गिलगित-बाल्टिस्तान के मामले में भारत सिर्फ बयानबाजी तक सीमित न रहे

Edited By Pardeep,Updated: 30 May, 2018 04:31 AM

in the case of gilgit baltistan india is not limited to rhetoric

गिलगित -बाल्टिस्तान पर भारत ने हुंकार भरी है और कहा है कि इन क्षेत्रों पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है और उसकी कार्रवाई अवैध है तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून का प्रहसन व उपहास है। उधर पाकिस्तान ने एक नया आदेश जारी किया है जो गिलगित-बाल्टिस्तान की स्थानीय...

गिलगित -बाल्टिस्तान पर भारत ने हुंकार भरी है और कहा है कि इन क्षेत्रों पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है और उसकी कार्रवाई अवैध है तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून का प्रहसन व उपहास है। उधर पाकिस्तान ने एक नया आदेश जारी किया है जो गिलगित-बाल्टिस्तान की स्थानीय परिषद के अधिकारों को सीमित करने वाला है। 

भारत के इस हिस्से पर पाकिस्तान ने 1947 में कब्जा कर लिया था। स्थानीय परिषदों के अधिकार की कटौती से कई समस्याएं खड़ी होने वाली हैं, एक बड़ी समस्या यह होगी कि स्थानीय परिषदें जनभावनाओं को गति देने में नाकाम होंगी और पाकिस्तान के हथकंडे बन कर रह जाएंगी। स्थानीय परिषदें जब कमजोर होंगी तब गिलगित और बाल्टिस्तान की जनता कितनी समस्याग्रस्त होगी? पाकिस्तान के इस आदेश के खिलाफ कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया क्यों नहीं उठी है? अमरीका और यूरोप क्यों खामोश हैं? संयुक्त राष्ट्रसंघ क्यों खामोश है? क्या भारत गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता की जनभावनाओं को संरक्षण दे पाएगा या सिर्फ  बयानबाजी तक ही सीमित रहेगा? 

अंतर्राष्ट्रीय जगत का यह दोहरापन है कि वह कश्मीर पर भारत को खलनायक के तौर पर देखता है और भारत की रक्षा अधिकार की अवहेलना कर आलोचना करता है और पाकिस्तान तथा आतंकवादी संगठनों की अप्रत्यक्ष तौर पर मदद करता है, उसकी हिंसक मानसिकता को शक्ति देता है, पर जब बाल्टिस्तान-गिलगित या गुलाम कश्मीर में पाकिस्तानी सेना, पुलिस के अत्याचार की बात सामने आती है तो वह संरक्षित आतंकवादियों को निशाने पर लेने से बचता है, उसकी जहरीली मानसिकता को जमींदोज करने या फिर नियंत्रित करने से बचता है। 

इस्लाम के आधार पर पाकिस्तान ने मूर्ख बनाया था, ठगा था। इस्लाम के नाम से बनी सहमति अब गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों के लिए काल बन गई है। आजादी के समय गिलगित-बाल्टिस्तान के कुछ लोग पाकिस्तान की बातों में आ गए थे, उसकी अफवाहों के साथ जुड़ गए थे, पाकिस्तान के साथ रहने में अपनी भलाई समझ रहे थे, जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान की अधिकतर जनता पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार की सहमति बनाने के खिलाफ थी। वह जानती थी कि पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार की सहमति उनके भविष्य पर वज्रपात करेगी, आने वाली पीढिय़ां बर्बाद रहेंगी, पर उस समय पाकिस्तान परस्तों की हिंसा के सामने पाकिस्तान विरोधी लोगों ने हथियार डाल दिए थे। 

नेहरू ने भी बुजदिली दिखाई थी। पाकिस्तानी सेना जो घुसपैठियों के वेश में कश्मीर के आसपास पहुंच गई थी उसे भारतीय सेना ने काफी दूर तक धकेल दिया था। सेना गुलाम कश्मीर को मुक्त कराने के लिए भी तैयार बैठी हुई थी। सरदार पटेल कश्मीर के साथ ही साथ गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त कराना चाहते थे, पर नेहरू ने भारतीय सेना और सरदार पटेल के हाथ बांध दिए थे। नेहरू पाकिस्तानी सेना के आक्रमण और कश्मीर, गिलगित और बाल्टिस्तान पर कब्जे को संयुक्त राष्ट्रसंघ में लेकर गए थे। इस मामले में संयुक्त राष्ट्रसंघ में कैसा हश्र हुआ है, यह कौन नहीं जानता। अगर उस समय गुलाम कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान वापस ले लिए होते तो आज हम कश्मीर में आतंकवाद नहीं झेल रहे होते। 

गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान परस्ती के खिलाफ आवाज भी उठ रही है, प्रदर्शन भी हो रहे हैं। पाकिस्तान का अमानवीय चेहरा भी सामने आ रहा है कि उसने किस तरह यहां आम जीवन को नर्क में बदल दिया है। खनिज सम्पदाओं और जल सम्पदाओं के भंडार से क्या गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता का जीवन सुन्दर होता है, उन्हें रोजगार मिलता है? इसका उत्तर नहीं है। सर्वाधिक लाभ पाकिस्तान हड़प लेता है, गिलगित-बाल्टिस्तान को बिजली तक नहीं मिलती है। जब बिजली नहीं होगी तो उद्योग-धंधे कहां से पनपेंगे। जब उद्योग-धंधों का विस्तार नहीं होगा तब बेरोजगारी कैसे दूर होगी?

जब पाकिस्तान खुद गिलगित-बाल्टिस्तान को विवादित क्षेत्र मानता है और संयुक्त राष्ट्रसंघ में इस निमित्त हमेशा अभियानरत रहता है और अभी जम्मू-कश्मीर का प्रसंग संयुक्त राष्ट्रसंघ में लंबित पड़ा हुआ है, फिर गिलगित-बाल्टिस्तान को पाकिस्तान अपना पांचवां राज्य कैसे बना सकता है? क्या वहां के लोग उसे पांचवां राज्य बनने की सहमति शामिल हैं? बल्कि सच्चाई यह है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग अब पाकिस्तान से आजादी मांग रहे हैं। पाकिस्तान की सेना और पुलिस ने देश-विरोधी आवाज दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया है। पाकिस्तान का विरोध करने पर गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग आज पाकिस्तान की जेलों में सड़ रहे हैं। उनके मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है। 

भारत सरकार ने जो हुंकार भरी है, वह समय की मांग है, पाकिस्तान को आईना दिखाने वाली है। भारत को सिर्फ बयानबाजी तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, उसको यह कोशिश करनी चाहिए कि गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान ने मानवाधिकार की जो कब्र खोद रखी है उसकी जानकारी पूरी दुनिया को होनी चाहिए ताकि पाकिस्तान गिलगित-बाल्टिस्तान को अपना पांचवां प्रदेश न बना सके। गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता की आवाज को किसी भी स्थिति में संरक्षित किया जाना चाहिए।-विष्णु गुप्त

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