सिंगापुर से सबक लें भारतीय राजनीतिज्ञ

Edited By ,Updated: 17 Apr, 2019 04:55 AM

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देश का भविष्य तय करने वाला चुनाव अपने मूल मुद्दे से भटक गया है। मुद्दे बगल हो जाएं, इसी विधा से प्रचार की धूल उड़ रही है। देश पर कोई संकट आया तो एकता का मजबूती से दर्शन कराने वाले देश के राष्ट्रवाद का मतलब क्या? इसका डोज चुनाव के उपलक्ष्य में पचाना...

देश का भविष्य तय करने वाला चुनाव अपने मूल मुद्दे से भटक गया है। मुद्दे बगल हो जाएं, इसी विधा से प्रचार की धूल उड़ रही है। देश पर कोई संकट आया तो एकता का मजबूती से दर्शन कराने वाले देश के राष्ट्रवाद का मतलब क्या? इसका डोज चुनाव के उपलक्ष्य में पचाना पड़ रहा है। कांग्रेस का राष्ट्रवाद अलग और भाजपा का राष्ट्रवाद अलग है, यह केवल अपने देश में हो सकता है। अमरीका, यूरोप, सिंगापुर, मलेशिया, चीन, फ्रांस जैसे राष्ट्रों में ‘राष्ट्रवाद’ प्रचार का मुद्दा कभी नहीं हुआ। नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य, लोगों का जीवन स्तर ऊंचा करने के लिए लागू योजनाओं की सफलता-असफलता ही वहां प्रचार  के मुद्दे होते हैं और उस पर ही सरकार बनती और गिरती है। 

पिछले कई चुनावों से अपने यहां कोई भी बड़ा मुद्दा नहीं रहा। हमारे यहां चुनाव मतलब मल्लयुद्ध बन गया है। महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने शरद पवार की राजनीति खत्म करने की घोषणा की और इसके लिए वे पवार के बारामती में चार दिन तक ताल ठोंक कर बैठने वाले हैं। पाटिल को यह तत्काल करना चाहिए। लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन की राजनीति को पूर्ण विराम दे दिया गया है। शरद पवार के बारे में यह जिम्मेदारी चंद्रकांत पाटिल को सौंपी गई होगी तो उसका स्वागत है।

चुनाव व राजनीति का महत्वपूर्ण सूत्र ऐसा है कि यहां कोई कभी खत्म नहीं होता। चार वर्ष पहले रामदास अठावले की तुलना में प्रकाश आंबेडकर कुछ भी नहीं थे। आज आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी के कारण महाराष्ट्र  की राजनीति इकट्ठी हो गई है। चमकने वाली हर वस्तु सोना नहीं होती और कोने में पड़ा हुआ हर सामान बेकार नहीं होता। राजनीति का यह महत्वपूर्ण सूत्र है। 

इनको प्रशिक्षण दो
हिन्दुस्तान की राजनीतिक पार्टियों और उसके प्रमुखों को ‘यूनो’ से प्रशिक्षण लेना चाहिए या संसार के सभी चुनावों के लिए एक वैश्विक आचार संहिता बननी चाहिए। लोगों का मुद्दा जो घोषणापत्रों में दिखता है वह प्रचार में और क्रियान्वयन में दिखाई नहीं देता। चंद्रकांत पाटिल द्वारा जलगांव में दिया गया एक वक्तव्य मुझे महत्वपूर्ण लगता है। ‘प्रत्येक व्यक्ति को अमीर करेंगे’, ऐसा उन्होंने कहा। पाटिल कहते हैं कि शासन को जी.एस.टी. और इंकम टैक्स के माध्यम से बड़े पैमाने पर आय हो रही है। इसलिए मूलभूत सुविधाओं के कार्य बड़े पैमाने पर शुरू हैं। 2022 तक ये सभी कार्य पूर्ण हो जाएंगे। उसके बाद इस निधि से सरकार देश के हर नागरिक को अमीर बनाने के लिए पैसा खर्च करेगी।

श्री पाटिल महाराष्ट्र के मंत्री हैं लेकिन देश के हर व्यक्ति को अमीर बनाने की भूमिका उन्होंने ली है। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में पाटिल को लेना चाहिए और ‘गरीबी हटाओ’ मंत्रालय बनाकर उसकी जवाबदारी उनको सौंपनी चाहिए। पाटिल का विचार अच्छा है। सरकार की तिजोरी में जी.एस.टी. और इंकम टैक्स के माध्यम से जो पैसा जमा होता है, उससे देश की जनता की अमीरी बढ़ाई जाएगी तो यह अच्छा ही है। विश्व के अर्थशास्त्रियों को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए, ऐसी योजना महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री ने बनाई है। 

