Edited By ,Updated: 23 Sep, 2019 03:28 AM
भारत कैसे उच्च विकास दर हासिल कर उसे बरकरार रख सकता है? उच्च विकास दर का मतलब है 8 प्रतिशत प्रति वर्ष या इससे अधिक विकास दर। यह क्यों जरूरी है? ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है। इस लक्ष्य तक पहुंचने के...
भारत कैसे उच्च विकास दर हासिल कर उसे बरकरार रख सकता है? उच्च विकास दर का मतलब है 8 प्रतिशत प्रति वर्ष या इससे अधिक विकास दर। यह क्यों जरूरी है? ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहता है। इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें 9 प्रतिशत की दर से विकास करना होगा। वर्तमान में पिछली तिमाही के आंकड़ों के अनुसार यह विकास दर 5 प्रतिशत है। ऐसे में क्या 9 प्रतिशत की विकास दर हासिल करना संभव है? इसका उत्तर हां में है और अन्य देशों ने यह करके दिखाया है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री इसे संभव मानते हैं। कुछ वर्ष पहले जब मैंने मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते उनका इंटरव्यू किया था तो उन्होंने यह इच्छा जताई थी कि वह गुजरात को 15 प्रतिशत की विकास दर हासिल करते देखना चाहते हैं ताकि देश 10 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ सके। इससे स्पष्ट है कि मोदी के पास एक लक्ष्य है और वर्तमान समय में कम से कम 3 देशों ने यह संभव करके दिखाया है।
10 प्रतिशत का लक्ष्य हासिल करने वाले देश
इस लक्ष्य को हासिल करने वाला पहले देश है सोवियत संघ। दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस बहुत गरीब देश था।1950 से 1970 के बीच सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था थी और यह 10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से चल रही थी। यह इस तथ्य के बावजूद संभव हुआ कि वहां पर पूंजीवाद नहीं था और आर्थिक विकास केवल देश की सरकार के माध्यम से हो रहा था। सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ऐसा रूस सामने आया जो पश्चिम के पैमानों के अनुसार गरीब था लेकिन इसके बावजूद दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले काफी धनी था।
लगातार उच्च विकास दर हासिल करने वाला दूसरा देश है चीन। चीन ने 1990 के दशक की शुरूआत में 10 प्रतिशत की दर से आॢथक विकास हासिल करना शुरू किया और यह अगले कई सालों तक चलता रहा। 1965 और 1975 के बीच अमरीका ने भी औसतन 10 प्रतिशत या अधिक दर से वृद्धि दर्ज की। इससे स्पष्ट है कि यह लक्ष्य हासिल करना संभव है।
अगली बात यह है कि हमें वहां पहुंचने से कौन-सी चीज रोक रही है। यहां हम दो मुख्य पहलुओं पर नजर डाल सकते हैं जो अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाते हैं। पहला है सरकार अर्थात सरकार की शक्ति और मशीनरी जोकि नीतियों के माध्यम से आर्थिक विकास की दर बढ़ा सके। इस तरह की कार्रवाई का एक नमूना हमने हाल ही में देखा है, और वह है करों में कटौती। मोदी सरकार के इस कदम का शेयर मार्कीट पर काफी अच्छा प्रभाव पड़ा। हालांकि यह देखा जाना अभी बाकी है कि आने वाले दिनों में यह उत्साह कब तक कायम रहता है? सरकार इस मामले में सक्षम होती है और वह ऐसी नीतियां लागू कर सकती है जो विकास को बढ़ाती है। लेकिन ऐसा तभी संभव हो पाता है यदि कोई देश ऐसा करने में दक्ष हो।
भारत में एक समस्या यह है कि अन्य देशों के मुकाबले यह कम शासन करने योग्य है। सरकार कानून बनाती है लेकिन उसे पूरी तरह से लागू नहीं कर पाती। इसका एक मुख्य कारण आयकर है। अन्य मध्यम आय वाले देशों के मुकाबले भारत में कानून लागू होने की दर बहुत कम है। इसका मूलभूत कारण नागरिकों से कर उगाही में असफल रहना है। जब हम गुड गवर्नैंस की बात करते हैं तो उसका मतलब यही होता है। अर्थव्यवस्था के विकास में दूसरा मुख्य कारण है टैलेंट। अर्थव्यवस्था ऐसी स्थिति में काफी तरक्की कर सकती है यदि भारत के लोग पैसे की ज्यादा बचत करें और उसका निवेश करें और फिर कई लोग तथा निगम ऐसे हैं जो उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं। इस मामले में आंकड़ों की कमी है लेकिन यहां पर मुख्य बाधा मध्यम वर्गीय रूढि़वादिता की है।
भारत के मध्यम वर्ग
भारत के मध्यम वर्ग का अपना एक विशेष रास्ता है जिसे वह जीवन के उद्देश्य और महत्वाकांक्षा के तौर पर देखता है। इस रास्ते की एक रीढ़ है और वह स्थायी, व्हाइट कॉलर जॉब है, चाहे यह कार्पोरेट सैक्टर में हो अथवा सरकारी क्षेत्र में बड़े पद (भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा)। यदि प्रोफैशनल दृष्टिकोण से देखें तो मैडीसिन और इंजीनियरिंग पर जोर दिया जाता है लेकिन ज्यादा ध्यान नौकरी में बने रहने पर दिया जाता है। हमें इसके विभिन्न कारणों की जांच करनी होगी और यह भी देखना होगा कि क्या इसमें बदलाव आ रहा है अथवा यह पहले जैसा है।
यह काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ऐसा न होने पर जी.डी.पी. विकास दर की सारी जिम्मेदारी और सारा इल्जाम वर्तमान सरकार के ऊपर आ जाएगा जोकि उचित नहीं है। मेरे ख्याल में रुढि़वादिता का एक मुख्य कारण जाति है। यदि भारत में हम निजी क्षेत्र के 100 सबसे निगमों तथा नए युग की सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियों पर नजर डालें तो उनका स्वामित्व 2 या 3 छोटे-छोटे समुदायों के पास है, अर्थात अग्रवाल और गुजराती बनिए। अन्य सभी बातें समान होने पर ये लोग अन्य लोगों के मुकाबले पूंजी इक_ी करने और उसके प्रबंधन में ज्यादा निपुण होते हैं। इसीलिए मैं सोचता हूं कि सांस्कृतिक रुढि़वादिता इसमें शामिल है और वे लोग पैसे के मामले में जोखिम लेने के लिए तैयार रहते हैं तथा यह केवल टैलेंट का मामला नहीं है।
इस तरह की बाधा चीन में नहीं है। चीन में अधिकतर लोग हान समुदाय के हैं और यही हान चीनी व्यक्ति चीन अथवा हांगकांग अथवा सिंगापुर और मलेशिया तथा ताईवान व अन्य जगहों पर पाए जाते हैं। इस तरह से उनके पास उद्यमशील टैलेंट की भरमार है जबकि हमारे यहां इसमें कुछ बाधाएं नजर आती है। यह काफी रोचक होगा यदि इस बात का विश्लेषण किया जाए कि किसी देश की विकास दर को तेज करने के लिए कौन-कौन से कारक जिम्मेदार होते हैं और सरकार तथा इसकी नीतियों के अलावा इसमें किन बातों की भूमिका रहती है।-आकार पटेल