अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में ‘भारत’

Edited By ,Updated: 04 Sep, 2020 02:22 AM

india  in us presidential election

अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव लगभग दो माह दूर है। 3 नवम्बर को मतदान के साथ चुनावी प्रक्रिया प्रारंभ होगी और 5 जनवरी 2021 तक परिणाम घोषित होने की संभावना है। मेरे 50 वर्ष के राजनीतिक जीवन में अमरीका का यह ऐसा पहला चुनाव है, जिसमें भारत मुखर रूप से...

अमरीकी राष्ट्रपति का चुनाव लगभग दो माह दूर है। 3 नवम्बर को मतदान के साथ चुनावी प्रक्रिया प्रारंभ होगी और 5 जनवरी 2021 तक परिणाम घोषित होने की संभावना है। मेरे 50 वर्ष के राजनीतिक जीवन में अमरीका का यह ऐसा पहला चुनाव है, जिसमें भारत मुखर रूप से केंद्र बिंदू में है। वहां भारतीय मूल के अमरीकी नागरिकों की संख्या 40 लाख से अधिक है, जिसमें से 44 प्रतिशत, अर्थात् लगभग 18 लाख लोग वोट देने का अधिकार रखते हैं। 

अमरीका में ‘भारतीयों’ को रिझाने की होड़ चरम पर है। जहां एक ओर डैमोक्रेटिक पार्टी ने अपने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी जोसेफ (जो) बाइडेन की रनिंग मेट के रूप में कमला हैरिस को चुनते हुए भारत से सुदृढ़ संबंध सहित अमरीकी भारतीयों के उत्थान हेतु अलग नीति बनाने पर बल दिया है, वहीं वर्तमान राष्ट्रपति और रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने कमला से भी ज्यादा भारतीय समर्थन होने का दावा किया है। साथ ही उन्होंने पूर्व राजदूत निक्की हैली को अपना स्टार प्रचारक भी बना दिया है। स्पष्ट है कि ‘भारत’ के प्रति अमरीकी राजनीतिक-अधिष्ठान के झुकाव का कारण पिछले 6 वर्षों में भारतीय नेतृत्व की वे नीतियां रही हैं जिन्होंने उसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि को पहले से कहीं अधिक सशक्त और सामरिक, आर्थिक व आध्यात्मिक रूप से वैश्विक शक्ति बनने के मार्ग पर प्रशस्त किया है। 

अब निक्की और कमला में से कौन अधिक ‘भारतीय’ है, इसकी चर्चा अमरीकी भारतीय खुलकर कर रहे हैं। 20 जनवरी 1972 को साऊथ कैरोलिना में जन्मीं निक्की हैली का मूल नाम नम्रता रंधावा है। उनके पिता अजीत सिंह रंधावा और माता राज कौर रंधावा पंजाब के अमृतसर से यहां आए थे। 1996 में निक्की ने माइकल हैली से विवाह किया, जो आर्मी नैशनल गार्ड में कैप्टन हैं। राजनीति में 2004 से औपचारिक प्रवेश के बाद वह गवर्नर पद तक पहुंचीं और 2016 में राष्ट्रपति ट्रम्प ने उन्हें संयुक्त राष्ट्र में अमरीकी राजदूत बनाया। किंतु दो वर्ष पश्चात ट्रम्प के साथ कुछ मतभेदों के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। 

वहीं कमला हैरिस की भारतीय जड़ें उनके ननिहाल से मिलती हैं। उनके नाना पी.वी. गोपालन चेन्नई के ब्राह्मण परिवार से थे। गोपालन की बड़ी बेटी श्यामला ने 1958 में आगे की पढ़ाई हेतु अमरीका का रुख किया, जहां उन्होंने अपने कॉलेज के सहपाठी और अफ्रीकी ईसाई डोनाल्ड हैरिस से शादी कर ली। इस अल्पायु विवाह में 20 अक्तूबर 1964 को कमला, तो इसके 3 वर्ष बाद माया का जन्म हुआ। 

