हार के सदमे से कैसे उबरें विपक्षी दल

Edited By ,Updated: 27 May, 2019 01:37 AM

how to recover from the shock of defeat opposition party

इन लोकसभा चुनावों में हुई भयानक हार से विपक्ष कैसे उबर पाएगा? हम जैसे बाकी लोग जो राजनीति में नहीं हैं, कभी भी इतने बड़े पैमाने पर हुए नुक्सान का मतलब नहीं समझ पाएंगे। हार की समस्या व्यक्तिगत तौर पर शुरू होती है। आत्मविश्वास का खो जाना और इस बात की...

इन लोकसभा चुनावों में हुई भयानक हार से विपक्ष कैसे उबर पाएगा? हम जैसे बाकी लोग जो राजनीति में नहीं हैं, कभी भी इतने बड़े पैमाने पर हुए नुक्सान का मतलब नहीं समझ पाएंगे। हार की समस्या व्यक्तिगत तौर पर शुरू होती है। आत्मविश्वास का खो जाना और इस बात की शर्म कि बाकी लोग हमारी ओर अलग तरह से देख रहे होंगे, ऐसी बातें हैं, जिनका हम में से अधिकतर को इतने बड़े पैमाने पर सामना नहीं करना पड़ता। हमारी हार और नुक्सान ज्यादातर व्यक्तिगत होते हैं और दूसरे लोग इनके बारे में तभी जान पाते हैं जब हम उन्हें बताते हैं। विपक्षी नेताओं के मामले में ये बातें सार्वजनिक होती हैं। 

इसके अलावा एक सवाल यह भी होता है कि आप को उस विरोधी का सामना करना पड़ता है जिसने आपको पीटा है। युद्ध में हारने वाले की या तो मौत होती है या आत्मसमर्पण। राजनीति में हार इतिहास बन चुकी होती है। अब आपको वर्तमान में उन लोगों के साथ काम करना होता है जिन्हें कल तक आप गालियां दे रहे थे अथवा वे आपकी आलोचना कर रहे थे। लेकिन अब तर्क समाप्त हो चुके हैं और आप अपमानित हो चुके हो। अब क्या किया जाना चाहिए? 

हारे हुए नेताओं के लिए सलाह की कमी नहीं होगी, विशेष तौर पर मीडिया की ओर से जो उन्हें बताएगा कि कहां गलती हुई और अब उन्हें क्या करना चाहिए। इनमें से कुछ सलाह महत्वपूर्ण होगी लेकिन मेरा अनुमान है कि अधिकतर बेकार ही होगी। एक टैलीविजन कार्यक्रम में, जहां मैं मेहमान के तौर पर गया था। हम लोग ‘वरिष्ठ पत्रकार’ के पद के बारे में हंस रहे थे। वास्तव में लेखन के 30 या 40 वर्ष के अनुभव की तुलना आप किसी रैली के 35 मिनट के सम्बोधन से नहीं कर सकते। हार और जीत के कारणों को किसी हारे हुए व्यक्ति से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। उनके पास वह जानकारी होती है जो वास्तविकता और अनुभव पर आधारित होती है। 

इसलिए इस बात को समझ कर और सलाह देने की इच्छा किए बगैर आइए देखते हैं कि वे लोग क्या कदम उठा सकते हैं। जब पाकिस्तानी जनरल अयूब खान 1950 में राष्ट्रपति बने तो उनका कहना था कि उन्होंने  सबसे पहले एक अभिमूल्यन (एप्रैसिएशन) लिखा। यह एक सैन्य टर्म है, जिसमें यह बताया जाता है कि कोई व्यक्ति किस स्थिति में है। मेरे ख्याल से यह एक अच्छा पहला कदम होगा। 

