भारत में रक्तदान व अंगदान के प्रति उदासीनता

Edited By Pardeep,Updated: 15 Aug, 2018 04:21 AM

indifference towards donation and donation in india

132 करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश में हर साल लाखों मौतें समय पर रक्त या प्रत्यारोपण के लिए अंग न मिलने की वजह से होती हैं। हर साल देश में तकरीबन 1.5 लाख लोग विभिन्न दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग होते हैं, जिनके कई...

132 करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश में हर साल लाखों मौतें समय पर रक्त या प्रत्यारोपण के लिए अंग न मिलने की वजह से होती हैं। हर साल देश में तकरीबन 1.5 लाख लोग विभिन्न दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। इनमें बड़ी संख्या में ऐसे लोग होते हैं, जिनके कई अंग बिल्कुल ठीक काम कर रहे होते हैं और प्रत्यारोपित किए जा सकते हैं। 

बीमारी के अलावा भी जो मौतें हर साल होती हैं, उनमें से बड़ी संख्या में ऐसे लोग होते हैं जिनके कई अंग प्रत्यारोपण के लायक होते हैं, पर देश में मृत्यु के बाद अंगदान करने का आंकड़ा काफी कम है। पढ़े-लिखे लोगों में भी मृत्यु के बाद संबंधी के अंगदान करने के प्रति जबरदस्त हिचक देखी जाती है, तो फिर कम पढ़े-लिखे लोगों में तो अंगदान के प्रति जागरूकता और कम रहती है। 

अभी भारत में तकरीबन 80 लाख लोग कॉर्नियल अंधत्व से पीड़ित हैं यानी जिनकी आंखों की रोशनी कॉर्निया प्रत्यारोपण से वापस आ सकती है। हर साल हमारे देश में 1 करोड़ लोगों की किसी न किसी वजह से मृत्यु हो जाती है, जिनमें से लाखों की संख्या में ऐसे लोग भी होते हैं जिनकी आंखें मृत्यु के समय पूरी तरह से प्रत्यारोपण के काबिल होती हैं। नवीनतम तकनीक से एक कॉर्निया से एक से ज्यादा आंखों की रोशनी लाई जा सकती है, तो आंकड़ों के हिसाब से तो देश में कॉर्नियल ब्लाइंडनैस के केस हर साल कम होने चाहिएं, पर हकीकत में जागरूकता की कमी से यह आंकड़ा हर साल बढ़ता ही जा रहा है। 

इसी तरह हर साल भारत में तकरीबन 60000 लोगों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है जो जीवित इंसान के लिवर के हिस्से से भी पूरी हो सकती है, मगर असल में लिवर प्रत्यारोपण होते हैं सिर्फ  1500 के करीब। हर साल करीब 2 लाख लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, मगर होते हैं सिर्फ 5000। हर साल करीब 5000 लोगों को हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, मगर असल में हो पाते हैं सिर्फ 100 के करीब। 

अंग प्रत्यारोपण के लिए पूरे देश में अच्छी आधारभूत संरचनाओं वाले अस्पतालों की बेहद कमी है। सरकार की तरफ  से भी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोई उल्लेखनीय पहल नहीं हुई है। चूंकि एक व्यक्ति के ब्रेन-डैड होने पर और अंग प्रत्यारोपण के लिए मरीज के दूसरे अस्पताल या शहर में होने पर सिर्फ  4-5 घंटों के समय में अंग प्रत्यारोपित करना होता है, इसीलिए ऐसे वक्त के लिए ग्रीन कॉरिडोर-अर्थात सारा ट्रैफिक रोक कर अंग ले कर जाने वाली एम्बुलैंस को जगह देने का कानून बनाना अत्यावश्यक है। हर शहर में अच्छे अस्पतालों का सरकार द्वारा निरीक्षण करके उन्हें अंग-प्रत्यारोपण करने के लाइसैंस देने की प्रक्रिया सरल बनानी होगी। 

छोटी जगहों पर सरकारी अस्पतालों में जरूरत पडऩे पर अंग-प्रत्यारोपण के लिए जरूरी आधारभूत ढांचा तैयार करना होगा। गंभीर रूप से बीमार मरीज के परिजन अंगदान करने से इसलिए भी डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा संकल्प करने पर अस्पताल वाले मरीज को बचाने का पूरा प्रयास नहीं करेंगे। इसीलिए हर शहर में ऐसे स्वतंत्र विशेषज्ञ चाहिएं जो अस्पताल द्वारा सम्पर्क करने पर तुरंत पहुंचकर मरीज को समय पर ब्रेनडैड घोषित कर सकें। मृत व्यक्ति के अंगदान करने पर संबंधियों के राजी होने पर सरकार को उनके अस्पताल और मैडीकल बिल में छूट या पूरी राशि प्रोत्साहन के रूप में देने पर भी विचार करना होगा। 

