बच्चों के बुनियादी टीकाकरण में पिछड़ा भारत

Edited By ,Updated: 25 Jul, 2021 05:29 AM

india lags behind in basic immunization of children

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि डी.पी.टी. टीके से वंचित बच्चों को भविष्य में किन खतरों का सामना करना पड़ सकता है। बहरहाल, सभी देशों का जोर फिलहाल कोरोना महामारी से बचाव के लिए टीकाकरण

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि डी.पी.टी. टीके से वंचित बच्चों को भविष्य में किन खतरों का सामना करना पड़ सकता है। बहरहाल, सभी देशों का जोर फिलहाल कोरोना महामारी से बचाव के लिए टीकाकरण पर है। ऐसे में बच्चों के लिए दूसरे जरूरी टीकों का अभियान बुरी तरह से प्रभावित होना ही था। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि महामारी से पहले विश्व में डी.पी.टी., खसरा और पोलियो के टीकाकरण की दर 86 प्रतिशत थी, जबकि मानक 95 प्रतिशत का है। जाहिर है, टीकाकरण का यह अभियान पहले भी तेज नहीं था और फिर कोरोना में तो एकदम थम ही गया। 

चिन्ता की बात है कि दुनिया में 2019 में 35 लाख बच्चों को डी.पी.टी. टीके की पहली खुराक भी नहीं लगी थी। लगभग 30 लाख बच्चे खसरे के टीके की पहली खुराक से वंचित रह गए। जिन देशों में बच्चों को ऐसी स्थिति भुगतनी पड़ी, उनमें भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस और मैक्सिको भी हैं। मगर भारत उनमें सबसे आगे है, जिसकी आबादी और बच्चों की सं या अन्य के मुकाबले अधिक है, इसलिए भारत की चुनौती भी बड़ी है। 

रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2019 की तुलना में 2020 में पहली बार डी.पी.टी.-1 की खुराक नहीं ले पाने वाले बच्चों की सं या में अधिक वृद्धि देखने को मिली। आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 में 14,03,000 की तुलना में 2020 में भारत में 30,38,000 बच्चों को डी.पी.टी. की पहली खुराक नहीं मिल सकी। संयुक्त राष्ट्र के ताजा आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल डिप्थीरिया, टैटनस और काली खांसी जैसे संक्रमणों के विरुद्ध लगभग 2.3 करोड़ बच्चे नियमित टीकाकरण से चूक गए। 

पिछले ही दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि लाखों की सं या में भारतीय बच्चे कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुए व्यवधानों के चलते अपने नियमित टीकाकरण से चूक गए हैं, जिससे भविष्य में बीमारी का प्रकोप और मृत्यु का खतरा बढ़ गया है लेकिन कोविड महामारी का प्रकोप कम होते ही सार्वभौमिक टीकाकरण की दिशा में तेजी से काम किया जाएगा। 

नियमित टीकाकरण न होने के पीछे कई कारण हैं। जैसे कुछ देशों में टीकाकरण अभियान रोक दिया गया है। वहीं, माता-पिता भी बच्चों को अस्पताल ले जाने से डर रहे हैं। साथ ही कोरोना संक्रमण के चलते जहां कई देशों में सामान्य क्लिनिक बंद करने पड़े, वहीं, कइयों के खुलने का टाइम कम कर दिया गया। इससे अभिभावक अपने बच्चों को टीके लगवाने नहीं जा पाए। गौरतलब है कि भारत में टीकाकरण का अभियान बहुत पुराना है, जहां पहले 6 बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को टीके लगाए जाते थे। इसके तहत टी.बी. से बचाव के लिए बी.सी.जी. का टीका, डिप्थीरिया, काली खांसी व टैटनस से बचाव के लिए डी.पी.टी. का टीका लगता था। 

बाद में इस अभियान में पोलियो, हैपेटाइटिस बी, टाइफाइड, हीमोफिलस इं लुएंजा टाइप बी, रूबेला, डायरिया इत्यादि के टीके भी शामिल हो गए। मौजूदा समय में इंद्रधनुष अभियान के तहत करीब एक दर्जन बीमारियों से बचाव के लिए बच्चों को टीके लगाए जाते हैं लेकिन जब से कोरोना वायरस ने देश में दस्तक दी और तालाबंदी की शुरूआत हुई, तब से लेकर आज तक बच्चों का टीकाकरण बहुत प्रभावित हुआ है। यूनिसेफ ने जोर देते हुए सिफारिश की है कि जहां भी टीकाकरण अभियान रुका हुआ है, वहां की सरकारें कोविड महामारी नियंत्रण में आने के बाद टीकाकरण गतिविधियों को तेज करने के लिए कठोर योजना बनाना शुरू करें अन्यथा बच्चों में खसरा, पोलियो और दिमागी बुखार के मामले सामने आ सकते हैं, जो जानलेवा हैं। 

भारत में प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों और सामुदायिक चिकित्सा केंद्रों की हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में बच्चों के जरूरी टीकाकरण की उपेक्षा होनी ही थी। याद रहे कि टीके के कारण ही चिकन पॉक्स की बीमारी पूरी तरह खत्म हो गई है। देश पोलियो मुक्त भी हुआ है। खसरा, काली खांसी, डिप्थीरिया व टैटनस की बीमारी भी काफी कम हो गई है लेकिन यदि टीकाकरण अधिक समय तक प्रभावित रहा तो यह बीमारियां दोबारा बढ़ सकती हैं। 

यहां तक कि बीते साल यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में इस बात पर ङ्क्षचता भी जताई गई थी कि अगर बच्चों को समय से टीके नहीं दिए गए, तो एक और स्वास्थ्य आपात स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। अत: अब बहुत जरूरी हो गया है कि देश के भविष्य बच्चों को आने वाले संकट से बचाए रखने के लिए बड़े स्तर पर टीकाकरण हेतु विचार किया जाना चाहिए।-लालजी जायसवाल
 

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