भारतीय अर्थव्यवस्था जमीनी स्तर पर पटरी पर लौटती नहीं दिखाई देती

Edited By Pardeep,Updated: 06 Sep, 2018 04:01 AM

indian economy does not look back on track at the grassroots level

कुछ दिन पहले केन्द्र सरकार ने अपनी एक उपलब्धि के तौर पर गर्व से 8.2 प्रतिशत विकास दर का आंकड़ा सामने रखा। विवादास्पद नोटबंदी, जिसके परिणामस्वरूप विकास दर औंधे मुंह गिरी थी, के बाद ऐसा पहली बार है कि विकास दर ने यह स्तर प्राप्त किया है। इससे यह...

कुछ दिन पहले केन्द्र सरकार ने अपनी एक उपलब्धि के तौर पर गर्व से 8.2 प्रतिशत विकास दर का आंकड़ा सामने रखा। विवादास्पद नोटबंदी, जिसके परिणामस्वरूप विकास दर औंधे मुंह गिरी थी, के बाद ऐसा पहली बार है कि विकास दर ने यह स्तर प्राप्त किया है। इससे यह अनुमान लगाया जाने लगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर वापस लौट रही है। 

मगर यह जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं दे रहा। डालर के मुकाबले भारतीय रुपया सबसे कमजोर स्थिति में है और पैट्रोलियम ईंधन की कीमतें, जो अन्य सभी कीमतों को प्रभावित करती हैं, रिकार्ड ऊंचाई पर हैं। छोटे तथा मध्यम उद्योग, जो अभी नोटबंदी तथा गलत तरीके से लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) से उबरे नहीं थे, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में रुपए के कमजोर होने तथा ईंधन की कीमतों के आसमान छूने के दोहरे कारण से और चोट पहुंची है।

भारतीय रुपए की कीमत में गिरावट का अर्थ है कि आयात, जिसमें कच्चा तथा शोधित तेल शामिल हैं, का मूल्य बढ़ जाएगा। इसका अर्थ यह भी है कि विदेशों में पढऩे वाले विद्याॢथयों और जो लोग अपने संबंधियों तथा मित्रों से मिलने और यहां तक कि पर्यटक के तौर पर विदेश यात्रा करते हैं, की लागत में वृद्धि। कमजोर रुपया हमारे निर्यात के हितों के भी खिलाफ जाता है। जहां रुपए के कमजोर होने से अधिकांशत: लोगों को सीधी चोट पहुंचती है कि तेल ईंधन की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि से आम आदमी को सीधे तौर पर कड़ी चोट पहुंच रही है। 

परिवहन की लागत जैसे-जैसे बढ़ती है परिणामस्वरूप सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ती जाती हैं जिनमें सब्जियां, खाद्यान्न, दूध, दवाओं तथा जीवन-यापन के लिए आवश्यक अन्य सभी वस्तुएं भी शामिल हैं। परिवहन की लागत में वृद्धि के गुणात्मक प्रभाव बड़े और अधिकतर अपरिवर्तनीय होते हैं। पैट्रोल तथा डीजल की कीमतें गत एक सप्ताह से भी अधिक समय से लगभग रोजमर्रा के आधार पर बढ़ रही हैं और इस बात का डर है कि यदि सरकार ने दखल न दिया तो आने वाले दिनों में ये और भी ऊपर जाएंगी। नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि मुम्बई में पैट्रोल की कीमत 86 रुपए प्रति लीटर को पार कर गई है जबकि पंजाब तथा दिल्ली में यह इससे कुछ ही कम है। इसी तरह डीजल की कीमत मुम्बई तथा अन्य प्रमुख शहरों में 75 रुपए पार कर गई है। यहां तक कि घरेलू एल.पी.जी. सिलैंडरों की कीमत 800 रुपए प्रति 16 किलो सिलैंडर को पार कर गई है। 

