‘नारी सशक्तिकरण’ के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे

Edited By ,Updated: 30 Jan, 2019 03:32 AM

india is still very much behind the  women empowerment

मैं ‘सशक्तिकरण’ शब्द से बहुत प्रेम करती हूं, महिलाओं का सशक्तिकरण। यह कई वर्षों से भारत में चल रहा है। भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण करने की जरूरत है। यदि आप महिलाओं के दर्जे की बात करें तो राजनीति अथवा सामाजिक मुद्दों में वे शीर्ष पर हैं। प्रतिभा...

मैं ‘सशक्तिकरण’ शब्द से बहुत प्रेम करती हूं, महिलाओं का सशक्तिकरण। यह कई वर्षों से भारत में चल रहा है। भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण करने की जरूरत है। यदि आप महिलाओं के दर्जे की बात करें तो राजनीति अथवा सामाजिक मुद्दों में वे शीर्ष पर हैं। प्रतिभा पाटिल भारत की राष्ट्रपति थीं, जबकि सोनिया गांधी सत्ताधारी यू.पी.ए. की चेयरपर्सन थीं, जहां मीरा कुमार स्पीकर तथा कुछ अन्य महिलाएं मंत्री थीं। निश्चित तौर पर अब प्रियंका गांधी मैदान में हैं। 

अब भाजपा के शासनकाल में रक्षा मंत्री एक महिला है तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी हैं। बैंकों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों जैसे कई संस्थान हैं जिनकी अध्यक्ष महिलाएं हैं। क्या यह महिला सशक्तिकरण है? महिला सशक्तिकरण क्या है? मेरे लिए महिला सशक्तिकरण का अर्थ यह है कि महिलाएं वित्तीय रूप से स्वतंत्र हों, सुशिक्षित, विश्वासपूर्ण तथा इसके साथ ही ऐसी जो एक महिला के तौर पर अपने घर को भी कुशलतापूर्वक सम्भाल सकें। कोई संदेह नहीं कि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले कहीं अधिक समझदार, व्यावहारिक ज्ञान वाली तथा बेहतर प्रबंधक हैं। वे कई तरह के काम कर सकती हैं और बिना त्यौरियां चढ़ाए। 

मैं कई वर्षों से राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण की बात सुन रही हूं। प्रत्येक राजनीतिक दल दशकों से महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कर रहा है। तब से कई चुनाव हो चुके हैं लेकिन हमारी विधानसभाओं अथवा संसद में 5 प्रतिशत से अधिक महिलाएं नहीं रहीं। इसका क्या कारण है? कारण यह है कि पुरुष अभी भी खुद को असुरक्षित मानते हैं और नहीं सोचते कि महिलाएं शीर्ष तक पहुंचने की हकदार हैं। हमारे पास ममता बनर्जी हैं, मायावती हैं, जयललिता थीं, बस इतना ही। ये शानदार महिलाएं हैं, आप कह सकते हैं कि इन पर कोई पारिवारिक बोझ नहीं है, वे उससे काफी आगे निकल आई हैं। पारिवारिक महिलाएं सबसे पहले घर की प्रबंधक होती हैं। एक औसत भारतीय महिला को परिवार के समर्थन तथा प्रोत्साहन की जरूरत होती है। 

जन्म से ही श्रेष्ठ महसूस करवाएं
मेरे लिए महिलाओं के सशक्तिकरण का अर्थ है कि जब से वे जन्म लेती हैं तभी से आप उन्हें श्रेष्ठ महसूस करवाएं, आप उन्हें विश्वास दें, अपने परिवार के पुरुषों के मुकाबले उन्हें नम्बर दो न बनाएं। अपनी बेटियों के मुकाबले अपने बेटों को अधिक प्राथमिकता न दें। दरअसल इसके उलट होना चाहिए। ये बेटियां ही हैं जो हमेशा आपकी देखभाल करेंगी। एक बेटा तब तक बेटा है जब तक उसकी पत्नी नहीं आ जाती, बेटी आपका जीवन समाप्त होने तक बेटी रहेगी। 

क्यों नहीं प्रत्येक राजनीतिक दल महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देकर देखे कि क्या होता है। महिलाओं को गांवों, विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, स्कूल अध्यापिकाओं से लेकर डाक्टरों, गृहिणियों तथा सामाजिक कार्यकत्रियों में से चुनें। हम क्यों प्रयोग नहीं करते? पंजाब, हरियाणा, हिमाचल अथवा दिल्ली की सरकारों में कितनी महिलाएं हैं? कोई नहीं। शायद ही कोई हो। प्रधान स्तर तक शायद ही कोई हो। कश्मीर में महबूबा मुफ्ती हैं, जिन्हें लगभग हर रोज उनके बड़े भाई गठबंधन सहयोगी द्वारा तंग किया जाता था। 

