भारतीय संविधान ने लोगों को ‘सांचे’ में ढाला

Edited By ,Updated: 19 Jan, 2020 03:17 AM

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भारतीय संविधान संवैधानिक असैम्बली के प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाया गया है। इसके साथ-साथ इसने भारतीय लोगों को लोकतांत्रिक नागरिक के सांचे में भी ढाला है। क्योंकि हमारा संविधान 26 जनवरी को 70वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इसलिए संविधान तथा भारतीय...

भारतीय संविधान संवैधानिक असैम्बली के प्रतिनिधियों के माध्यम से बनाया गया है। इसके साथ-साथ इसने भारतीय लोगों को लोकतांत्रिक नागरिक के सांचे में भी ढाला है। क्योंकि हमारा संविधान 26 जनवरी को 70वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इसलिए संविधान तथा भारतीय लोगों के बीच संबंधों की पैठ के तौर पर भी इसे देखा जा रहा है। ‘द वायर’ को दिए गए साक्षात्कार के दौरान कोलंबिया, हारवर्ड तथा अशोका यूनिर्वसिटी के प्रो. माधव खोसला ने मुझसे हाल ही में भारतीय संविधान पर जारी की गई अपनी किताब ‘इंडिया’ज फाऊंडिंग मोमैंट: द कांस्टीच्यूशन ऑफ ए मोस्ट सरप्राइजिंग डैमोक्रेसी’ पर बातचीत करने के दौरान कहा कि भारतीय संविधान ने लोगों को सांचे में ढाला है तथा जात तथा धर्म के नाम पर बंटे गरीब अनपढ़ लोगों के बीच में से लोकतांत्रिक नागरिकों को उत्पन्न किया है। 

इस संदर्भ में कि भारत तथा पश्चिम में संविधान के निर्माण के बीच फर्क महत्वपूर्ण है, इस पर बात करते हुए प्रो. खोसला ने कहा कि पश्चिम में विश्वव्यापी मताधिकार उचित आय के औसत स्तर के सुदृढ़ होने के बाद आया तथा राज्य प्रशासनिक प्रणालियों को अपेक्षाकृत स्थापित किया गया। वहीं भारत में दूसरी ओर विश्वव्यापी मताधिकार तब लागू किया गया जबकि देश गरीब, अनपढ़ तथा जाति-धर्म तथा भाषा के नाम पर बंटा हुआ था। इसके साथ-साथ देश शताब्दियों पुरानी परम्पराओं के बोझ तले दबा हुआ था। इसी वजह से भारतीय संविधान विश्व में अनूठा है। 

भारतीय लोकतंत्र का अनुभव एक राष्ट्र का अनुभव मात्र नहीं 
इस बिंदू को पूरी तरह समझाते हुए खोसला ने कहा कि भारतीय संविधान को पाने तक यह मान्यता थी कि लोगों को शिक्षित तथा आर्थिक तौर पर उस स्तर तक मजबूत किया जाए जहां पर उन्हें विश्वव्यापी मताधिकार के काबिल बनाया जाए। भारतीय संविधान के निमार्ताओं ने इस बात को उलटा दिया। भारतीय लोकतंत्र का अनुभव एक राष्ट्र का अनुभव मात्र नहीं बल्कि अपने आप में लोकतंत्र का अनुभव है। आधुनिक युग में लोकतंत्र की सरंचना कर भारत ने एक मिसाल कायम की।

यहां पर एक अन्य भावना भी है जिसमें भारतीय संविधान ने 1947 से पहले की पारम्परिक सोच को औंधा कर दिया। तब भारतीय विचारकों ने अधिकारों को समुदायों अथवा धर्म द्वारा उल्लेखित समूहों के तौर पर मान लिया। संविधान के निर्माताओं ने इस विचार को तोड़ते हुए उसकी जगह व्यक्तियों को नागरिकता के अधिकारों को उनके धार्मिक संबंधों की परवाह किए बिना उन्हें अर्पित कर दिया। प्रो. खोसला का कहना है कि भारतीय संविधान ने इस दृष्टिकोण के साथ 2 प्रमुख समझौते बनाए। एक तो अल्पसंख्यकों के अधिकार को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने थे तथा अनुसूचित जाति तथा जनजाति को आरक्षण दिया जाना था। जब प्रो. खोसला से यह पूछा गया कि भारतीय संविधान क्यों बचा हुआ है तथा सीमापार पाकिस्तान में उनका संविधान विभिन्न अनुभव रखता है। इस पर उन्होंने कहा कि इसका साधारण उत्तर पं. जवाहर लाल नेहरू हैं। 

सी.ए.ए. भारतीय संविधान की भावना का उल्लंघन 
द वायर के साक्षात्कार दौरान खोसला ने नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) की संवैधानिकता तथा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की संवैधानिकता पर भी विस्तार रूप से अपना विचार प्रकट किए। सी.ए.ए. भारतीय संविधान की भावना का उल्लंघन होने के साथ-साथ धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का भी उल्लंघन है जो कि संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। हालांकि उन्होंने कहा कि असंवैधानिक कहने का मुख्य कारण यह है कि कानून के तहत बराबरी के हक की गारंटी देने वाले आर्टिकल 14 का यह उल्लंघन है।

6 धर्मों तथा 3 देशों को इस कानून में पहचान कर कोई उचित वर्गीकरण नहीं किया गया। जिस तरह अनुच्छेद 370 को घाटी से हटाया गया, इस पर खोसला ने कहा कि इसकी संवैधानिकता के प्रति यह चिंता वाली बात है। हालांकि उनका मानना है कि जिस प्रकार से जम्मू तथा कश्मीर को बांटा गया तथा इसकी अवनति की गई, यकीनन यह भारतीय संविधान के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि प्रो. खोसला दृढ़ता के साथ यह कहने में असमर्थ हुए थे कि सी.ए.ए. और कश्मीर में बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों मामलों पर प्राथमिकता नहीं दी।-करण थापर

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