Edited By ,Updated: 30 Jan, 2017 12:59 AM
हमारे देश के सामने कई चुनौतियां हैं और बेरोजगारी की समस्या सबसे उच्च स्तर पर है। दूसरी ओर संसार में अब काफी आर्थिक उथल-पुथल भी हो रही है और ...
हमारे देश के सामने कई चुनौतियां हैं और बेरोजगारी की समस्या सबसे उच्च स्तर पर है। दूसरी ओर संसार में अब काफी आर्थिक उथल-पुथल भी हो रही है और बहुत से देश इस मुख्य चुनौती का सामना करने के लिए अपनी-अपनी ओर से तैयारी कर रहे हैं। भारत को भी विशेषकर बेरोजगारी के मामले में प्रभावी नीतियां बनानी होंगी। रोजगार के अवसर ज्यादातर छोटी और मध्यम (एम.एस.एम.ई.) इकाइयों द्वारा ही पैदा होते हैं। इस क्षेत्र का हाल यह है कि मानो संसार ने इसको एक तरीके से दरकिनार कर रखा है।
हमारे देश में छोटी और मध्यम इकाइयों (एम.एस.एम.ई.) की परिभाषा इन्वैस्टमैंट लिमिट (निवेश सीमा) के अनुसार निर्धारित की गई है, जबकि संसार के बहुत से उन्नत देशों में यह परिभाषा रोजगार प्रदान करने की संख्या के आधार पर की जाती है। निवेश की सीमा निर्धारित करने के पीछे कारण यह रहा है कि कुछ ज्यादा पूंजी वाले लोग एम.एस.एम.ई. क्षेत्र में प्रवेश करके छोटे उद्योगों को चुनौती न दे पाएं।
इस बात को यकीनी बनाने के लिए दूसरे देशों में जो रोजगार प्रदान करने की संख्या को एम.एस.एम.ई. की परिभाषा का आधार बनाया गया है उसमें निवेश की बजायटर्नओवर (कुल कारोबार) की सीमा निर्धारित की गई है।संसार के 2 बड़े उन्नत क्षेत्रों में जहां रोजगार के आधार पर छोटे उद्योगों के लिए जो परिभाषा बनाई गई है उनमें लगभग सारा यूरोप और दूसरी ओर अमरीकन महाद्वीप के बहुत से देश हैं। यहां तक कि अमरीका का यू.एस.ए. ट्रेड कमीशन भी छोटी इकाइयों के निर्धारण के लिए केवल रोजगार प्रदान करने की संख्या को ही आधार मानता है।
यूरोप में भी वहां के यूरोपियन कमीशन ने छोटी इकाइयों के निर्धारण के लिए 250 कामगारों की संख्या तथा 50 मिलियन यूरो के निवेश की सीमा या फिर इकाई में एसैट (सम्पत्ति) की सीमा 43 मिलियन यूरो निर्धारित की है। जर्मनी जो संसार की मानो एक वर्कशाप है, वहां पर छोटी (एम.एस.एम.ई.) इकाइयों की परिभाषा में टर्नओवर (कुल कारोबार) की सीमा 50 मिलियन यूरो और 500 से कम कामगारों की संख्या निर्धारित है।
अपैक्स चैम्बर की ओर से भारत सरकार को इस संबंध में यह आग्रह किया गया है कि एम.एस.एम.ई. सैक्टर की परिभाषा भी बदली जाए और इस छोटे तथा मझोले क्षेत्र को यथायोग्य सरकार की ओर से सहायता भी प्रदान की जाए। केवल इस क्षेत्र से ही देश में रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं।अमरीका में नए चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां कुछ ऐसी बन रही हैं जो संसार के कई देशों में उथल-पुथल पैदा कर सकती हैं। उनकी नीतियों का मूल मुद्दा यह है कि ज्यादा से ज्यादा अमरीकी कम्पनियां अपना उत्पादन अमरीका में ही करें। पहले अमरीकन कम्पनियां बाहर इसलिए जाती थीं कि वहां श्रम शक्ति आदि उत्पादन के साधन काफी सस्ते पड़ते थे।
