अवैध आप्रवासियों का मामला भारत के हितों को ध्यान में रखकर हल किया जाए

Edited By Pardeep,Updated: 09 Oct, 2018 04:29 AM

illegal immigrants issue should be resolved by keeping indias interests in mind

यदि आप पर अत्याचार किए जा रहे हैं, आपको देश से निकाल दिया जाता है, आप किसी दूसरे देश में शरण लेते हैं किंतु वहां से भी आपको वापस भेज दिया जाता है तो आपको कैसा लगेगा? यह प्रश्न पिछले सप्ताह उच्चतम न्यायालय में 7 रोहिंग्या आप्रवासियों को वापस म्यांमार...

यदि आप पर अत्याचार किए जा रहे हैं, आपको देश से निकाल दिया जाता है, आप किसी दूसरे देश में शरण लेते हैं किंतु वहां से भी आपको वापस भेज दिया जाता है तो आपको कैसा लगेगा? 

यह प्रश्न पिछले सप्ताह उच्चतम न्यायालय में 7 रोहिंग्या आप्रवासियों को वापस म्यांमार भेजने के मामले में बहस के दौरान उठा। किंतु न्यायालय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि 2012 से असम की जेल में विदेशी नागरिक अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए सजा काट रहे इन अवैध आप्रवासियों को वापस भेज दिया गया। उनकी त्रासदी यह है कि वे उन 30 लाख अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लोगों में से वापस भेजे गए, जो आज विश्व में सबसे बड़े राज्यविहीन लोग हैं, बेघर लोग हैं। 

5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और पहचान की राजनीति की खातिर अवैध आप्रवासियों का मामला सभी पार्टियों के लिए एक गर्मागर्म मामला बन गया है। भाजपा के अमित शाह ने पहले ही कह दिया है कि प्रत्येक अवैध आप्रवासी का नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा और उनको वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। भाजपा अध्यक्ष ने यह बयान हाल ही में एक बैठक में राजस्थान में दिया। पिछले सितम्बर में 1 लाख 64 हजार से अधिक रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के उत्तरी राखिने प्रांत से भागे और उन्होंने भारत और बंगलादेश में शरण मांगी। आज भारत के जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली, मेवात आदि क्षेत्रों में 40 हजार से अधिक रोहिंग्या रह रहे हैं। 

इस दिशा में मोदी सरकार ने उनकी पहचान करने और उन्हें वापस भेजने के लिए पहला कदम उठाया है। सरकार ने स्पष्ट किया है कि वे हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और उन्हें वापस भेजा जाना चाहिए। हालांकि मानव अधिकार कार्यकत्र्ता तथा संयुक्त राष्ट्र इसकी आलोचना कर रहे हैं और उनका कहना है कि इन लोगों पर विश्व में सर्वाधिक अत्याचार हुए हैं। किंतु सच्चाई यह है कि बंगलादेश के अवैध आप्रवासियों ने पूर्वोत्तर भारत की जनांकिकी को पूरी तरह बदल दिया है और वहां के मूल लोगों की आजीविका और पहचान के लिए संकट पैदा कर दिया है। 

असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के निर्माण से वहां की 3.29 करोड़ जनसंख्या में से 2.89 करोड़ की भारतीय नागरिकों के रूप में पहचान हुई है और 40 लाख लोग अपनी पहचान सिद्ध नहीं कर पाए, इसलिए उनका भविष्य अधर में लटका हुआ है। असम के 27 जिलों में से 9 जिले पहले ही मुस्लिम बहुल बन चुके हैं और राज्य की 126 विधानसभा सीटों में से 60 सीटों पर मुस्लिम जनसंख्या परिणाम प्रभावित करती है। राज्य में अतिक्रमित वन भूमि में से 85 प्रतिशत पर बंगलादेशीयों का कब्जा है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार पिछले 70 वर्षों में असम की जनसंख्या 3.29 मिलियन से बढ़कर 14.6 मिलियन हो गई है अर्थात इसमें 343.77 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जबकि इस अवधि में पूरे देश की जनसंख्या में लगभग 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 

अवैध अप्रवासन के कारण बिहार, बंगाल, पूर्वोत्तर और राजस्थान के अनेक जिले प्रभावित हैं। यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में 10 लाख और महाराष्ट्र में 1 लाख से अधिक अवैध आप्रवासी हैं। मिजोरम में बाहरी लोगों के विरुद्ध आंदोलन का यह मुख्य कारण है। नागालैंड में अवैध बंगलादेशीयों की संख्या पिछले दो दशकों में 20 हजार से बढ़कर 75 हजार तक पहुंच गई है और इनके कारण त्रिपुरा की स्थानीय पहचान पर संकट पैदा हो गया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी अवैध बंगलादेशीयों ने ढीले-ढाले कानूनों का फायदा उठाकर राशन कार्ड प्राप्त कर लिए हैं और आज स्थिति यह है कि कूड़ा बीनने वालों से लेकर घरेलू नौकर, कृषि मजदूर, रिक्शा चालक आदि में अधिकतर अवैध आप्रवासियों का कब्जा है और वे देश के वैध नागरिकों का रोजगार छीन रहे हैं।

समस्या का समाधान क्या है? इसे हम कट्टरवादी मुद्दा मानें या वोट बैंक की राजनीति का या अवैध अप्रवासन की पुश एंड पुल थ्योरी को जारी रहने दें अर्थात गरीबी की ओर धकेलो बनाम भारत की सम्पन्नता की ओर खींचो। विकल्प सीमित हैं और इसका समाधान भारत के राष्ट्रीय हितों, एकता और स्थिरता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। मानव अधिकार कार्यकत्र्ता और विपक्षी पार्टियां प्रयास कर रही हैं कि इस मामले में सरकार मानवीय दृष्टिकोण अपनाए। 

