कैसे मनाएं ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ का 400वां प्रकाश पर्व

Edited By ,Updated: 18 Apr, 2021 04:44 AM

how to celebrate  400th festival of sri guru tegh bahadur ji

श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का जन्म पिता श्री गुरु हर गोबिंद साहिब और माता नानकी के गृह वैशाख बदी 5 सम्वत 1678 (1 अप्रैल 1621) को गुरु के महल श्री अमृतसर साहिब में हुआ। श्री गुरु तेग बहादुर जी की महिमा गाते हुए भाई नंदलाल जी कहते हैं, ‘‘गुरु तेग...

श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का जन्म पिता श्री गुरु हर गोबिंद साहिब और माता नानकी के गृह वैशाख बदी 5 सम्वत 1678 (1 अप्रैल 1621) को गुरु के महल श्री अमृतसर साहिब में हुआ। श्री गुरु तेग बहादुर जी की महिमा गाते हुए भाई नंदलाल जी कहते हैं, ‘‘गुरु तेग बहादुर सिर से लेकर पांव तक ऊंचाइयों व स्तुति का भंडार हैं और परमात्मा की शानो-शौकत की महफिल की रौनक बढ़ाने वाले हैं।’’ 9वीं पातशाही सच के पालनहार और सरदारों के सरदार हैं। लोक-परलोक के सुल्तान, गौरव के तख्त का शृंगार हैं। 

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने 9वें नानक की उपमा, ‘तिलक जंजू राखा प्रभ ताका कीनो बढ़ो कुल मैं साका।।’ तेग बहादुर के चलत भयो जगत को सोक। है-है-है सब जग भयो जय-जय-जय सुर लोक।। यही नहीं ‘वार दुर्गा की’ में श्री गुरु तेग बहादुर जी के सिमरन की महिमा दर्ज करते अंकित किया गया है, ‘‘तेग बहादुर सिमरिए, घर नौनिद्ध आवे धाई। सब थाईं होए सहाई।।’’ अर्थात श्री गुरु तेग बहादुर जी के सिमरन से घर में नौनिधि की तुरन्त प्राप्ति होती है। ऐसी बरकतों वाले गुरु का 400वां प्रकाश पर्व मनाना सारी कायनात के लिए एक अच्छा मौका है। 

सिख कौम की नौंवी पातशाही ने 24 चैत्र सम्वत 1722 (20 मार्च 1665) को श्री गुरु नानक देव जी के सिंहासन पर विराज कर दुनिया को सुमार्ग बख्शा। उन्होंने मालवा, पुआद, बांगर, पूर्वी बिहार, बंगाल, असम आदि प्रदेशों में सच्चे धर्म का संदेश दिया। आप की बाणी ऐसी अद्भुत है कि कठोर मनों को भी कोमल करने की अपार शक्ति रखती है। सतलुज के किनारे पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीद कर चक नानकी नगर बसाया। हिंदुस्तान के अंदर मुगल शासन के जुल्म तथा जबर वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए आपने माघ सुदी 5 सम्वत 1722 (11 नवम्बर 1675) को अपनी शहीदी दी। वर्ष 1969 से सिख गुरु साहिबान की शताब्दियों को मनाने की प्रथा शुरू हुई। 

शताब्दियां मनाना सार्थक हो सकता है यदि गुरमत का संदेश विश्व भर में पहुंचे। श्री गुरु नानक देव जी का 500वां प्रकाश पर्व 1969 में शिरोमणि अकाली दल की संयुक्त सरकार और मुख्यमंत्री स. गुरनाम सिंह के नेतृत्व में मनाया गया। जिसमें देश के तत्कालीन राष्ट्रपति वी.वी. गिरि, पख्तून नेता खान अब्दुल गफ्फार खान, तिब्बत के धार्मिक नेता दलाईलामा, संत फतेह सिंह, स. गुरदयाल सिंह ढिल्लों तथा सब दलों के नेता एक मंच पर एकत्रित हुए। श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए श्री गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी का नींव-पत्थर रखा गया। एक अच्छी पंजाबी फिल्म ‘नानक नाम जहाज’ को भी बेहद सराहा गया। 