‘मी टू’ आंदोलन का क्या हुआ
भारत में ‘मी टू’ आंदोलन चला था जिस पर हर किसी को बहुत गर्व था, क्या हुआ? वह क्यों गायब हो गया? किस महिला के पास अदालती मामलों से निपटने के लिए हिम्मत तथा वित्तीय साधन हैं? वह कैसे सिद्ध करेगी कि उसके साथ बलात्कार हुआ है या उसके पुरुष सहयोगियों अथवा बॉसिज या फिर घर में ही किसी ने उसके साथ शर्मनाक हरकत की है? हमारी कितनी मध्यमवर्गीय महिलाएं कह सकेंगी कि उनके परिवार में व्यभिचारी है? यह बहुत सामान्य है। बलात्कार के कितने ही मामले दर्ज नहीं होते क्योंकि आम तौर पर वे आपके नजदीकियों में से होते हैं। 

सशक्तिकरण का अर्थ मेरे लिए यह है कि एक महिला में अत्यंत आत्मविश्वास। विश्वास निर्माण स्कूलों, संस्थानों, परिवारों तथा सबसे महत्वपूर्ण आपके अभिभावकों तथा आपके परिवार के पुरुषों से आता है। पुलिस तथा अदालतों को महिलाओं को रिपोर्ट्स लिखवाने के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है, न कि उन्हें शॄमदा करने की। ‘मी टू’ आंदोलन इसलिए भी असफल हो गया क्योंकि कुछ महिलाओं ने इसका इस्तेमाल अपनी पुरानी निजी रंजिशें निकालने के लिए किया। 

प्रियंका गांधी कहती हैं कि उनका भाई विश्वासपूर्ण है। उन्हें पार्टी में लाने के लिए राहुल कितने परिपक्व तथा विश्वासपूर्ण हैं? वह उनसे डर महसूस नहीं करते। वह उन पर विश्वास करते हैं, हमारे बहुत से परिवारों में भाई अपनी बहन से असुरक्षित महसूस करता है। वह भीतर से जानते हैं कि बहन के इरादे स्पष्ट हैं, लोगों को इस्तेमाल करने में उसकी समझ तथा अध्ययन अधिक सटीक होता है। इसलिए उनमें पीछे छोड़ दिए जाने की असुरक्षा होती है। एक पुरुष के दिमाग में महिला हमेशा एक बेचारी होती है। जहां तक उनके अहं का प्रश्र है, वे नाजुक भी होती हैं। 

प्रोत्साहन की जरूरत
हमारी अग्रणी महिलाओं द्वारा उन्हें प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। बहुत-सी महिलाएं एक-दूसरे को नीचा दिखाने में भी बहुत व्यस्त हैं। यहां सबके लिए जगह है। स्कूलों में नर्सरी से ही यह सिखाए जाने की जरूरत है कि रसोई घर या घर केवल महिलाओं के लिए नहीं है, पुरुषों को भी इसमें योगदान देना चाहिए। प्रियंका गांधी एक अच्छी बेटी, बहन, पत्नी तथा मां का एक उदाहरण हैं। वह आक्रामक हैं और किसी भी चीज अथवा व्यक्ति से नहीं डरतीं। 

स्मृति ईरानी, निर्मला सीतारमण, मेनका गांधी भी मजबूत महिलाएं हैं, निडर। कुछ भाग्यशाली हैं कि उन्हें अवसर मिला, जबकि कुछ को नहीं। यह किसी दल के नेता की जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं को खुद को साबित करने का अवसर दे। वे पुरुष प्रभुत्व वाली राजनीति से स्वतंत्र हों। आशा है कि प्रियंका अब कई अन्य के लिए मार्ग प्रशस्त करेंगी। और अधिक राजनीतिक दलों को बेटियों को अपनी उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने की जरूरत है, बजाय स्वचलित रूप से लड़कों को।

भारतीय व्यवस्था तथा समाज में बदलाव की जरूरत है। मैं यह नहीं कह रही कि वे उस स्थिति से आगे नहीं बढ़ीं जैसी कि वे दो दशक पहले थीं लेकिन हां, सरकार को पहल करने की जरूरत है। राजनीतिक दलों को स्वच्छ चेहरे चुनने तथा उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित करने की जरूरत है। विश्वास करिए, यदि विधानसभा में 25 प्रतिशत भी महिलाएं हों तो राज्य की छवि बदल जाएगी। मगर हां, शीर्ष तक पहुंचना महिलाओं के लिए एक गंदा खेल होगा।-देवी चेरियन

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