अभूतपूर्व विवाद में भारतीय न्यायपालिका

Edited By ,Updated: 25 Apr, 2019 04:19 AM

indian judiciary in unprecedented dispute

एक वर्ष के भीतर यह दूसरी बार है कि भारत का उच्चतम न्यायालय विवाद में घिरा है। ये दोनों घटनाएं अभूतपूर्व हैं और इन्होंने लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से एक की कार्यप्रणाली को निगरानी के दायरे में ला दिया है। दोनों विवादों में भारत के वर्तमान मुख्य...

एक वर्ष के भीतर यह दूसरी बार है कि भारत का उच्चतम न्यायालय विवाद में घिरा है। ये दोनों घटनाएं अभूतपूर्व हैं और इन्होंने लोकतंत्र के तीन स्तंभों में से एक की कार्यप्रणाली को निगरानी के दायरे में ला दिया है। 

दोनों विवादों में भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई का नाम आया है। असम के पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे जस्टिस गोगोई  ने ईमानदारी और निष्ठा के लिए प्रसिद्धि कमाई है। इसके अलावा पिछले वर्ष तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ चार जजों की  अभूतपूर्व प्रैस कांफ्रैंस में भाग लेकर उन्होंने देश का अगला मुख्य न्यायाधीश नहीं बनने का खतरा भी मोल ले लिया था। तब सरकार ने परम्परा का निर्वहन करते हुए वरिष्ठतम न्यायाधीश को अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर एक अच्छा उदाहरण पेश किया था। 

अब जस्टिस गोगोई एक और विवाद में घिर गए हैं जब सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने उन पर यौन उत्पीडऩ के आरोप लगाए हैं। किसी भी तरह से यह यौन उत्पीडऩ का सामान्य मामला नहीं है। महिला का आरोप है कि जब उसने विरोध किया तो उसे कुछ आरोपों के आधार पर पिछले वर्ष दिसम्बर में नौकरी से निकाल दिया गया। उसका यह भी आरोप है कि जस्टिस गोगोई ने उसके रिश्तेदारों को भी परेशान किया। इस समय महिला द्वारा लगाए गए आरोपों के बारे में कुछ कहना उचित नहीं होगा। इन आरोपों की जांच किसी विशेषज्ञ द्वारा की जा सकती है लेकिन  इतना स्पष्ट है कि कुछ बाहरी ताकतें  इसका समर्थन कर रही हैं। 

जस्टिस गोगोई ने कहा है कि यह न्यायपालिका की संस्था को कमजोर करने की साजिश है तथा इस बात पर जोर दिया कि वह कुछ महत्वपूर्ण मामलों में फैसले देने वाले थे। शायद यही कारण था कि उनके चरित्र और ईमानदारी पर सवाल उठाए गए। उन्होंने कहा कि उनके पास बैंक खाते में 6-7 लाख रुपए हैं और कोई भी व्यक्ति पैसे के मामले में उन पर उंगली नहीं उठा सकता था इसलिए उन्हें यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाकर निशाना बनाया जा रहा है। 

जिस प्रकार से ये आरोप लगाए गए और उनको योजनाबद्ध तरीके से लीक किया गया, वे इस बात का सबूत हैं कि यह केवल कार्यस्थल पर महिला के यौन उत्पीडऩ का मामला नहीं बल्कि इसमें कुछ और भी है। कथित पीड़िता, जिसकी कुछ लोगों ने मदद की है, ने इस बात को सुनिश्चित किया कि उसकी शिकायत ऑनलाइन मीडिया हाऊसिज को लीक कर दी जाए जहां से वह तेजी से फैल जाए तथा इसके साथ ही यह शिकायत सुप्रीम कोर्ट के 22 अन्य जजों तक पहुंच जाती है ताकि मुख्य न्यायाधीश को अपने बचाव का अवसर न मिल सके। किसी सामान्य मामले में पीड़ित महिला न्याय के लिए पुलिस के पास जाकर केस दर्ज करवाती या महिला आयोग अथवा सुप्रीम कोर्ट की यौन उत्पीडऩ  रोधी समिति के पास जाती। यह बात तथा आरोप लगाने में देरी शिकायतकत्र्ता के इरादों पर संदेह पैदा करती है। 

न्यायपालिका के खिलाफ षड्यंत्र
स्पष्ट तौर पर इन आरोपों से परेशान जस्टिस गोगोई ने इस मामले में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए मामले को सुना जबकि वह खुद इसमें आरोपी थे। उन्होंने स्पष्टीकरण देने की कोशिश की और इस बात की आशंका जाहिर की कि यह न्यायपालिका को कमजोर करने की बड़़ी साजिश है।
वास्तव में मुख्य न्यायाधीश को मामले की सुनवाई करने वाली पीठ से अलग रहना चाहिए था तथा यह अन्य जजों पर छोड़ देना चाहिए था कि इस अभूतपूर्व स्थिति से कैसे निपटा जाए जिसमें देश के मुख्य न्यायाधीश स्वयं आरोपी हैं। बाद में उन्होंने ऐसा ही किया और  दूसरे वरिष्ठतम जज से इस मामले में जरूरी कदम उठाने को कहा। 

सुप्रीम कोर्ट ने महिला की उत्पीडऩ संबंधी शिकायत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों की तीन सदस्यीय एक समिति का गठन किया है। इस बीच एक वरिष्ठ वकील ने ये आरोप लगाए हैं कि शिकायतकत्र्ता के प्रतिनिधि के तौर पर आए एक व्यक्ति ने उन्हें ‘रिश्वत’ देने की कोशिश की। वकील, उत्सव बैंस ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस मामले को उठाने के लिए उसे पहले 50 लाख और फिर 1.5 करोड़ रुपए की पेशकश की गई लेकिन उसने ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि शिकायत में बहुत सी कमियां थीं। इन बातों की भी जांच होनी चाहिए। इस विवाद का एक प्रभाव यह पड़ा कि सुप्रीम कोर्ट के कई अन्य जजों ने यह निवेदन किया कि उनके  आवास पर महिला स्टाफ की बजाय पुरुष स्टाफ नियुक्त किया जाए। इसका काफी दूरगामी प्रभाव होगा। 

महिलाएं जनसंख्या का 50 प्रतिशत हैं और कार्य स्थलों पर उनकी संख्या बढ़ रही है। यदि अन्य क्षेत्रों में इस तरह की मांग की जाएगी तो इससे देशभर में महिला सशक्तिकरण को नुक्सान पहुंचेगा। स्पष्ट तौर पर इस मामले के समाधान के संबंध में काफी कुछ दाव पर है। हालांकि न्यायपालिका ने अपनी ही दवा का स्वाद चख लिया है, अब इसे कानून और उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।  ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि जस्टिस गोगोई के खिलाफ लगे आरोपों की त्वरित जांच की जाए और जो भी दोषी पाया जाए उसे कड़ी सजा दी जाए।-विपिन पब्बी
 

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