यद्यपि कई लोग हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के साथ कीमतों की तुलना करना पसंद नहीं करते, तथ्य यह है कि भारत के मुकाबले मुद्रा कमजोर होने के बावजूद उस देश में पैट्रोल की वर्तमान खुदरा कीमत लगभग 52 रुपए प्रति लीटर है। यह सच है कि रुपए के कमजोर होने तथा पैट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में काफी वृद्धि का अंतर्राष्ट्रीय कारकों से काफी संबंध होता है, जो बदले में अमरीकी नीतियों से जुड़े हैं। चूंकि हम अपने कच्चे तेल, पैट्रोल तथा पैट्रोलियम उत्पादों का 25 प्रतिशत से अधिक आयात करते हैं, हर बार कीमतें ऊपर जाने से रुपया कमजोर होता है और इसके बावजूद निर्यात का परिमाण उतना ही रहता है। 

केन्द्रीय पैट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने पैट्रोल तथा डीजल की घरेलू कीमतों में वृद्धि के लिए हाल ही में ‘बाहरी कारकों’ को भी दोष दिया था मगर कहा कि यह वृद्धि अस्थायी है। उन्होंने कहा है कि वह दो बिन्दुओं का उल्लेख करना चाहेंगे और दोनों ही विषय बाहरी हैं। ओपेक (आर्गेनाइजेशन ऑफ पैट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) ने वायदा किया था कि उत्पादन प्रतिदिन 10 लाख बैरल बढ़ाया जाएगा, जो बढ़ाया नहीं गया। इसके अतिरिक्त वेनेजुएला तथा ईरान जैसे देशों में संकट बढ़ रहा है। उत्पादन में गिरावट के कारण तेल कीमतों पर दबाव है। दूसरे, उन्होंने कहा कि अमरीकी डालर के मुकाबले वैश्विक मुद्राएं कमजोर हुई हैं। 

मगर ऐसा कुछ नहीं है कि सरकार आम व्यक्ति की मुश्किलों को कम करने के लिए कुछ कर सके? निश्चित तौर पर यह बचाव में आ सकती है यदि केन्द्र तथा राज्य सरकारें ईंधन पर कर कम करने के लिए हाथ मिला लें, यहां तक कि बढ़ती कीमतों के बोझ को कम करने के लिए चाहे अस्थायी तौर पर। दिल्ली में पैट्रोल की कीमतों का उदाहरण लेते हैं। पैट्रोल की प्रति लीटर 79.15 रुपए की कुल कीमत के मुकाबले आधार मूल्य केवल 39.21 रुपए है। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार आबकारी शुल्क 19.48 रुपए, वैट 16.83 रुपए तथा डीलर की कमीशन 3.63 रुपए है। यह दिखाता है कि हमारे द्वारा चुकाई जाने वाली पैट्रोल तथा डीजल की लगभग 50 प्रतिशत कीमत केन्द्र तथा राज्य सरकारों को चुकाए जाने वाले कर हैं। 

जहां सरकारों को वेतन के बड़े बिल चुकाने तथा विकास उद्देश्यों के लिए राजस्व की जरूरत है, क्या वे आम आदमी के बचाव में नहीं आ सकतीं, चाहे यह दखल अस्थायी आधार पर तब तक चाहिए जब तक कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतें स्थिर और रुपया मजबूत नहीं हो जाता। इसका क्या स्पष्टीकरण था कि जब कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें आज की कीमत के मुकाबले लगभग आधी थीं तो सरकार ने इसकी खुदरा कीमतें नहीं घटाई थीं। वास्तव में उस समय सरकार ने शुल्क तथा कर बढ़ा दिए थे और लाभों को लोगों तक नहीं पहुंचाया था। 

आधिकारिक रिकार्ड्स के अनुसार वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार के अंतर्गत पैट्रोल पर शुल्क लगभग 105 प्रतिशत तथा डीजल पर लगभग 331 प्रतिशत बढ़ाया गया। कई राज्य सरकारों के मूल्यवर्धक करों के स्तर ऊंचे होने के परिणामस्वरूप देश भर में कीमतों में अंतर होता है। केन्द्र को अवश्य आगे बढ़कर करों में बड़ी कटौती की घोषणा करनी चाहिए। भाजपा को अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों को भी यह निर्देश अवश्य दिया जाना चाहिए और ऐसा करने के लिए इसका 20 से अधिक राज्यों पर शासन है। इससे न केवल सामान्य लोगों को मदद मिलेगी बल्कि अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।-विपिन पब्बी

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