जातिवाद के संबंध में संयुक्त राष्ट्र की विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ऐसे लोगों को वापस भेजकर अंतर्राष्ट्रीय कानूनी दायित्वों के उल्लंघन की ओर बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त के अनुसार विश्व में लगभग 22.5 मिलियन शरणार्थी हैं जिनमें से आधे से अधिक 18 वर्ष से कम आयु के हैं और वे विश्व के विभिन्न भागों में सामान्य जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तथापि सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि रोङ्क्षहग्या शरणार्थी इस क्षेत्र में सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। म्यांमार से लगे चिटगांव क्षेत्र में रोङ्क्षहग्या शरणाॢथयों के शिविर हैं जो इस्लामिक कट्टरवाद का गढ़ है और जहां पर पूर्वोत्तर में अलगाववादी शक्तियों को शरण दी जाती रही है। 

बंगलादेश सरकार इस्लामी संगठनों पर दबाव नहीं बना पा रही है और ये संगठन गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकलापों की आड़ में कई गलत कार्य कर रहे हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के एक सुरक्षा विशेषज्ञ के अनुसार रोङ्क्षहग्या शिविरों में कार्यरत लगभग सभी गैर-सरकारी संगठनों के आतंकवादियों से संबंध हैं और यह सबके लिए बुरी खबर है। बंगलादेश को आशंका है कि चिटगांव में अशांति से उसकी आॢथक प्रगति पर असर पड़ सकता है क्योंकि यह देश का एकमात्र पत्तन है तथा भारत, जापान और चीन से निवेश का एक प्रमुख स्थान है। बंगलादेश और म्यांमार में चीन के प्रभाव को देखते हुए भारत को सजग रहना होगा। 

जहां एक ओर चीन राखिने विवाद में अंतर्राष्ट्रीय ताकतों को दूर रखना चाहता है वहीं दूसरी ओर भारत बंगलादेश और म्यांमार सरकारों से बातचीत के माध्यम से रोङ्क्षहग्या संकट का उचित समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहा है। भारत अपनी एक्ट ईस्ट नीति के अंतर्गत दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाना और इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना चाहता है तथा इसी क्रम में वह म्यांमार की सेना के साथ अच्छे संबंध बना रहा है जिससे वह पूर्वोत्तर क्षेत्र में अतिवादियों के विरुद्ध कार्रवाई कर सके किंतु पूर्वोत्तर के अनेक अतिवादी संगठन म्यांमार के घने जंगलों में अड्डा बनाकर रह रहे हैं। म्यांमार से संबंध सुधारने के लिए भारत राखिने प्रांत के सिटवे में पत्तन और जलमार्ग परियोजना पर कार्य कर रहा है और शीघ्र ही सिटवे व मिजोरम के झिरिनकुई को सड़क मार्ग से जोड़ दिया जाएगा। 

मानव अधिकार कार्यकत्र्ता भी भारत के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं। इससे पूर्व श्रीलंकाई तमिलों, अफगानी, तिब्बती और म्यांमारी शरणार्थियों के मामले में भारत की भूमिका अच्छी रही है इसलिए रोङ्क्षहग्या मुद्दे पर उसकी प्रतिक्रिया से लोग हैरान हैं। उनका कहना है कि भारत के इस कदम से अंतर्राष्ट्रीय जगत में उसकी छवि खराब हो सकती है। व्यावहारिक दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर कड़ी गश्त और सीमा प्रबंधन की आवश्यकता है। पुलिस में स्थानीय लोगों की भर्ती की आवश्यकता है क्योंकि यदि घुसपैठियों को सीमा पर नहीं रोका गया तो फिर उन्हें वापस नहीं भेजा जा सकता। अब यह मुद्दा केवल मानवीय या आर्थिक मुद्दा नहीं रह गया है। इसके हमारी जनांकिकी, आर्थिक स्थिति और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं। रोङ्क्षहग्या घुसपैठियों पर कड़ी नजर रखने के लिए भारत सरकार ने भारत-बंगलादेश सीमा पर 6 हजार से अधिक सैनिक तैनात किए हैं। भारत को इस मामले में उचित दृष्टिकोण अपनाना होगा क्योंकि भविष्य में यह भयावह स्थिति का रूप ले सकता है। 

दक्षिण एशिया की आधी से अधिक जनसंख्या ऐसे क्षेत्रों में रहती है जो 2050 तक जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो सकती है और यदि ऐसा हुआ तो इस क्षेत्र से भारी संख्या में लोग विस्थापित होंगे। अकेले बंगलादेश में पर्यावरण के नुक्सान के कारण 15 मिलियन से अधिक लोग प्रभावित होंगे। म्यांमार से अवैध आप्रवासियों के मामले में इतिहास ने अपना एक चक्र पूरा कर दिया है। राजग सरकार ने अपना पहला कदम उठा दिया है और आवश्यकता इस बात की है कि अवैध आप्रवासियों के मामले में कड़े और समयबद्ध कदम उठाए जाते रहें। हमें इस बात को याद रखना होगा कि इतिहास में आपदाएं सरकार की अकुशलता और राष्ट्रीय हितों के विपरीत नीतियां अपनाने का परिणाम रही हैं।-पूनम आई. कौशिश

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