भारत के सामने निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की चुनौती

Edited By Yaspal,Updated: 24 Aug, 2018 01:47 AM

india s challenge to increase exports and reduce trade deficit

स समय देश से निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की डगर पर कई अभूतपूर्व चुनौतियां दिखाई दे रही हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती हाल ही में यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, कनाडा, रूस, श्रीलंका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड द्वारा अमरीका के साथ मिलकर ...

इस समय देश से निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने की डगर पर कई अभूतपूर्व चुनौतियां दिखाई दे रही हैं। इनमें सबसे बड़ी चुनौती हाल ही में यूरोपीय यूनियन, चीन, जापान, कनाडा, रूस, श्रीलंका, ताइवान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड द्वारा अमरीका के साथ मिलकर  विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) में भारत की निर्यात संवद्र्धन योजनाओं के खिलाफ  प्रस्ताव प्रस्तुत करना है।  पहले भी मार्च 2018 में अमरीका ने डब्ल्यू.टी.ओ. में भारत द्वारा दी जा रही निर्यात सबसिडी को रोकने हेतु आवेदन दिया था। भारत की निर्यात संवद्र्धन योजनाओं के विरोध में डब्ल्यू.टी.ओ. में जो आवाज उठाई गई है उसमें कहा गया है कि अब भारत अपने निर्यातकों के लिए सबसिडी योजनाएं लागू नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना डब्ल्यू.टी.ओ. के समझौते का उल्लंघन है। कहा गया है कि निर्यात के लिए सबसिडी ऐसे देश ही दे सकते हैं, जहां प्रति व्यक्ति आय एक हजार डॉलर सालाना से कम है। भारत में प्रति व्यक्ति आय इसके दोगुने के बराबर है।

भारत का कहना है कि उसके पास निर्यात संवद्र्धन योजनाओं को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए 8 वर्षों का समय है। अमरीका और अन्य देशों का कहना है कि जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 3 वर्षों से लगातार एक हजार डॉलर से अधिक है, उन देशों पर यह नियम लागू नहीं होता है। ऐसे में इस विवाद के समाधान के लिए अब न्यायसंगत समाधान हेतु डब्ल्यू.टी.ओ. ने फिलीपींस के जो एंटानियो बुएनकैमिनो की अध्यक्षता में एक पैनल बनाया है, जो आगामी 3 महीनों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में भारत कमजोर पड़ सकता है और वर्ष 2018 के अंत तक भारत को विवादित योजनाओं पर निर्यात सबसिडी खत्म करने के मद्देनजर बड़ा निर्णय लेना पड़ सकता है।

हाल ही में 21 अगस्त को नीति आयोग ने कहा है कि इस समय देश की अर्थव्यवस्था के लिए रुपए में गिरावट से ज्यादा ङ्क्षचता व्यापार घाटे की है। ऐसे में देश से निर्यात बढ़ाने की कवायद किए जाने की जरूरत है। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार द्वारा चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 में देश का निर्यात 350 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन यह लक्ष्य प्राप्त करना कठिन है। वैश्विक निर्यात मांग कम होने से वर्ष 2017-18 में देश से कुल 303 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया गया, जबकि वर्ष 2016-17 में निर्यात का मूल्य 274 अरब डॉलर रहा। निर्यात के ये आंकड़े संतोषजनक नहीं हैं। अब देश के सामने वैश्विक व्यापार युद्ध से प्रभावित होने की नई चुनौतियां भी खड़ी हैं, इससे भी निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। पिछले वित्त वर्ष में भारत का व्यापार घाटा करीब 150 अरब डॉलर था। इसमें से एक-तिहाई घाटा चीन से द्विपक्षीय व्यापार में हुआ था। अभी इस वर्ष भी चीन से व्यापार घाटे में कमी नहीं आई है। संसद की विदेश व्यापार से संबंधित नरेश गुजराल समिति ने अपनी 145वीं रिपोर्ट में चीनी माल के बढ़ते आयात से घरेलू उद्योग और रोजगार के अवसर को हो रहे नुक्सान पर गंभीर चिंताएं प्रस्तुत की हैं।

वस्तुत: देश से निर्यात नहीं बढऩे के कई कारण हैं। वाहन निर्माण, इंजीनियरिंग वस्तु, परिष्कृत हीरे और चमड़े की वस्तुएं आदि उद्योगों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। देश के लिए करीब 115 अरब डॉलर  की सालाना विदेशी मुद्रा कमाने वाले आई.टी. सेवा उद्योग की आधे से अधिक आमदनी अमरीका को सॉफ्टवेयर निर्यात से होती है लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के वीजा संबंधी कठोर निर्णय से आऊटसोर्सिंग के क्षेत्र में परचम फहराते हुए आगे बढ़ने वाले भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं और अमरीका से आई.टी. निर्यात की आमदनी आधी से भी कम रह जाने की आशंका है।

आर्थिक क्षेत्र यानी स्पैशल इकोनॉमिक जोन (सेज) से संबंधित जो नए आंकड़े प्रस्तुत हुए हैं, उनके अनुसार सेज रोजगार सृजन, निवेश और निर्यात के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हुआ है। नि:संदेह पिछले 3 वर्षों में भी सेज से निर्यात का प्रस्तुतिकरण असंतोषजनक ही रहा है। वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान सेज से निर्यात 5.81 लाख करोड़ रुपए  के स्तर पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान 5.23 लाख करोड़ रुपए था तथा 2015-16 में यह निर्यात 4.67 लाख करोड़ रुपए का रहा। इस तरह निर्यात मोर्चे पर सेज अपने लक्ष्य के अनुरूप कामयाब नहीं रहे हैं।

यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि न तो ‘मेक इन इंडिया’ का नारा सुनकर दुनिया की कंपनियां विनिर्माण के गढ़ के तौर पर चीन के बजाय भारत को प्राथमिकता देने जा रही हैं और न ही नई विदेश व्यापार नीति के कारगर क्रियान्वयन के बिना भारत से निर्यात तेजी से बढ़ने जा रहे हैं। दूसरी ओर देश में कार्यरत सेजों के निर्यात परिदृश्य के सामने चीन से चुनौती खड़ी है। साथ ही साथ भारत के मुकाबले कई छोटे-छोटे देश मसलन बंगलादेश, वियतनाम, थाईलैंड आदि ने अपने निर्यातकों को सुविधाओं का ढेर देकर भारतीय निर्यातकों के सामने कड़ी प्रतिस्पर्धा खड़ी कर दी है।

ऐसे में देश से निर्यात बढ़ाने और देश का व्यापार घाटा कम करने के लिए रणनीतिक कदम उठाए जाने होंगे। तुलनात्मक रूप से कम उपयोगी आयातों पर कुछ नियंत्रण करना होगा, वहीं निर्यात की नई संभावनाएं खोजनी होंगी। अमरीका एवं चीन के बीच तनावपूर्ण कारोबार स्थिति के कारण इस समय भारत-चीन के बीच व्यापार बढऩे की नई जोरदार संभावना बनी है। वस्तुत: अप्रैल 2018 से अमरीका और चीन के बीच व्यापार संबंध दोनों देशों के व्यापार इतिहास के सबसे बुरे दौर में पहुंच गए हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध शुरू हो गया है। पिछले दिनों अमरीका ने चीन के कई उत्पादों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगाने का निर्णय लिया, वहीं इसके जवाब में चीन ने अमरीका से बड़ी मात्रा में आयात होने वाले 128 उत्पादों पर 25 फीसदी आयात शुल्क लगा दिए हैं। इन उत्पादों में सोयाबीन, तम्बाकू, फल, मक्का, गेहूं, रसायन आदि शामिल हैं।

चीन द्वारा लगाए गए आयात शुल्क के कारण अमरीका की ये सारी वस्तुएं चीन के बाजारों में महंगी हो जाएंगी। ऐसे में भारतीय वस्तुएं चीन के बाजारों में अमरीकी वस्तुओं की तुलना में कम कीमत पर मिलने लगेंगी। इससे चीन को भारत के निर्यात बढ़ सकेंगे। चीन को निर्यात बढ़ाने के लिए हमें चीन के बाजार में भारतीय सामान की पैठ बढ़ाने के लिए उन क्षेत्रों को समझना होगा, जहां चीन को गुणवत्तापूर्ण भारतीय सामान की दरकार है।  चूंकि भारतीय उत्पाद गुणवत्ता और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी होते हैं, इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि चीनी उपभोक्ता और कंपनियां इनकी खरीद नहीं कर सकतीं।

देश से कृषि निर्यात की नई संभावनाएं उभरती दिखाई दे रही हैं। देश में खाद्यान्न, फलों और सब्जियों का उत्पादन हमारी खपत से बहुत ज्यादा है। देश में 6.8 करोड़ टन गेहूं और चावल का भंडार है। यह जरूरी बफर स्टॉक के मानक से दोगुना है। दूध का उत्पादन आबादी बढऩे की दर से 4 गुना तेजी से बढ़ रहा है। देश में दूध उत्पादन वर्ष 2017-18 के दौरान बढ़कर 17.63 करोड़ टन रहने का अनुमान है। चीनी का उत्पादन 3.2 करोड़ टन होने की उम्मीद है जबकि देश में चीनी की खपत 2.5 करोड़ टन है। इसी तरह से देश में फलों और सब्जियों का उत्पादन मूल्य 3.17 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इस तरह कृषि क्षेत्र में अतिशय उत्पादन देश के लिए निर्यात की नई संभावनाएं प्रस्तुत कर रहा है।

हम आशा करें कि सरकार द्वारा वर्ष 2020 तक निर्यात बाजार में तेजी से आगे बढऩे और वैश्विक निर्यात में भारत का हिस्सा 2 फीसदी तक पहुंचाने के लिए निर्यात की नई संभावनाओं को साकार किया जाएगा तथा निर्यात के नए बाजारों में दस्तक दी जाएगी। इस समय जब देश के निर्यात के सामने  डब्ल्यू.टी.ओ. की चुनौती खड़ी है, ऐसे में अब वक्त आ गया है कि व्यापार सुविधाएं और निर्यात का बुनियादी ढांचा बढ़ाकर लालफीताशाही में कमी लाई जाए जिससे सरकार के सबसिडी संबंधी समर्थन के बिना भी निर्यातकों की प्रतिस्पर्धा क्षमता बढ़ सके। साथ ही इस समय डॉलर के मुकाबले कमजोर रुपए का लाभ लेकर भी निर्यात बढ़ाने का बेहतर अवसर मुट्ठी में लिया जाना चाहिए। - डॉ. जयंतीलाल भंडारी

 

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