पंजाब में ‘नजरअंदाज’ हुए एन.आर. आइज

Edited By ,Updated: 28 Dec, 2019 01:41 AM

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एन. आर.आई. पंजाबियों की पंजाब के विधानसभा चुनावों के समय जो भूमिका होती है वह कई बार फैसलाकुन होती है। पिछले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) के साथ जैसे एन.आर.आइज खड़े थे, उन्होंने अकालियों को पछाड़ कर ‘आप’ को विपक्ष के तौर पर खड़ा कर दिया।...

एन. आर.आई. पंजाबियों की पंजाब के विधानसभा चुनावों के समय जो भूमिका होती है वह कई बार फैसलाकुन होती है। पिछले विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) के साथ जैसे एन.आर.आइज खड़े थे, उन्होंने अकालियों को पछाड़ कर ‘आप’ को विपक्ष के तौर पर खड़ा कर दिया। इस कारण अकाली दल तथा पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भी उनसे दूरी बनाते नजर आए। कैप्टन का विरोध तो सरेआम अमरीका/कनाडा में दिखाई दिया। यह बात मीडिया में सुर्खी बन गई। पहले बादल सरकार के समय, फिर उसके बाद कैप्टन सरकार के कार्यकाल के दौरान एन.आर.आइज को नजरअंदाज करने का रुझान हमने देख लिया है। जाहिर तौर पर इसका मकसद एन.आर.आई. सभा पंजाब को मिट्टी में मिलाना है। पिछले 5 सालों से यह सभा निष्क्रिय कर दी गई है। यहां तक कि इसके चुनाव भी नहीं करवाए गए। 

एन.आर.आई. सभा बनाने का क्या था उद्देश्य
पहली बात यह है कि एन.आर.आई. सभा एन.आर.आइज के मसलों विशेष तौर पर उनकी सम्पत्ति के मामलों को हल करने व उनको इंसाफ दिलाने के लिए बनाई गई थी। उनको अदालती, सिविल मामलों, पुलिस के मामलों में न्याय दिलाने के लिए इस सभा का गठन किया गया था। क्योंकि जैसे किसी राज्य के सामाजिक तथा आर्थिक हालात होते हैं, अपराध भी उसी तरह का रूप ले लेता है। पंजाब में 21वीं सदी की शुरूआत से पहले का दशक एन.आर.आइज की जमीन पर कब्जों को लेकर शुरू हुआ। इसका कारण स्पष्ट तौर पर यह था कि उस समय रियल एस्टेट का व्यवसाय अपनी चरम सीमा पर था तथा भू-माफिया भी पूरी तरह से सरगर्म था। इसलिए एन.आर.आइज अपनी खोई हुई जमीन को वापस लेने के मामलों को लेकर जगह-जगह धक्के खा रहे थे। उन्होंने पंजाब सरकार के साथ मिलकर इन मुद्दों को हल करने के लिए विचार-विमर्श किया। सभा का गठन हुआ और इसका कार्यालय जालंधर में लीज पर दे दिया गया। एन.आर.आइज ने निवेश के वायदे किए तथा उनको निभाया भी। 

वे निवेश नहीं कर रहे,जमीन बेच रहे हैं, क्यों? 
दूसरा बड़ा सवाल यह है कि एन.आर.आई. सभा को क्रियाशील ही रहने न देने का भाव क्या समझा जाए? आज कैप्टन साहिब को याद आ गया है कि एन.आर.आई. सभा पंजाब के 5 सालों से लम्बित पड़े चुनाव करवा लिए जाएं। मगर ऐसा आज ही क्यों? समाचार बताते हैं कि इन चुनावों का आगामी कार्यक्रम फरवरी माह के लिए तैयार किया जा रहा है। उस समय बहुत सारे एन.आर.आइज पंजाब आए होते हैं, आपकी पिछली कारगुजारी तथा राजनीतिक चाल के कारण वे लोग स्पैशल वोट डालने के लिए नहीं आते। मगर सरकार 5 वर्ष क्यों सोई रही। अब क्यों जाग गई। आखिर उनकी समस्याएं तो नई नहीं बल्कि अब तो समस्या यह है कि वे लोग अपनी सम्पत्ति बेचकर सुरक्षित पंजाब से बाहर निकलना चाहते  हैं। मुद्दा तो यह है कि अब पंजाब में सम्पत्ति की कीमत ही नहीं रही। गांव-गांव में उन्होंने अपनी जमीन कौडिय़ों के भाव देने के लिए सेल पर लगा रखी है। ऐसा भी समय था कि जब किसी गांव का गेट इंगलैंड में रहते किसी वृद्ध के नाम पर निर्मित किया जाता था। अब उसी वृद्ध के नाम की जमीन के बिकाऊ होने के बोर्ड नजर आते हैं। अब सरकार को चुनाव भी याद आ गए और विशेष अदालतें भी। 

आखिर एन.आर.आई. सभा सफल क्यों न हो सकी
तीसरा और बहुत ही अहम सवाल यह है कि आखिर एन.आर.आई. सभा में भागीदारी के होते हुए भी यह सफल क्यों न हो सकी। केवल एन.आर.आइज के फंड्स के ऊपर सरकारी अधिकारियों की ऐश परस्ती का अड्डा यह क्यों बन गई। उसके पीछे भी आश्चर्यजनक तथ्य हैं। जिस समय इस सभा का गठन हुआ तब अफसरशाही ने इसका विधान इस तरह से गढ़ा कि सभी फैसले करने के अधिकार ब्यूरोक्रेसी को दे दिए गए। सभा के सदस्यों के नाम पर सिर्फ पैसे देने वाले एन.आर.आइज को ही एक किस्म का डम्मी सदस्य बना दिया गया। जब वे कोई फैसला ही नहीं ले सकते थे तब उनकी भूमिका क्या हो सकती थी? वे किस हद तक किसी की मुश्किल का हल कर सकते थे? इस कारण यदि 5 सालों से इस सभा के चुनाव नहीं हुए तो किसी के ऊपर किसी किस्म की जवाबदेही नहीं है। 

वे फैक्टरियां समेट चलते बने, क्यों
क्या कारण है कि 20 हजार के करीब सदस्यों वाली सभा जिसके पास करोड़ों रुपए के फंड पड़े हैं और जिसका ब्याज ही काफी है, की सार लेने वाला कोई नहीं। एन.आर.आइज से जुड़े मामलों का हाल यह है कि मात्र मैट्रिमोनियल मामलों की गिनती पुलिस रिकार्ड के अनुसार 30 हजार के करीब है। इनमें अपराधी एन.आर.आई. दूल्हे या फिर अन्य हैं। आखिर कौन इन सवालों के जवाब देगा। इनके फैसले क्यों नहीं हो रहे। ऐसे मामलों से पार पाना असम्भव क्यों है। एन.आर.आइज के मामलों को निपटाने के लिए स्पैशल थाने बनाए गए थे। स्पैशल पुलिस विंग बनाए गए थे क्योंकि ये काम सभा के दखल देने से होने थे। सभा तो चुप करवा दी गई तब कार्यकुशलता किसने दिखानी थी। कोई पूछने वाला है नहीं। ये सवाल बहुत बड़े हैं।-देसराज काली (हरफ-हकीकी) 
 

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