इसके लिए डोनाल्ड ट्रम्प ने उनकी सहायता करने का आश्वासन भी दिया है। ट्रम्प यह भी यकीनी बनाना चाहते हैं कि अमरीका में आयात कम से कम हो। इस समय वहां ज्यादा आयात चीन तथा मैक्सिको से हो रहा है। यदि चीन के निर्यात में कटौती होती है तो उसका प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा।एशिया महाद्वीप के 10 देशों का जो ‘आसियान’ नाम का समूह है चीन का उन देशों से बहुत गहरा संबंध है। कई दशकों से उन देशों का आपस में माल का आदान-प्रदान होता आ रहा है। आसियान देशों से अधूरा बना माल चीन को जाता है और चीन उन वस्तुओं को पूरा तैयार करके दूसरे देशों में निर्यात करता है।
एक जनवरी 2010 में भारत और चीन ने आसियान समूह के देशों के साथ मुक्त व्यापार संधि (एफ.टी.ए.) की थी जो अभी भी चल रही है जिस कारण चीन आसियान देशों के रास्ते अपना माल भारत में आयात शुल्क के बगैर भेज सकता है। इस प्रकार चीन के सस्ते माल का ज्यादा प्रभाव भारत पर ही पड़ेगा और उससे भारत का एम.एस.एम.ई. सैक्टर बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
नए अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पहले ही अपने लोगों को यह आश्वासन दे बैठे हैं कि वह नाफटा (एन.एफ.टी.ए.) जैसी मुक्त व्यापार संधियों को रद्द कर देंगे। इन संधियों में कनाडा और मैक्सिको आदि देश आते हैं। ट्रम्प के शपथ लेने से पहले ही अमरीकी कम्पनियों ने अमरीका में अपना निवेश करने की घोषणा करनी शुरू कर दी थी और यह निवेश 12 मिलियन डालर तक पहुंच चुका है। अब बहुत-सी कार बनाने वाली कम्पनियां जिनमें जापान की कम्पनियां भी शामिल हैं वे भी मैक्सिको में अपने निवेश को बंद करके अमरीका में निवेश करने का प्रबंधन कर रही हैं।
संसार के कई जाने-माने अर्थशास्त्री संसार में आॢथक मंदी की बात भी कर रहे हैं क्योंकि संसार की कुल जी.डी.पी. और संसार का व्यापार तेजी से गिर रहा है। 1930 के दशक में संसार की सबसे बड़ी आॢथक मंदी (डिप्रैशन) आई थी और उसमें ज्यादातर अमरीका का ही हाथ था। उस समय अमरीका ने अपनी व्यापारिक नीतियों में भारी परिवर्तन करके अपनी आयात दरें काफी बढ़ा दी थीं जिससे अमरीका में आयात लगभग बंद ही हो गया था। वही हालात आजकल डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां भी बना रही हैं।
भारत सरकार को इन सब चुनौतियों का सामना करने के लिए देश की कुछ नीतियों में यथायोग्य परिवर्तन करके छोटे उद्योगों (एम.एस. एम.ई.) को काफी सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। भारत में हर मास लगभग 10 लाख रोजगार पैदा करने की आवश्यकता है। भारत में इस समय सभी काम करने योग्य व्यक्तियों की संख्या 470 मिलियन है जिनमें से 25 मिलियन से ज्यादा के पास रोजगार उपलब्ध नहीं है।
भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम के अधीन जो स्किल डिवैल्पमैंट का प्रोग्राम है वह काफी सफल चल रहा है और ऐेसे दूसरे नए प्रोग्राम बनाने की भी अत्यंत आवश्यकता है जिससे स्किल डिवैल्पमैंट को बढ़ावा मिल सके और बेरोजगारी की समस्या कम हो सके।