कर्ज के मर्ज से बेजार होता जा रहा हिमाचल

Edited By ,Updated: 16 Mar, 2016 12:46 AM

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पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश भी अन्य बड़े राज्यों की तरह आर्थिक सुधारों की कमी के चलते कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है।

(डा. राजीव पत्थरिया): पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश भी अन्य बड़े राज्यों की तरह आर्थिक सुधारों की कमी के चलते कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है। हिमाचल के पास जल-विद्युत, बागवानी और पर्यटन ऐसे क्षेत्र हैं जिनके सही दोहन से राज्य की आर्थिकी को बल मिल सकता है लेकिन इन तीनों प्रमुख क्षेत्रों पर आज तक कोई भी सरकार सही ढंग से गौर नहीं कर पाई है।

 
 प्रदेश इस समय लगभग 35151 करोड़ रुपए के कर्ज तले दब चुका है और हर साल इसके ब्याज को चुकाने और अन्य कार्यों के लिए नए कर्ज उठाने पड़ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में शुरू से ही वित्त व योजना मंत्रालय का जिम्मा मुख्यमंत्रियों के पास रहा है जिस कारण हर साल बजट बनाने का जिम्मा पूरी तरह से अफसरशाही पर रहता है और बजट को थोड़ा-बहुत राजनीतिक रंग मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों की सलाह से देने की कोशिश की जाती रही है। 
 
इस बार भी वित्त वर्ष 2016-17 के लिए मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कुल 32593 करोड़ का बजट सदन में पेश किया है जिसमें 4076 करोड़ का वित्तीय घाटा होने का अनुमान है। इस बजट को उदारवादी तो कहा जा सकता है लेकिन किसी भी तरह से इसे आर्थिक सुधारों वाला बजट नहीं कह सकते हैं क्योंकि इसमें केंद्र और राज्य के करों (टैक्स) से होने वाली आमदन के अलावा शेष 19.40 प्रतिशत योगदान के लिए नए कर्ज आदि उठाने की बात कही गई है जो कि हिमाचल प्रदेश के लोगों के हित में नहीं है।
 
कुल बजट में से विकास कार्यों पर केवल 40.86 प्रतिशत धन ही खर्च किया जाना प्रस्तावित है जबकि वेतन और पैंशन का बोझ इस कदर बढ़ गया है कि उस पर अनुमानित खर्च 41.87 प्रतिशत रहेगा। राज्य द्वारा उठाए गए कर्जों के ब्याज पर भी आगामी वित्त वर्ष में कुल बजट का 17.27 प्रतिशत भाग व्यय होगा। 
 
वीरभद्र सिंह का यह 19वां बजट था लेकिन इसमें उन्होंने कहीं भी सरकार की ओर से किए जाने वाले आॢथक सुधारों का जिक्र नहीं किया है। जाहिर है कि आगामी वित्त वर्ष में भी सरकार को अपना काम चलाने के लिए नए कर्ज उठाने पड़ेंगे। हालांकि इस बार हिमाचल प्रदेश को विशेष श्रेणी राज्य के तौर पर मिलने वाली केंद्रीय आर्थिक सहायता का पैट्रन पुन: 90:10 होने के कारण कुछ राहत मिलेगी परन्तु दूसरी ओर अब केंद्र योजना आधारित फंङ्क्षडग करेगा, जिसके लिए सरकार और अफसरशाही को अब कमर कसनी पड़ेगी क्योंकि अब तक हिमाचल केंद्र से योजना आधारित फंड लाने में काफी पीछे रहा है। 
 
जिसका प्रमुख कारण राज्य के मंत्रियों की केंद्र सरकार के साथ तालमेल की कमी के अलावा ऐसे कार्य के लिए निपुण अधिकारियों का अभाव रहा है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने यूं तो बजट में सीमित संसाधनों के बावजूद प्रदेश के हरेक वर्ग को रिझाने की कोशिश की है परन्तु अधिकारियों द्वारा तैयार किए गए इस बजट में अधिकतर ऐसी योजनाओं का जिक्र है जो कि केंद्र द्वारा पहले से ही संचालित की जा रही हैं। इस बार मुख्यमंत्री की कृषि क्षेत्र को लेकर गंभीरता की झलक इस बजट में देखने को मिली है। उन्होंने आवारा पशुओं के कारण खेती छोड़ रहे किसानों को उनके खेतों में बाड़ लगाने और सिंचाई के लिए भारी मात्रा में अनुदान वाली योजनाओं की घोषणा की है। 
 
राज्य में 808767 पंजीकृत बेरोजगार हो चुके हैं, उनके लिए सरकार क्या करेगी, इसका कोई भी खास जिक्र बजट में नहीं है। सरकारी क्षेत्र में वर्ष 2016-17 में लगभग 13000 पद भरने का सरकार ने दावा जरूर किया है। मात्र 6864602 की छोटी आबादी वाले इस प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों का इतना बड़ा आंकड़ा चौंकाने वाला है। हालांकि सरकार की ओर से कौशल विकास निगम की स्थापना बेरोजगारी हटाने के लिए ही की गई है परन्तु ठोस योजना के अभाव में यह निगम अपने उद्देश्य में आगे नहीं बढ़ पा रहा है। 
 
हिमाचल की ताजा आॢथक सर्वेक्षण सर्वे की रिपोर्ट को देखें तो प्रदेश की जी.डी.पी. (सकल घरेलू उत्पाद) में अब सबसे ज्यादा योगदान सेवा क्षेत्र का तकरीबन 43 प्रतिशत हो चुका है जबकि दूसरे नंबर पर 21.8 प्रतिशत के साथ उद्योग है।कभी प्रदेश की आर्थिकी का मुख्य जरिया रहे कृषि क्षेत्र का योगदान जी.डी.पी.  में केवल मात्र 10.4 प्रतिशत तक सिमट गया है जबकि आजादी के बाद कभी कृषि क्षेत्र का जी.डी.पी. में योगदान 57 प्रतिशत से अधिक रहा है। इस बजट में पर्यटन, जल-विद्युत और कृषि क्षेत्र को स्वरोजगार के साथ जोडऩे वाली राज्य की ओर से शुरू की जाने  वाली बहूद्देशीय योजनाओं की कमी रही है। 
 
 वर्तमान वित्त वर्ष में राज्य में प्रति व्यक्ति सालाना आय 130067 रुपए आंकी गई है जो कि राष्ट्रीय आंकड़े से बहुत आगे है। गत वर्ष की तुलना में इसमें 10347 रुपए की बढ़ौतरी हुई है। यह हिमाचलवासियों के लिए सुखद तो है परन्तु दूसरी ओर प्रदेश पर लदे कर्ज की हिस्सेदारी आंकी जाए तो प्रत्येक हिमाचली पर 47284 रुपए का कर्ज है। विपक्ष के नेता प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने सदन में बजट की कमियों को गिनाते हुए उक्त विषय का खास जिक्र किया है। उन्होंने इसे बेरोजगारों और प्रदेश के विकास के लिए कोई ठोस आर्थिक योजना के अभाव वाला बजट बताया है। 
 
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