यह कैसा चुनाव प्रचार, हिमाचल हुआ शर्मसार

Edited By ,Updated: 24 Apr, 2019 04:11 AM

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आपराधिक माहौल से मुक्त सरकारी तंत्र और राजनीति के कारण हिमाचल प्रदेश को पूरे देश में शांतिप्रिय राज्य के रूप में अलग पहचान हासिल है। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में हो रहे प्रचार ने हिमाचल की इस छवि को ठेस पहुंचाई है। राज्य के भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह...

आपराधिक माहौल से मुक्त सरकारी तंत्र और राजनीति के कारण हिमाचल प्रदेश को पूरे देश में शांतिप्रिय राज्य के रूप में अलग पहचान हासिल है। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में हो रहे प्रचार ने हिमाचल की इस छवि को ठेस पहुंचाई है। राज्य के भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उत्तरी भारत के एक सुप्रसिद्ध धार्मिक संगठन को लेकर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणियां सार्वजनिक जनसभाओं में की गई हैं। इसी तरह से कांग्रेस से जुड़े विनय शर्मा ने भी भाजपा अध्यक्ष को जवाब देने की कोशिश में मर्यादा को लांघा है। 

हालांकि निर्वाचन आयोग ने सतपाल सिंह सत्ती के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करवा कर उन्हें 48 घंटे तक चुनाव प्रचार से दूर रखा है। वहीं सोशल मीडिया पर भी चुनाव प्रचार में कूदे नेता व कार्यकत्र्ता सभ्य समाज की परवाह किए बगैर आपत्तिजनक टिप्पणियां करने में मशगूल हैं लेकिन सत्तारूढ़ दल के राज्य अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती की टिप्पणियों से राज्य में चुनाव प्रचार का माहौल खराब हुआ है और उससे पार्टी की छवि को भी यहां धक्का लगा है। हालांकि सतपाल सिंह सत्ती का बचाव करने की पूरी कोशिश भाजपा के बड़े नेता करते आ रहे हैं लेकिन उनके आपत्तिजनक भाषणों का वीडियो बहुत तेजी से वायरल हो चुका है। 

खफा से दिख रहे हैं वीरभद्र सिंह 
हिमाचल प्रदेश की कुल 4 लोकसभा सीटों पर हो रहे चुनाव प्रचार में भाजपा तेजी से आगे निकलने की कोशिश में है जबकि वित्तीय संसाधनों से जूझ रही कांग्रेस पार्टी के विधायक और बड़े नेता अभी तक प्रचार में पूरी तरह से नहीं जुटे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कांगड़ा, हमीरपुर और शिमला संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार की शुरूआत कर दी है लेकिन फिलहाल उन्होंने मंडी संसदीय क्षेत्र के चुनाव प्रचार से दूरी बनाकर रखी हुई है जिसका बड़ा कारण पूर्व केन्द्रीय मंत्री पं.सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा को टिकट देने से पहले हाईकमान द्वारा उनको विश्वास में न लेना बताया जा रहा है। 

फिलहाल मंडी संसदीय क्षेत्र में वीरभद्र सिंह बेटे विक्रमादित्य सिंह चुनाव प्रचार में हिस्सा ले रहे हैं। लेकिन हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में वीरभद्र सिंह ही इकलौते स्वीकार्य नेता हैं। परन्तु इस बार लोकसभा टिकट आबंटन में उनकी राय को खास तवज्जो नहीं दी गई है। शिमला और कांगड़ा सीटों पर उनकी पसंद के प्रत्याशी हैं इसलिए वह साफ कह चुके हैं कि ये दोनों सीटें कांग्रेस पार्टी जीतेगी। मंडी और हमीरपुर सीटों पर जीत-हार को लेकर उनकी कोई टिप्पणी नहीं है। जाहिर है कि वीरभद्र सिंह की कोशिश शिमला और कांगड़ा सीटों को जितवाने की रहेगी। 