बतौर मुख्यमंत्री पंजाब ज्ञानी जैल सिंह ने 1973 को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के श्री आनंदपुर साहिब छोड़ने से लेकर दमदमा साहिब तलवंडी साबो पहुंचने तक 577 कि.मी. के रास्ते पर ऐतिहासिक गांवों पर धर्म स्थानों को जोडऩे का नींव-पत्थर रख कर श्री गुरु गोबिंद सिंह मार्ग के निर्माण की बात की। गुरु जी के शस्त्र ब्रिटेन से वापस मंगवा कर इन रास्तों से गुजरे यहीं से धर्म में राजनीति की दखलअंदाजी की शुरूआत हुई। जत्थे. गुरचरण सिंह टोहरा अध्यक्ष एस.जी.पी.सी. सहित अन्य अकाली नेता इस मार्च में प्रसाद बांटते दिखाई दिए। इस मार्ग पर 48 वर्षों के बाद भी बस सेवा शुरू नहीं हुई और यह बात केवल राजनीतिक ड्रामेबाजी तक ही सीमित रही। 

श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के जीवन तथा उनकी शिक्षाओं पर रोशनी डालने और उसे आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया गया। श्री गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी के नाम पर तैयार होने वाला मैडीकल कालेज भी वह श्री आनंदपुर साहिब से अपने पुश्तैनी शहर फरीदकोट ले गए। श्री आनंदपुर साहिब आज भी डाक्टरी सहूलियतों की कमी देख रहा है। इसके बाद गुरु साहिबान और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की शताब्दियां व अद्र्ध शताब्दियों की झड़ी ही लग गई। एक भी कार्यक्रम सर्ब सांझा नहीं हुआ।  अलग-अलग राजनीतिक पाॢटयां अपना-अपना ढोल पीटती रहीं और अपना राग अलापती रहीं। ये पार्टियां श्री तरनतारन साहिब,. श्री अमृतसर साहिब, श्री सुल्तानपुर लोधी साहिब में दिखीं। न तो गुरु साहिबान की शिक्षाओं पर रोशनी डाली गई और न ही उनके जीवन और इतिहास के बारे में कोई चर्चा हुई। 

श्री करतारपुर साहिब कोरीडोर भी एक राजनीतिक सौदा है। इसी समय दौरान श्री ननकाना साहिब के ग्रंथी सिंह की बेटी का अपहरण कर उसका धर्म परिवर्तन करवा दिया गया। पाकिस्तान में 365 के करीब ऐतिहासिक तथा अन्य गुरु घर हैं जिनकी देख-रेख के लिए वक्फ बोर्ड का प्रमुख एक वही व्यक्ति होता है जिसका सिख धर्म से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता। 

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अपने आपको सिख समुदाय की प्रमुख संस्था के तौर पर पेश करती है। इसने यू.एन.ओ. की ओर से 1 मई 2021 को मनाई जा रही श्री गुरु तेग बहादुर जी की जन्म शताब्दी के लिए केंद्र सरकार ने भी 70 सदस्यों वाली एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाई है मगर पता नहीं उस कमेटी में श्री गुरु तेग बहादुर जी के विचारों और उनकी शिक्षाओं के प्रचार के बारे में जानकारी रखने वाले कितने लोग हैं। 

श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने अपनी माता जी के नाम पर नगर चक्क नानकी का निर्माण किया था। उसके बाद एक अलग शहर श्री आनंदपुर साहिब की नींव श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने रखवाई थी। आखिर क्यों नहीं गांव चक्क नजदीक आनंदपुर साहिब का नाम फिर से चक्क नानकी रख कर इतिहास को ठीक किया जाए। सिख धर्म का मंतव्य लोगों की सेवा और सुरक्षा करना ही नहीं दूसरे धर्मों की रक्षा हेतु अपनी जान न्यौछावर करना भी है। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब का जीवन इसकी एक बड़ी मिसाल है।-इकबाल सिंह लालपुरा

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