कई देशों में अंग प्राप्तकत्र्ता ही अंगदान करने वाले का सारा चिकित्सा खर्च उठाता है। कई देशों में एक बार अंग शरीर से बाहर निकालने के बाद वह सार्वजनिक सम्पत्ति होती है और उस देश की सरकार की यह जिम्मेदारी होती है कि उसे प्राप्तकत्र्ता तक अविलम्ब पहुंचाया जाए। इसराईल, सिंगापुर और चिली जैसे कम जनसंख्या वाले देशों में अंग दानकत्र्ताओं की संख्या और भी कम है। पर वहां की सरकारों ने अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ नीतियां बनाई हैं। इसराईल की संसद ने 2008 में ‘अंग प्रत्यारोपण कानून’ पास किया है। इस कानून के तहत जीवित अंगदानकत्र्ता को 5 सालों तक वित्तीय सहायता का प्रावधान है। इससे मिलते-जुलते नियम सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, ईरान, कनाडा, न्यूजीलैंड, आयरलैंड और सऊदी अरब में भी हैं। 

इसराईल और सिंगापुर में अगर कोई नागरिक या उसके परिजन लिखित में मृत्यु के बाद अंगदान करने का संकल्प लेते हैं तभी वे जरूरत पडऩे पर अंगदान प्राप्त करने के लिए प्राथमिकता में होंगे। ऐसा नहीं करने पर अगर उन्हें कभी अंगदान की आवश्यकता होगी तो उनका नंबर सबसे आखिर में आएगा। इस नीति से भी इन देशों में अंगदान का प्रतिशत बढ़ा है। ईरान में एक सामाजिक संस्था डाटपा (डायलिसिस एंड ट्रांसप्लांट पेशैंट्स एसोसिएशन)देश के कानून के अंतर्गत कार्य करती है। यह संस्था उन लोगों के लिए दानकत्र्ता ढूंढती है जिन्हें कहीं से अंगदान मिलने की उम्मीद नहीं होती। ईरानी सरकार ऐसे लोगों को अंगदान करने वालों को 1200 डॉलर और एक साल के स्वास्थ्य बीमा का लाभ देती है। अंगदान प्राप्तकत्र्ता भी अपनी तरफ  से दानकत्र्ता को 2300 से 4500 डॉलर देता है। अगर प्राप्तकत्र्ता आॢथक रूप से अक्षम होता है तो चैरीटेबल संस्थाएं पूरी मदद करती हैं। 

हमारे देश में अंगदान के द्वारा जीवन बचाने की दिशा में बड़ी पहल करने के लिए प्रत्यारोपण हेतु मरीजों का रजिस्ट्रेशन और डाटाबेस तैयार करना होगा और सारे देश के प्रमुख अस्पतालों को आपस में एक नैटवर्क से जोडऩा होगा ताकि दानकत्र्ता और आपूर्तिकत्र्ता के बीच अविलंब सम्पर्क हो सके। जनजागृति अभियान के तहत केन्द्र और राज्य सरकारों को बड़े स्तर पर अंगदान और रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए प्रिंट और इलैक्ट्रॉनिक मीडिया पर मुहिम चलाकर आम जनता का ध्यान इस ओर खींचना होगा। युवा वर्ग सामाजिक सरोकारों से आसानी से जुड़ सकता है। उसे प्रोत्साहित करने के लिए खास युवाओं को इस मुहिम से जोडऩे की कोशिश भी होनी चाहिए। 

बड़े शहरों में भी कई बार यह देखने में आया है कि किसी की मृत्यु के बाद मृतक के परिजन उनकी देह अंगदान के लिए देना चाहते हैं मगर सुविधाओं के अभाव में अस्पतालों द्वारा देह लेने से इंकार किया गया है। बड़े अस्पतालों को हरदम तैयार रहना होगा ताकि जब भी कोई ब्रेनडैड मरीज का केस हो, तुरंत उनके अंग प्रत्यारोपित होने की तैयारी रहे। लोगों की यह धारणा भी दूर करनी होगी कि मृत व्यक्ति के अंग निकालना धर्म और प्रकृति के विरुद्ध है। उन्हें यह समझाना होगा कि अंगदान और रक्तदान से बड़ा मानवता पर उपकार और कोई नहीं है।-अमरीश सरकानगो

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