हिमाचल कांग्रेस की नई टीम प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्रिहोत्री इस बार भाजपा के असंतुष्ट नेताओं का समर्थन हासिल करने की कोशिश में हैं, जिसके तहत पहले उन्होंने मंडी के कद्दावर नेता पं. सुखराम को कांग्रेस में शामिल करवाया और अब हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से तीन बार सांसद और भाजपा के अध्यक्ष रहे सुरेश चंदेल को भी कांग्रेस में शामिल करवा लिया है। कांग्रेस की नजर भाजपा के कुछ और कद्दावर असंतुष्ट नेताओं पर भी है जिन्हें आने वाले दिनों में कांग्रेस में शामिल किया जा सकता है। वहीं भाजपा इस नुक्सान से बचने के लिए गंभीरता से प्रयास करती नहीं दिख रही है। 

प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बंद करने की तैयारी 
लोकसभा चुनावों के बीच राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को बंद करने की चर्चा सियासी रंग लेने लगी है। कर्मचारियों का बड़ा वर्ग और विपक्षी दल कांग्रेस ट्रिब्यूनल को बंद करने के पक्ष में नहीं हैं। प्रदेश में कर्मचारियों की संख्या 2 लाख 90 हजार के आसपास है। यहां की राजनीति की दिशा को कर्मचारी ही तय करते आ रहे हैं। राज्य में कर्मचारियों से संबंधित मामलों की सुनवाई के लिए वर्ष 1986 में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया था। 

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के कार्यकाल में भी ट्रिब्यूनल को निरस्त करने के प्रयास हुए थे हालांकि ऐसा हो नहीं पाया। इसके बाद वर्ष 2007 में धूमल सरकार प्रदेश में सतारूढ़ हुई और ट्रिब्यूनल को निरस्त कर दिया गया। सरकार के इस निर्णय को लेकर खूब हो-हल्ला हुआ लेकिन सरकार अपने निर्णय पर अडिग रही। तब धूमल को विपक्ष में बैठना पड़ा था। वीरभद्र सरकार ने अपने वायदे के अनुुरूप वर्ष 2014 में इसे फिर बहाल कर दिया। ट्रिब्यूनल को बंद करने से हाईकोर्ट पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और कर्मचारियों को न्याय के लिए अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की स्थापना के बाद 31 मार्च 2019 तक ट्रिब्यूनल के समक्ष कुल 32,641 मूल आवेदन प्राप्त हुए। इनमें  से 21,979 का अंतिम निपटारा किया जा चुका है। जिससे स्पष्ट होता है कि राज्य में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की जरूरत बरकरार है। 

आचार संहिता के दौरान ज्यादा सक्रिय हुई सरकार
लोकसभा चुनावों के दृष्टिगत हिमाचल में आचार संहिता लगी हुई है लेकिन पदोन्नतियां, एक्सटैंशन और टैंडर के लिए राज्य सरकार की सक्रियता भी इन दिनों देखने को मिल रही है। राज्य के लोक निर्माण विभाग में उच्चाधिकारियों को चुनाव आचार संहिता के दौरान एक्सटैंशन देने के कारण इस विभाग में निचले स्तर से लेकर ऊपर तक पदोन्नतियों का सारा क्रम ही रुक गया है, जिसकी शिकायत विभाग के इंजीनियर्स ने मुख्य सचिव को भी की है लेकिन बावजूद इसके सेवानिवृत्ति के करीब पहुंचे कुछ और उच्चाधिकारियों ने भी एक्सटैंशन के लिए सरकार को आवेदन कर दिए हैं। 

यही नहीं, लोक निर्माण विभाग में टैंडर लगाने की अनेकों अनुमतियां भी चुनाव आयोग से हासिल की गई हैं। वहीं कुछ विभागों में पदोन्नतियों के लिए भी चुनाव आयोग का सहारा लिया गया है। जबकि आचार संहिता में केवल अति-आवश्यक कार्यों के लिए ही चुनाव आयोग से अनुमति के केस भेजे जाते हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश का सरकारी तंत्र सबसे ज्यादा इन दिनों ही सक्रिय दिख रहा है।-डा.राजीव पत्थरिया
 

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