Edited By ,Updated: 26 Jul, 2020 02:15 AM
मकड़ी के जाल पर जानकारी जुटाने के लिए यदि आप इंटरनैट पर सर्च करेंगे तो आप मकड़ी के जाल से संबंधित 6 चौंकाने वाले तथ्यों के बारे में जानकारी हासिल
मकड़ी के जाल पर जानकारी जुटाने के लिए यदि आप इंटरनैट पर सर्च करेंगे तो आप मकड़ी के जाल से संबंधित 6 चौंकाने वाले तथ्यों के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
1. मकड़ी के पास डिजाइन करने की समझ होती है।
2. मकड़ी के जाल अपने शिकार में बाधा नहीं डालते बल्कि वे उन्हें आकर्षित करते हैं।
3. मकड़ी के जाल किसी कारण के लिए चमकदार होते हैं।
4. मकडिय़ां बेहद डरपोक होती हैं।
5. मकडिय़ां बड़ा सोचती हैं।
6. मकडिय़ां आमतौर पर प्रत्येक दिन अपना जाल बदलती हैं।
यदि आप मेरी तरह सोच रहे हैं तो आप कहोगे कि यह कितना उचित है। भारत-चीन सीमा पर परिवर्तनशील हालात के लिए यह बातें उचित लगती हैं। यह बातें कोरोना वायरस के खिलाफ छेड़े गए युद्ध में मिली हार के लिए उचित लगती हैं। ये बातें उन लोगों के लिए उचित लगती हैं जो अपना रोजगार खो चुके हैं और जो मायूस बैठे हैं। अर्थव्यवस्था तेजी से ढलान की ओर जा रही है। ऐसी बातें राजस्थान में चल रहे सत्ता के संघर्ष के लिए उचित हैं जिसमें 2 प्रमुख राजनीतिक दल फंस कर रह गए हैं।
राजस्थान
सचिन पायलट एक युवा व्यक्ति हैं तथा बड़ी अभिलाषा रखते हैं। इसमें कोई गलत नहीं। गलत यह है कि चोट करने का समय सही नहीं था। राजस्थान सहित पूरा राष्ट्र ऐसी तीन चुनौतियों को झेल रहा है जिससे उसका पहले कभी सामना नहीं हुआ। जहां तक अर्थव्यवस्था और महामारी का सवाल है भाजपा ने एक पार्टी तथा एक सरकार के तौर पर पल्ला झाड़ा है। चीनी गतिरोध के खिलाफ सरकार कीचड़ में फडफ़ड़ा रही है तथा सीमा पर सही हालातों के बारे में खुलासा नहीं कर रही है। सरकारी प्रवक्ताओं के पास एक अवांछनीय कार्य है कि वह विरोध की कैसे व्याख्या करें। मुझे आश्चर्य होगा यदि लव अग्रवाल उस बात को समझें जिसे अनुराग श्रीवास्तव ने कहा था। यदि इन दोनों ने नोटिस किया हो तो वित्त मंत्री के बारे में प्रत्येक सप्ताह देखा जा सकता है।
सचिन पायलट उस कपड़े का हिस्सा नहीं जिसे भाजपा ने पहना है। उन्हें राजस्थान की अर्थव्यवस्था को फिर से ट्रैक पर लाने तथा महामारी से लडऩे के लिए लोगों की मदद करने हेतु अपनी पूरी ऊर्जा लगानी चाहिए थी। पायलट के समक्ष स्थिर मोहन लाल सुखाडिय़ा की मिसाल है। पायलट को मैराथन दौड़ के लिए तैयार रहना चाहिए तथा उन्हें तब तक उप मुख्यमंत्री रहना चाहिए था जितना मोहन लाल सुखाडिय़ा रहे। अप्रत्याशित तौर पर सचिन के पास एक डिजाइन करने की समझ नहीं थी तथा उन्हें अपने शिकार की गतिविधियों में बाधा डालनी चाहिए थी। इसी कारण वह मझधार में फंस गए। अब उनको यह समझ नहीं आ रही कि वह अपनी किश्ती को किस ओर ले जाए।
अर्थव्यवस्था
यदि आप अर्थव्यवस्था को देखें या फिर ये देखें कि मलबे में बाकी क्या बचा है तब हम लम्बे समय तक दिखाई देने वाली या फिर गहरी मंदी को देख सकेंगे जिसका पूर्व अनुमान नहीं था। पहली तिमाही बीत गई और अभी भी वित्तीय प्रोत्साहन का कोई चिन्ह नहीं दिखाई पड़ता और न ही उपभोक्ता की मांग को बढ़ाने के लिए कोई प्रयास किया गया। यदि कुछ लोग ये सोचते हैं कि अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए वित्तीय उपाय काफी हैं तो वह निर्मला सीतारमण, के.वी. सुब्रह्मण्यम, राजीव कुमार तथा प्रधानमंत्री के भाषण को लिखने वाला है।