स्थिति का मूल्यांकन करें
जीत का मूल्यांकन करना आसान होता है। हार की स्थिति का मूल्यांकन करना सम्भवत: कष्टदायी है लेकिन फिर भी यह किया जाना चाहिए। राज्य दर राज्य और उम्मीदवार दर उम्मीदवार वर्तमान स्थितियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इस अभिमूल्यन में विरोधी के बारे में एक गैर भावनात्मक और ईमानदार मूल्यांकन होना चाहिए। किसी नेता या प्रबंधक के पास सबसे तेज यंत्र शायद पारदॢशता है। कहा जाता है कि सूर्य की रोशनी सबसे अच्छी नि:संक्रामक है। जीतने वालों की ताडऩा से हताश और निराश हो चुके कार्यकत्र्ताओं और समर्थकों के लिए खुलापन प्रेरणास्रोत हो सकता है। यदि हारे हुए लोग इस सच्चाई का सामना कर लें कि वे क्यों हारे और आज उनकी स्थिति क्या है तो इससे उनका हौसला बढ़ेगा। इसके अलावा जिम्मेदारी का सवाल है। 

कार्यकत्र्ताओं में जोश भरना होगा
मैं किसी पर दोषारोपण नहीं करना चाहता। मेरा ख्याल है कि किसी नेता के लिए पद छोड़ कर चले जाना आसान होगा और शायद यह सही कदम भी होगा। लेकिन इस क्रम में पारदशर््िाता पहले नम्बर पर आएगी। किसी हारी हुई पार्टी के नेता को त्यागपत्र देने से पहले अपने कार्यकत्र्ताओं में दोबारा जोश भरना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यही माना जाएगा कि वह गुस्से में पद छोड़ कर जा रहा है। ऐसी स्थिति में उसे नि:स्वार्थ भाव से काम करना होगा। मेरे विचार से विपक्ष चुनाव में इससे बेहतर कार्य नहीं कर सकता था। यहां वहां गठबंधन में कमी और कुछ लोकसभा क्षेत्रों में गलत उम्मीदवार के चुनाव को भी वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। इतनी बड़ी हार से किसी तकनीक या रणनीति द्वारा नहीं बचा जा सकता था। 

कुछ गहरी बातें हैं जिन पर काम होना चाहिए। ऐसा माना गया कि विपक्ष की ओर से कुछ गलतियां हुई हैं-उदाहरण के लिए आक्रामक न होना, चीजों को सहजता से लेना, छुट्टी पर चले जाना, गठबंधन के लिए प्रयास नहीं करना-ये सारे काम किए गए। इसके बावजूद यदि हार हुई है तो इसके लिए सजगता या प्रयासों में कमी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। कुछ बड़ी ताकतें सक्रिय रही हैं। एक अन्य कदम के तौर पर सहयोगियों और दोस्तों को एकजुट करना होगा। सिविल सोसायटी, अर्थात गैर-सरकारी संगठनों जैसे समूहों को विपक्ष के साथ सहानुभूति है। यह संगठन भी कुछ ऐसे मुद्दों के लिए काम करते हैं जिनके लिए कुछ राजनीतिक दल करते हैं। इनमें से बहुत से संगठन दशकों से संघर्ष कर रहे हैं। यह संगठन किसी पार्टी की हार के मूल्यांकन और पुनर्गठन में योगदान दे सकते हैं।

तीसरी और अंतिम बात यह कि हारे हुए, खास तौर पर पुराने दलों को अपने संस्थापक सिद्धांतों की ओर वापस जाना चाहिए और इस बात का मूल्यांकन करना चाहिए कि वे उन सिद्धांतों से कितनी दूर या कितने पास हैं। पार्टी के अंदर कुछ ऐसी बात थी जो भारतीयों को आकॢषत करती थी। वह बात या उसका कोई पहलू कैसे दोबारा शुरू किया जा सकता है? यह एक अच्छा प्रश्र है जिस पर विचार होना चाहिए। इसके अलावा हौसला बरकरार रहना चाहिए। सिविल सोसायटी और एन.जी.ओज हारने पर गीत के माध्यम से ऐसा करते हैं। स्वयंसेवक की भावना किसी मकसद की भावना से आती है लेकिन काम करने में आनंद की अनुभूति होनी चाहिए और इससे ऊर्जा मिलनी चाहिए। 

दिनचर्या शुरू करें
इस संवाद की अंतिम बात यह है कि दिनचर्या शुरू की जाए। दिनचर्या बहुत अच्छी चीज है। समय पर उठना और किसी विशेष समय पर काम में जुट जाने से काफी अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। दिनचर्या के माध्यम से हम छोटे-छोटे कदम उठाना शुरू करते हैं, जिससे हमारे अंदर यह आत्मविश्वास आता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं।-आकार पटेल

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