सिंगापुर का सबक
जनता को अमीर करना मतलब क्या? क्या सिंगापुर जैसे देश से हमारे शासकों को समझ लेना चाहिए। मार्च महीने में विश्व के समाचारपत्रों ने एक खबर छापी। ‘‘सरप्लस बजट के बाद सभी नागरिकों को बोनस देगा सिंगापुर।’’ सिंगापुर में 21 वर्ष पूर्ण करने वाले हर नागरिक को वहां की सरकार बोनस देने वाली है। नागरिकों को यह बोनस उनके कर और आय के अनुसार दिया जाएगा। सिंगापुर के वित्त मंत्री ने ‘सरप्लस बजट’ के कारण जनता के लिए यह घोषणा की। कोई उद्योग, व्यवसाय फायदे में आए तो कर्मचारियों को उस फायदे की एक निश्चित रकम ‘बोनस’ के रूप में दी जाती है। सिंगापुर की सरकार फायदे में चल रही है और देश मजबूत बनाने के लिए नागरिकों को अमीर करना है, ऐसा सरकार को लगता है। 

सिंगापुर छोटा देश है लेकिन जाति, धर्म, फालतू राजनीति का कीचड़ न उड़ाते हुए यह देश प्रगति की ओर अग्रसर हुआ। शासकों और नेताओं ने केवल देश का विचार किया और सिंगापुरी जनता ने देश को बनाने के लिए सतत् परिश्रम किया। इस कारण इस देश की अर्थव्यवस्था (सिंगापुर डॉलर्स) हमेशा मजबूत रही। हमारे रुपए की तरह वह हमेशा गिरा नहीं। सिंगापुर फायदे में चलने वाला देश है। इस फायदे का फल जनता को मिले, ऐसा सरकार का मत है। 700 मिलियन सिंगापुरी डॉलर्स की रकम सरकार को बोनस में देनी पड़ेगी और कम से कम 27 लाख सिंगापुरी नागरिकों को इस  बोनस का लाभ मिलेगा। 

सिंगापुर के बजट में (2017) 9.61 अरब डॉलर्स का फायदा (सरप्लस) दिखाया गया है। मुद्रांक शुल्क व अन्य करों के रूप में मिली यह रकम अपेक्षा से भी ज्यादा है। इसलिए जनता को अमीर करके मतलब बोनस देने के बाद भी जो पैसा बचेगा, उसमें से 5 अरब सिंगापुरी डॉलर्स सिंगापुर के नए प्रकल्पों पर खर्च होंगे। उसमें भी रेलवे प्रकल्पों पर विचार प्रमुखता से किया गया है। दो अरब डॉलर अनुदान पर और 
वरिष्ठ नागरिकों की सुविधाओं तथा दिव्यांगों पर खर्च किया जाएगा। उत्तम शासन और राजनीति के आदर्श का नमूना मतलब सिंगापुर। जनता को अमीर करने के लिए देश को अमीर बनाना पड़ता है। इसके लिए राज्य चलाने वालों के पास विचारों की अमीरी भी होनी चाहिए। हमारे देश में अमीरी केवल चुनाव में दिखती है। करोड़ों रुपए का खजाना इस दौरान बाहर निकलता है। यह कैसा लक्षण? 

अनाज वही!
हिन्दुस्तान के चुनाव में जो चर्चा शुरू है वह कश्मीर और पाकिस्तान की (जो 70 वर्षों से शुरू है), राममंदिर की और राष्ट्रवाद की, कश्मीर से धारा 370 हटाने की है। चक्की पर सभी खड़े हैं और उसी-उसी मुद्दे का आटा निकाल रहे हैं। ऐसे में देश कैसे अमीर होगा और जनता अमीर कैसे होगी? ‘गरीबी हटाओ’ का नारा सभी लगाते आ रहे हैं लेकिन सिंगापुर की तरह जनता को ‘बोनस’ देकर अमीर कब करोगे? महाराष्ट्र के एक मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने जनता को अमीर करने की घोषणा की, उनका स्वागत करें।-संजय राऊत
 

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