आज कमला चुनावी प्रचार में भले ही स्वयं को भारतीय मूल्यों और परंपराओं से जोडऩे के लिए दक्षिण भारतीय व्यंजन ‘इडली’, भारत भ्रमण, गांधी जी के विचारों और अपनी मां से मिले संस्कारों की बात कर रही हैं, किंतु उन्होंने सदैव ही अपनी अमरीकी-अफ्रीकी पहचान को वरीयता दी है। अमरीकी जनगणना में कमला द्वारा अपनी पहचान ‘अमरीकी-अफ्रीकी’ के रूप में दर्ज कराना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। ट्रम्प प्रशासन की तुलना में बाइडेन-हैरिस गुट के कश्मीर, नागरिकता संशोधन कानून और एन.आर.सी. जैसे आंतरिक मामलों पर भारतीय हितों के प्रतिकूल विचार रहे हैं। इसी कारण भारत में रहने वालों का एक समूह (जिहादी सहित), जो स्वयं को वाम-उदारवादी कहना अधिक पसंद करता है, वह न केवल आगामी चुनाव में ट्रम्प की प्रचंड पराजय की कामना कर रहा है, साथ ही बाइडेन-हैरिस से प्रार्थना कर रहा है कि वे सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर कड़े प्रतिबंध लगा दें। 

अब भारतीय समाज की  इस जमात की ऐसी मनोदशा क्यों है, इसका उत्तर खोजना कठिन नहीं है। हाल ही में कांग्रेस नीत यू.पी.ए. काल में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) और भारतीय विदेश सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे शिवशंकर मेनन ने अमरीकी पत्रिका ‘फॉरेन अफेयर्स’ के लिए ‘लीग ऑफ नैशनलिस्ट’  नाम का आलेख लिखा। भारतीय विदेश सेवा अधिकारी के रूप में मेनन का विचार भारत की अब तक रही विदेश-नीति का उल्लेख करने हेतु पर्याप्त है। वह उस आलेख में एक स्थान पर लिखते हैं, ‘‘मोदी के नेतृत्व में, भारत ने प्रवासियों को नागरिकता देने के मार्ग से मुसलमानों को बाहर और मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में स्वायत्तता को सीमित कर दिया है। मानवाधिकार और लोकतंत्र में कम दिलचस्पी रखने वाले अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने मोदी सरकार को अपने विवादास्पद घरेलू एजैंडे लागू करने का मुफ्त पास दे दिया है।’’ 

क्या यह सत्य नहीं कि राम मंदिर सहित अस्थायी अनुच्छेद 370-धारा 35-ए का क्षरण, नागरिकता कानून में संशोधन सत्तारुढ़ भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा हैं और इसमें किए वायदों को पूरा करने के लिए देश की जनता ने भारी बहुमत देकर नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन पर विश्वास जताया है? शिवशंकर मेनन जैसे विचारक संभवत: यह मानते हैं कि भारत सरकार की नीतियां जनादेश के आधार पर तय न होकर अमरीकी  राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित होती हैं। 

ट्रम्प के अमरीकी राष्ट्रपति बनने से भारत-अमरीका के संबंध पहले से कहीं अधिक प्रगाढ़ हुए हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा-खुफिया सहयोग (समुद्री-सुरक्षा सहित) नई ऊंचाई पर है। अमरीका ने भारत को अपना सबसे बड़ा व्यापारिक सांझेदार बनाया है। चीन की साम्राज्यवादी नीतियों से मुकाबला करने के लिए भारत, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और जापान एक-साथ आए हैं। इन सबसे, विशेषकर भारत के बढ़ते वैश्विक कद से बौखलाया चीन, भारत में अपने समान वैचारिक सहयोगियों की भांति अमरीका में ट्रम्प की पराजय और ‘उदारवादी-समाजवादी’ बाइडेन-हैरिस की विजय चाहता है। 

सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का अमरीका से घनिष्ठ संबंध विशुद्ध भारतीय हितों और संप्रभुता को सुरक्षित करने पर आधारित है। क्या यह सत्य नहीं कि विश्व के इस भूखंड पर पाकिस्तान और चीन जैसे शत्रु राष्ट्र भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और आत्मसम्मान को दशकों से चुनौती दे रहे हैं? आज केवल भारत ही नहीं, ट्रम्प के नेतृत्व में अमरीका से ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोल्सनारो, इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान या फिर संयुक्त अरब अमीरात के शेख मोहम्मद बिन जायद की निकटता भी इसी आधार पर केंद्रित है। ये सभी देश अपने-अपने राष्ट्रहितों की रक्षा हेतु अमरीका के सहयोगी बने हुए हैं। इस पृष्ठभूमि में आगामी अमरीकी चुनाव किस ओर करवट लेगा, इसका उत्तर भविष्य के गर्र्भ में छिपा है।-बलबीर पुंज
 

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