भारत बहुत ज्यादा ‘झुकेगा’ तो कुछ भी हासिल नहीं होगा

Edited By ,Updated: 19 Jul, 2020 02:59 AM

if india will bow too much nothing will be achieved

यह रहस्य उजागर है। पिछले सप्ताह मैंने लिखा था कि 12 अक्तूबर 2019 को महाबलीपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत की कमजोर स्थिति को सही ढंग से भांप लिया था। उन्हें ज्ञात था कि भारतीय अर्थव्यवस्था ढलान की ओर है। वहीं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र...

यह रहस्य उजागर है। पिछले सप्ताह मैंने लिखा था कि 12 अक्तूबर 2019 को महाबलीपुरम में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत की कमजोर स्थिति को सही ढंग से भांप लिया था। उन्हें ज्ञात था कि भारतीय अर्थव्यवस्था ढलान की ओर है। वहीं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरी तरह से शी की हरकतों को भांप नहीं पाए। भारतीय प्रतिनिधि महाबलीपुरम में सूर्य की रोशनी से गर्मा गए तथा वह वर्ष 2020 को ‘भारत-चीन सांस्कृतिक एवं लोगों से लोगों तक का ‘आदान-प्रदान’’  मनोनीत कर खुश हुआ प्रतीत हो रहा था। उसके बाद 21 दिसम्बर को दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच बैठक में खुशमिजाजी नजर आई। 

अब यह खुलासा हुआ है कि शी ने जनवरी 2020 में एक नए ट्रेनिंग मोबीलाइजेशन आर्डर (टी.एम.ओ.) पर हस्ताक्षर किए और उस आदेश के बाद पी.एल.ए. ने योजना, लामबंदी तथा भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) पर सैन्य बलों की गतिविधियां शुरू कर दीं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार जोकि एक खुफिया अधिकारी के कोट को लेकर बताई गई, वह यह थी कि चीनी सेना की गतिविधियों पर प्रथम खुफिया रिपोर्टें मध्य अप्रैल 2020 में उपलब्ध थीं। 

इन सवालों के जवाब चाहिएं 
-क्या विदेश मंत्रालय तथा सेना मुख्यालय नए टी.एम.ओ. से परिचित नहीं थे?
-क्या भारतीय खुफिया तंत्र तथा आर. एंड ए. डब्ल्यू.ने एल.ए.सी. के चीनी और सैन्य लामबंदी को नहीं परखा। 
-क्या हमारे सैटेलाइटों ने चीनी वाहनों तथा सैन्य बलों के एल.ए.सी. की तरफ चालू की गई गतिविधियों के चित्र नहीं खींचे? गलवान घाटी तथा पैंगोंग त्सो के बीच 200 किलोमीटर लम्बे रास्ते के कई ङ्क्षबदुओं के चित्र क्यों नहीं खींचे गए। 
-मध्य अप्रैल 2020 की खुफिया रिपोर्टों का आकलन क्यों नहीं किया गया। उन्हें उच्च स्तरीय लोगों के साथ क्यों नहीं साझा किया गया तथा उसके बाद इसका निष्कर्ष क्यों नहीं निकाला गया?
-ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जरूर मिलना चाहिए। अब नहीं तो कुछ समय के बाद जवाब मिलना चाहिए। 
-दोनों देश अब अपनी सेनाओं को पीछे की तरफ भेज रहे हैं। यह अपने आप में एक अच्छी बात है और मैं इस प्रक्रिया का समर्थन करता हूं। युद्ध ने कभी भी सीमा विवादों का हल नहीं किया। टी.वी. एंकरों तथा जनरलों  के उकसावे या आग्रह के बावजूद भी भारत-चीन के बीच युद्ध एक विकल्प नहीं है। यह संतुष्टिदायक है कि प्रधानमंत्री ने सच्चाई को भांप लिया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि शी भी यही मानते हैं कि युद्ध एक विकल्प नहीं। यह भी यकीनी नहीं कि पी.एल.ए. ने शी को यह जोर देकर कहा कि युद्ध जैसा सीमित आक्रमण एक विकल्प नहीं तथा पी.एल.ए. 2 कदम आगे तथा एक कदम पीछे रख सकती थी। 