हाथ पर अभी भी एक उंगली बाकी है और यहां पर ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं जो चौकड़ी के लिए गिनती करना चाहता है। प्रत्येक कमजोर उपाय का निष्कर्ष कुछ भी नहीं निकल रहा। यदि हमारे प्रशासकों को अर्थव्यवस्था के पुनॢनर्माण के बारे में किसी डिजाइन की अनुभूति नहीं होगी तब यह पूरी तरह से धराशायी हो जाएगी। कोरोना वायरस के पास मकड़ी की सभी विशेषताएं हैं। यह प्रत्येक देश को अपनी पकड़ में जकड़ चुका है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत के प्रत्येक राज्य तथा जिले में महामारी फैली हुई है। प्रत्येक देश के हालातों को इसने अपने आप में ढाल लिया है। फिर चाहे वह जनसांख्यिकी हो, पर्यावरण हो, लोगों की आदतें हों, स्वास्थ्य ढांचा हो, आय के स्तर हों या फिर सरकार की प्रशासनिक क्षमता की तैयारी हो।
जब भारतीय लोगों को यह यकीन दिलाया गया कि वायरस के खिलाफ युद्ध 21 दिनों में जीत लिया जाएगा तब प्रधानमंत्री ने 18 दिन तक चले महाभारत के युद्ध को इसकी तुलना कर दी। क्या वह जानते नहीं थे कि यह एक झूठा वायदा किया गया है जो न तो मैडीकल साइंस न ही मध्यकालीन युग की धारणाओं पर आधारित है। अब हमने यह सीख लिया है कि इस वायरस के खिलाफ कोई भी हथियार कारगर नहीं है। जब तक कि एक वैक्सीन को खोजा, प्रमाणित तथा उसे बांटा नहीं जाता। लोगों ने अब सब कुछ सरकारों पर छोड़ दिया है फिर चाहे वह केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकार हो। जो लोग इसको झेल सकते हैं उन्होंने अपने आपको आइसोलेट कर रखा है और जो इसको नहीं झेल सकते उन्होंने अपना जीवन गंवा दिया है। जिंदगी नए आयामों पर लौटेगी जिसमें मृत्यु दर के केस निश्चित होंगे। लॉक-अनलॉक पूरी तरह से फिजूल हैं। अब इससे यह मतलब नहीं कि सरकारें अपने जालों को किस तरह बदलेंगी।
चीन
चीन एक मूल मकड़ी है। इसके पास वह सभी विशेषताएं हैं जो एक मकड़ी के पास होनी चाहिएं। सबसे परे इसके पास सोचने की बड़ी शक्ति है और यह अपने शिकार को अपनी ओर आकॢषत करता है। 6 वर्षों में चीनी नेताओं संग 18 बैठकें हुईं जिसमें चीन की यात्रा तथा 3 सम्मेलन भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक तपस्वी हैं। उनके पास एक बड़ा अहंकार है (सभी प्रधानमंत्रियों के पास होता है) चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मोदी के उपायों को सही ढंग से लिया और उन्हें उच्च स्तरीय आर्थिक तथा व्यापारिक बातचीत के द्वारा चपटा करके रख दिया। उन्होंने आपसी निवेश को प्रोत्साहित करने का प्रस्ताव दिया और मोदी के साथ एक बड़े आकार की स्टेज (2020) होने का वायदा किया। 2020 को उन्होंने‘भारत-चीन सांस्कृतिक तथा लोगों से लोगों तक आदान-प्रदान’ का वर्ष करार दिया और जनवरी 2020 में उन्होंने पी.एल.ए. को भारत पर आक्रमण करने के लिए कह दिया।
चीन के लिए भारत एक ज्वाला है जिसे शी जिनपिंग ने हांगकांग, ताइवान, दक्षिण चीन सागर, बैल्ट एंड रोड पहल के साथ शुरू किया। यदि यह ज्वाला भड़की तो चीन शक्तिशाली होकर उभरेगा। अपने आप से यह पूछें कि ट्रम्प को छोड़कर किस वैश्विक नेता ने भारत के खिलाफ चीनी आक्रमण की ङ्क्षनदा की है? यदि चीन एक मकड़ी है तो भारत उसका शिकार है जो चीनी जाल की ओर आकर्षित हुआ है।-पी. चिदम्बरम