‘महामारी का बढ़ता आकार, गलत तो नहीं हो रहा उपचार’

Edited By ,Updated: 19 Sep, 2020 02:42 AM

increasing size of epidemic wrong treatment not being done

क्या कारण है कि महामारी जो दुनिया भर में फैली, अब कुछ देशों तक आकर सिमट गई है, जिनमें अमेरिका पहले और भारत दूसरे नंबर पर है?  कहीं ऐसा तो नहीं होने वाला कि जिस तेजी से  हमारे देश में इसका आकार बढ़ रहा है, हम जल्दी ही अमेरिका को भी पीछे छोड़कर पहले..

क्या कारण है कि महामारी जो दुनिया भर में फैली, अब कुछ देशों तक आकर सिमट गई है, जिनमें अमेरिका पहले और भारत दूसरे नंबर पर है?  कहीं ऐसा तो नहीं होने वाला कि जिस तेजी से  हमारे देश में इसका आकार बढ़ रहा है, हम जल्दी ही अमेरिका को भी पीछे छोड़कर पहले नंबर पर आ जाएंगे और उसके बाद न जाने कहां जाकर यह संख्या रुकेगी, मतलब करोड़ों तक पहुंचने वाली है?

गलती तो जरूर हुई है!
यह आलोचना नहीं, तथ्यों पर आधारित सच्चाई है कि हमसे आकार में छोटे और उसके अनुपात में आबादी में लगभग हमारे ही बराबर देशों में इस बीमारी ने पैर पसारने से तौबा कर ली है और यह भी सच है कि इन देशों में से अधिकतर की आॢथक स्थिति भी हमारे जैसी ही है।अपने आसपास के देशों चाहे पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्री लंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार या फिर थाईलैंड, इंडोनेशिया जैसे देश हों, सब के यहां यह महामारी थम रही है, मृत्यु दर भी घट रही है। हमारे यहां प्रतिदिन एक लाख नए मामले आने की संख्या को हम जल्दी ही पार कर जाएंगे और फिर कहां रुकेंगे, कहा नहीं जा सकता। ज्यादातर देशों में एक से 10 लाख तक संक्रमित हुए हैं और बहुत से देशों में तो यह संख्या कुछ हजार तक सिमट गई है। 

जहां तक रोकथाम का प्रश्न है, सरकार ने सब तरफ से इस बीमारी की नाकाबंदी की जैसे कि बहुत ही ज्यादा सख्त तालाबंदी, घरों से निकलने पर रोक,  दुकान, बाजार, दफ्तर सब बंद और एक तरह से सभी आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक गतिविधियों पर अंतहीन रोक और इस सब के बावजूद बीमारी की रोकथाम तो दूर, इसके कम होने के कोई आसार नजर नहीं आते, रोजाना बढ़ते आंकड़े सुनकर भय का वातावरण अब आक्रोश और क्रोध में बदल रहा है। आखिर यह सब कब तक चलेगा? 

सरकार की उदासीनता
हमारे मंत्री, सांसद इस विषय पर कितने गंभीर हैं, इसका एक उदाहरण वर्तमान संसद सत्र में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के यह कहने से ही पता चल जाता है जिसमें वह यह कहते हैं कि हम जल्दी ही टेस्टिंग में अमेरिका को भी पीछे छोड़ देंगे। यह कोई खुश होने की बात नहीं है, क्या इसका यह मतलब नहीं है कि संक्रमितों की संख्या में भी हम अमरीका से आगे निकलने वाले हैं!

स्वास्थ्य मंत्री संसद में इस बीमारी को लेकर जब लंबा चौड़ा बयान रखते हैं तो स्वयं अध्यक्ष को यह कहना पड़ता है कि आप बताने में समय बर्बाद न करें, बयान की कॉपी दे दीजिए, सांसद पढ़ लेंगे, फिर भी वे नहीं समझते कि उनकी बयानबाजी में कोई नई बात यानी दम नहीं है, पर वे पूरा बयान सुनाकर ही दम लेते हैं। यह काम जनता का नहीं है कि वह बीमारी को बढऩे से रोकने के उपाय बताए, यह काम सरकार का है, जनता तो केवल उसके बनाए नियमों का पालन कर सकती है और हकीकत तो यह है कि वह अपनी जान बचाने के लिए स्वयं ही मारी मारी फिर रही है। 

यह सही है कि हमारे पास इस बीमारी से निपटने की कोई तैयारी नहीं थी, लेकिन क्या दूसरे देशों के पास थी, वे भी हमारी तरह पहली बार इससे दो-दो हाथ कर रहे थे, तो फिर कैसे हमारे देश से कम साधनों वाले देशों ने इस पर काबू पाने में सफलता हासिल की, यह सोचने का काम केंद्र और राज्य सरकारों का है? 

सेवा सप्ताह या नई चाल
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन को सेवा सप्ताह के रूप में मनाने की शुरूआत क्या उस परंपरा की आेर बढऩे जैसा नहीं है जैसा कि पिछली सरकारों के प्रधानमंत्रियों के साथ उनके दल के लोग किया करते थे। हालांकि सच यह भी है कि वह सब तत्कालीन प्रधानमंत्री की सहमति से ही होता था। मोदी जी की छवि पिछले प्रधानमंत्री चाहे अटल बिहारी वाजपेयी जी क्यों न हों, सबसे अलग है। यह जानकर आश्चर्य के साथ- साथ दु:ख भी होता है कि आखिर उन्होंने अपने नाम पर और वह भी जन्मदिन को लेकर सेवा सप्ताह के मुखौटे में बेमतलब के आयोजनों के लिए अपनी सहमति कैसे दे दी।-पूरन चंद सरीन
 

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