भारत को एक ‘स्वतंत्र मीडिया’ की जरूरत

Edited By ,Updated: 05 Apr, 2021 02:56 AM

india needs an  independent media

मैंने वर्ष पूर्व ‘प्राइज ऑफ द मोदी ईयर’ नामक किताब लिखी थी। इसे इस वर्ष के अंत में प्रकाशित किया जाना चाहिए। यह किताब 2014 के बाद से भारत के इतिहास के बारे में है। इसके लिए मैंने अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, शासन और न्यायपालिका

मैंने वर्ष पूर्व ‘प्राइज ऑफ द मोदी ईयर’ नामक किताब लिखी थी। इसे इस वर्ष के अंत में प्रकाशित किया जाना चाहिए। यह किताब 2014 के बाद से भारत के इतिहास के बारे में है। इसके लिए मैंने अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा, शासन और न्यायपालिका जैसे विभिन्न हिस्सों के तथ्यों और आंकड़ों की जांच की है। मैं किताब की सामग्री के बारे में बात करना नहीं चाहता क्योंकि इसमें बहुत अधिक विवरण है और मेरे कुछ विचारों से पाठक पहले ही परिचित हो सकते हैं। मैं उसके बारे में बात  करना चाहता हूं जहां से मैंने इस किताब के लिए सामग्री ली है। 

पुस्तक में उद्धत किए गए स्रोतों में से सबसे ज्यादा 85 बार जिस स्रोत का जिक्र किया गया है वह एक वैबसाइट है जिसे ‘द वायर डॉट इन’ के नाम से पुकारा जाता है। दूसरी वैबसाइट का नाम ‘सक्रॉल डॉट इन’ है और इसका 54 बार उल्लेख किया गया है। इसकी तुलना में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में 37 बार उल्लेख है। इसका मुख्य कारण यह है कि वैबसाइटों ने अखबारों की तुलना में उन रिपोर्टों को अधिक पसंद किया है जिनकी मुझे रुचि थी। वास्तविकता यह है कि पिछले एक दशक से ये वैबसाइटें या उनके जैसे ‘न्यूज क्लिक’, ‘द न्यूज मिन्ट’ और ‘ऑल्ट न्यूज’ को समाचारों की तरह पारम्परिक मीडिया के रूप में महत्वपूर्ण बना दिया है। इन साइटों में से अधिकांश को पत्रकारों द्वारा स्थापित किया गया है जो डोनेशन या कुछ अन्नदानों पर जीवित हैं। 

वे बड़े व्यावसायिक घरानों या पारम्परिक मीडिया हाऊस के स्वामित्व में नहीं हैं। यही कारण है कि उनकी विषय वस्तु अलग होती है। पारम्परिक मीडिया कई चीजों के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहता है। मिसाल के तौर पर मोदी सरकार ने विज्ञापनों पर प्रति वर्ष 1200 करोड़ रुपए (100 करोड़ रुपए प्रति माह) खर्च किए। इसलिए लगभग 200 करोड़ रुपए का पैसा हर महीने मीडिया को दिया जाता है जो एक बड़ी राशि होती है। विभिन्न राज्य सरकारें तथा उनके बजट इससे अलग हैं। फिर इसके अलावा  टी.वी. स्टेशनों के लिए लाइसैंस, मुफ्त या रियायत वाली भूमि आबंटन, सीमा शुल्क मशीनरी, अखबारी कागज पर आयात शुल्क जैसी अन्य चीजें भी होती हैं। 

उसके बाद विभिन्न सम्मेलन भी होते हैं जिन्हें दिग्गज मीडिया हाऊस आयोजित करते हैं जहां पर वे प्रधानमंत्री तथा विभिन्न मंत्रियों को भाग लेने तथा बोलने के लिए आमंत्रित करते हैं। जब प्रधानमंत्री एक हैड लाइन या कहानी से नाराज हो जाते हैं तो वह अतीत में अपनी उपस्थिति को रद्द कर देते हैं। अन्य मंत्रियों को भी रद्द करने और प्रमुख प्रायोजकों को शिकायत करने के लिए प्रेरित किया जाता है। अग्रणी प्रायोजित यह शिकायत करते हैं कि उन्हें उनकी स्पांसरशिप की पूरी कीमत नहीं मिली। ये सभी बातें पारम्परिक मीडिया को एक तरह से सरकारी दबाव के लिए संवेदनशील बनाती हैं, जो वैबसाइटें नहीं हो सकती हैं। 

और यही कारण है कि मोदी सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी (बिचौलिया दिशा-निर्देश और डिजीटल मीडिया आचार संहिता)नियम, 2021 की शुरूआत की है। यह निरीक्षण तंत्र बिना कानून के बनाया गया था और इंटरनैट के लिए कार्य करेगा। जैसा कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टी.वी. अधिनियम के लिए किया था। सरकार खुद को इंटरनैट पर और मैसेजिंग सेवाओं पर सारी सामग्री को सैंसर करने और विनियमित करने की शक्ति दे रही थी। नियमों में ई-समाचार पत्रों को छूट दी गई है जिसका मतलब है कि स्थापित पब्लिशिंग हाऊस (वे जो सरकार से पैसा प्राप्त करते हैं।) को  ‘द वायर डॉट इन’, ‘स्क्रॉल डॉट इन’ और ‘न्यूज क्लिक डॉट इन’ जैसे स्वतंत्र मीडिया हाऊस घरानों पर विशेषाधिकार प्राप्त होगा। 

यदि आपके पास एक समाचार वैबसाइट है और एक अखबार नहीं है तो आपकी वैबसाइट को विनियमित किया जाएगा। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि एक अलगाववादी के साथ एक साक्षात्कार जो अखबार में तो प्रकाशित हुआ था और फिर पुन: वैबसाइट पर प्रस्तुत किया गया था, राजद्रोह का आरोप आकर्षित नहीं करेगा लेकिन अगर एक साक्षात्कार एक वैबसाइट द्वारा प्रकाशित किया गया था जिसमें एक अखबार शामिल नहीं था तो यह राजद्रोह को आकर्षित करेगा। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 न्यूज मीडिया तक विस्तारित नहीं हुआ और इसलिए दिशा-निर्देशों में न्यूज मीडिया को विनियमित करने का कानूनी अधिकार नहीं था। नियमों ने सरकार को उस सामग्री को विनियमित करने का अधिकार दिया जिसे न्यूज तथा करंट अफेयर्ज सामग्री के प्रकाशक ने छोड़ा था जोकि अस्पष्ट और मनमाना है।

नया कानून एक नागरिक के रूप में भी आपको सीधे प्रभावित करता है। इसके लिए व्हाट्सऐप, सिग्रल और टैलीग्राम जैसी मैसेजिंग सेवाएं सामग्री के एक टुकड़े को गढऩे वाले की पहचान करने के लिए सक्षम हो सकेंगी। (मिसाल के तौर पर एक कार्टून जो प्रधानमंत्री की आलोचना करता है और वायरल हो जाता है)। नियम कहते हैं कि वैब आधारित प्लेटफार्मों पर प्रकाशित होने वाली वीडियो सामग्री को केंद्र सरकार द्वारा सैंसरशिप किया जाएगा।  सरकार पूरी तरह से शक्तिशाली है तथा प्रधानमंत्री बेहद प्रसिद्ध हैं। विपक्ष को अभी भी अपने पांव खोजने पड़ रहे हैं। भारत को एक स्वतंत्र मीडिया की जरूरत है जो यह रिपोर्ट कर सके कि हमारे देश में क्या चल रहा है?-आकार पटेल

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