए वह कभी कालेज नहीं गए। उन्होंने पत्राचार के माध्यम से कोर्स किया था लेकिन उन्होंने जो दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं उनकी सत्यता को लेकर संदेह है। उनकी औपचारिक शिक्षा के अभाव के बावजूद हम देखते हैं कि वह एक अच्छे राजनेता हैं। हालांकि मैं सोचता हूं कि उनमें एक बड़ी कमी है।  वह मनमोहन या ओबामा अथवा किसी बुद्धिजीवी की तरह नीतिगत दस्तावेजों का गहन अध्ययन नहीं करते।

अपने एक इंटरव्यू में मोदी ने स्वयं बताया था कि वह किस तरह से कार्य करते हैं। वह कहते हैं : ‘‘मेरे गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के 3 या 4 दिन बाद मुख्य सचिव मेरे पास आए। वह फाइलों का एक बड़ा ढेर लेकर आए। इनका भार 15 या 20 किलो रहा होगा। चपड़ासी ने इन्हें मेरी टेबल पर रख दिया। मुख्य सचिव बैठे और मुझे कहा कि ‘यह नर्मदा की फाइल है।’-मुझे नर्मदा की याद है लेकिन तीन और फाइलें भी थीं। मुख्य सचिव ने कहा, ‘ये गुजरात के महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामलों के बारे में हैं। कुछ समय निकाल कर इन्हें पढ़ लेना। आपको  इन सभी मामलों में बोलने या निर्णय लेने की किसी भी समय जरूरत पड़ेगी।’ मैंने 3-4 बार फाइलों के ढेर की ओर देखा और उन्हें कहा : ‘आप इन्हें यहां रख जाओ और हम कुछ दिन बाद मिलेंगे।’ 

मैंने इन फाइलों को खोला भी नहीं। वे वहीं पड़ी रहीं। मुझे एक आवाज आई कि मैं इस अध्ययन को नहीं समझ सकता। मैं ऐसा नहीं कर सकता। यह आवाज मेरे अंदर से आई। मैंने अपने साथ काम कर रहे तीन अधिकारियों से कहा, ‘मुख्य सचिव मुझे ये फाइलें दे गए हैं। मैं इतना ज्यादा नहीं पढ़ पाऊंगा। पहले, आप लोग मुझे यह समझाओ कि इन फाइलों में क्या मसाला है? यदि मैं इन्हें पढऩा शुरू करूंगा तो ये कभी खत्म नहीं होंगी। फाइलों को पढऩा मेरी प्रकृति में शामिल नहीं है।’ 

तीन या चार दिन के बाद मुख्य सचिव वापस आए। मैंने उनसे कहा, ‘मुझे बताओ कि इन फाइलों में क्या महत्वपूर्ण बातें हैं।’ उन्होंने ऐसा ही किया और मैंने कहा : ‘यह मेरे लिए काफी है, आप ये फाइलें वापस ले जा सकते हैं।’ उसके बाद मुझे कभी भी इन मामलों पर कुछ समझने की जरूरत नहीं पड़ी और इस बात को 13 साल हो गए हैं। मुझ में ऐसी योग्यता है कि मैं उन विषयों को समझ सकता हूं। इन बातों से अधिकारियों पर प्रभाव पड़ा। मैं कोई तर्क नहीं करता। मैं एक अच्छा श्रोता हूं। बाहर मेरी  प्रसिद्धि पर मत जाइए : मैं बहुत कुछ सुनता हूं। मैं आज यह कह सकता  हूं कि यदि मेरे विकास में पढऩे की 30 प्रतिशत भूमिका है तो सुनने की भूमिका 70 प्रतिशत है।  मैं जो कुछ सुनता हूं, उसका विश्लेषण करता हूं और अपने मन में उस ‘माल’ का विश्लेषण करता हूं। इसमें मुझे ज्यादा समय नहीं लगता और जब भी जरूरत होती है यह मुझे याद आ जाता है। मैंने यह विधा विकसित कर ली है। 

आज भी यदि मेरे अधिकारी मुझे कोई कागज दिखाते हैं, मैं कहता हूं : ‘मुझे 2 मिनट में बताओ कि इसमें क्या है? मेरे लिए 10 पेज के दस्तावेज के लिए दो मिनट काफी हैं। मैंने यह कला विकसित कर ली है।’ दुर्भाग्य से, एक बड़े और विविधता भरे देश को चलाने के लिए यह उचित नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी गंभीर सामग्री को पढऩे में ज्यादा समय लगाएंगे, चाहे यह उन्हें बोर करता हो अथवा उनकी प्रकृति के विरुद्ध हो।-आकार पटेल

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