हाल ही के दिनों से दो उदाहरणें देपसांग (2013) तथा डोकलाम (2017) आती हैं। देपसांग में चीनी घुसपैठ को पूरी तरह से खाली करवा लिया गया मगर  पूर्व एन.एस.ए. शिव शंकर मैनन के अनुसार डोकलाम में यह शुरू हुआ जहां पर अन्य बातचीत के बाद 2017 में गतिरोध के बाद वापसी की। उसके बाद चीन ने अपनी बड़ी सशक्त स्थायी उपस्थिति पठार में दिखाई। गतिरोध के बिंदू को पूरी तरह से छोड़ दिया। मैनन ने डोकलाम पर सरकार को लेकर कहा कि उसने सबक सीख लिया पर भारत जीत के प्रचार-प्रसार से पीछे नहीं हटा। भारत अपने पक्ष में जमीनी स्तर पर फायदा उठा सकता था। इंटरव्यू के 6 दिनों के बाद (जुलाई 13, 2020 के 6 दिन बाद) सरकार ने डोकलाम में जमीनी स्तर पर वास्तविक स्थिति की व्याख्या नहीं की। क्या डोकलाम में पठार पर चीनियों ने अपनी सशक्त स्थायी उपस्थिति दर्ज करवाई थी? क्या भूटान चीनी उपस्थिति के बारे में चुप्पी साधे हुए है। वह असहाय है? क्या भारत भूटान को लेकर कुछ नहीं बोलेगा? हालांकि ऐसे सवालों के जवाब नहीं हैं। एक झूठी कहानी कही गई कि डोकलाम में भारत ने चीनियों को पीछे धकेल दिया तथा यह मोदी के परिचारक के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थी। 

कहां से कहां तक?
एल.ए.सी. के आसपास कई स्थानों का वर्तमान गतिरोध देपसांग या फिर डोकलाम के रास्ते पर जाता है। इससे पहले आप आगे पढ़ें आप अपने दिमाग में एल.ए.सी. के प्रति दो धारणाएं रखें। एक तो चीनी धारणा और दूसरी भारतीय धारणा। इन्हें लेकर दिमाग में एक जरूरी भिन्नता पाई जाती है। उसके लिए तथ्यों को जानना होगा। इसमें कोई शंका नहीं कि दोनों देश पीछे की ओर वापसी कर रहे हैं। सवाल यह है कि वे कहां से कहां तक पीछे हट रहे हैं? 

सबसे पहले हम चीन को लेते हैं 
यदि चीन ने एल.ए.सी. को पार नहीं किया जैसा कि उनकी धारणा कहती है। तब वह अपने ही क्षेत्र से अपने ही क्षेत्र की तरफ पीछे मुड़ रहे हैं। यदि चीनी बलों ने एल.ए.सी. को पार किया तब उनकी धारणा के तहत वे वास्तव में भारतीय क्षेत्र में कथित तौर पर आगे बढऩे के बाद उसे खाली कर रहे हैं। भारतीय स्थिति यह है कि हमारे बलों ने कभी भी एल.ए.सी. को पार नहीं किया। ऐसी हमारी धारणा कहती है और यही बात 15-16 तारीख को व्याप्त थी। भारत ने कर्नल संतोष बाबू तथा उनकी टीम की कार्रवाई का बचाव किया कि उन्होंने भारतीय क्षेत्र में ढांचों के प्रति आपत्ति जताई। 5 जून को कमांडर स्तर की बैठक के बाद इसी बात पर सहमति हुई। इसलिए अचूक निष्कर्ष यह है कि भारत अपने ही क्षेत्र से अपने ही क्षेत्र की ओर पीछे की ओर मुड़ रहा है। 

कैसी यथास्थिति?
यह आम समझने की बात है कि दोनों ओर से सेना की नई स्थितियों के बीच कोई भी ‘नो ट्रुप्स लैंड’ बनाई गई। यह ऐसी भूमि है जहां पर एल.ए.सी. पड़ती है। फिर यह चाहे चीनी धारणा हो या फिर भारतीय। यह स्थान सीमा पर शांति तथा सौहाद्र्ध का नेतृत्व करता है। मगर यह सीमा विवाद को हल नहीं करेगा। यह स्पष्ट है कि किसी प्रकार का बफरजोन बनाया जा रहा है। यदि भारत बहुत ज्यादा झुकेगा तो कुछ भी हासिल नहीं करेगा। हमें सारी प्रक्रिया तथा गतिविधि को नजदीक से देखना होगा।-पी.चिदंबरम

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