भारत-चीन तनाव एक विवादास्पद ‘युग’ की शुरुआत

Edited By ,Updated: 21 Jun, 2020 03:31 AM

indo china tension ushered in a controversial era

क्या भारत और चीन एक नए और विवादास्पद युग की शुरूआत कर रहे हैं? ऐसा ही लगता है। अध्याय एक में चीनी सैनिकों ने चुपके से भारतीय क्षेत्र में कुछ किलोमीटर की दूरी तय की तथा चुपके से गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगोंग त्सो में प्रमुख ङ्क्षबदुओं पर...

क्या भारत और चीन एक नए और विवादास्पद युग की शुरूआत कर रहे हैं? ऐसा ही लगता है। अध्याय एक में चीनी सैनिकों ने चुपके से भारतीय क्षेत्र में कुछ किलोमीटर की दूरी तय की तथा चुपके से गलवान घाटी, हॉट स्प्रिंग्स और पैंगोंग त्सो में प्रमुख ङ्क्षबदुओं पर कब्जा कर लिया। 5-6 मई को  हुई आमने-सामने की घुसपैठ को प्रकाश में लाया गया। 

अध्याय 2 में 15-16 जून की रात को चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों से भिड़ गए जिससे 20 भारतीय जवान शहीद और 80 घायल हो गए। 10 को कैदी बनाकर 18 जून को चीन ने रिहा कर दिया। भारत-चीन सीमा या वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) 1962 के युद्ध के बाद से उबल रही है, लेकिन 1975 के बाद यह पहला अवसर है जब भारतीय सैनिकों की जान चली गई। 45 साल तक शांति बनाए रखना कोई उपलब्धि नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की निगरानी में उस शांत शांति को तोड़ दिया गया। 

एक गलत कहानी
मोदी सरकार ने पिछले 6 वर्षों में जिस आत्मीयता से निर्माण किया था, वह बिल्कुल गलत था। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी चीन के पसंदीदा व्यक्ति थे जिसने 4 अवसरों पर उनकी मेजबानी की थी। किसी भी अन्य प्रधानमंत्री के विपरीत, दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों को रेखांकित करने के लिए मोदी 5 अवसरों पर चीन गए। मोदी और शी के बीच वुहान (2018) तथा महाबली पुरम (2019) में एक अच्छा तालमेल देखा गया है। यह सब झूठे आख्यान का हिस्सा थे। 15-16 जून को आखिरकार बुलबुला फूट गया। 

खूनी संघर्ष और जान-माल के नुक्सान के बाद भारत सुलगता रहा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक कमजोर बयान दिया जिसमें लिखा था,‘‘यथास्थिति को बदलने के प्रयास के चलते चीनी पक्ष का एक हिंसक चेहरा उजागर हुआ। सभी गतिविधियां वास्तविक रेखा के एक ओर थीं। चीनी हमला तेज और आक्रामक था। चीन से ऐसी ही उम्मीद की जाती थी।’’ पीपुल्ज लिब्रेशन आर्मी (पी.एल.ए.) ने कहा कि गलवान घाटी क्षेत्र की स्वायतत्ता हमेशा ही चीन से संबंध रखती है। चीन के विदेश मंत्री ने भारत के सभी भड़काऊ कार्यों को रोकने के लिए कहा और कहा कि क्षेत्रीय अखंडता को सुरक्षित रखने के लिए चीन को कम नहीं आंकना चाहिए। चीन अपनी क्षेत्रीय सद्भावना को बनाए रखना चाहता है। 

खुफिया विफलता
इस वर्ष के मई में चीन ने जिस तरह से कार्य किया उसके बारे में कई सिद्धांत हैं। महीनों से सावधानीपूर्वक घुसपैठ की योजना बनाई जा रही थी। यह अगस्त 2019 से चालू थी जब मोदी ने जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति को बदल दिया। सरकार ने या तो अनदेखा कर दिया या एकतरफा ध्यान दिया। चीन लद्दाख में एक बड़े क्षेत्र के कब्जे की फिराक में रहा है जिस पर वह सम्प्रभुता का दावा करता है। चीन गिलगित-बाल्टिस्तान के माध्यम से पाकिस्तान को जोडऩे के लिए बैल्ट एंड रोड का निर्माण कर रहा है जो लद्दाख का एक हिस्सा है। चीन ने एल.ए.सी. के भारतीय पक्ष पर डी.बी.ओ. सड़क से जुडऩे के लिए एक फीडर रोड बनाने पर भारत के साथ आपत्ति जताई थी। चीन ने गृह मंत्रालय के उस बयान पर भी ध्यान दिया कि अक्साईचिन भारत का हिस्सा होगा। 

यह एक सोच है कि भारत को चीन के इरादों पर संदेह नहीं था। यदि किसी को भारत की शालीनता के लिए दोषपूर्ण रूप से दोषी ठहराया जाना चाहिए तो यह हमारी बाहरी खुफिया एजैंसी के साथ-साथ रक्षा खुफिया एजैंसी भी है जिनके कदम लद्दाख में पड़ते हैं। यह कारगिल का ही एक तरह से दोहराव है जिस पर सैटेलाइट के माध्यम से चित्र और तस्वीरें अंतरिक्ष से मंगवाई जाती हैं। कारगिल और गलवान घाटी में यह अंतर है कि यह प्रतिकूल पाकिस्तान नहीं बल्कि एक सशक्त चीन है।

मोदी की त्रुटि
चीनी लोग डोकलाम सबक को गलवान घाटी में लागू कर रहे हैं और वह इसे पैंगोंग त्सो तथा फिगर 4 तथा फिगर 8 के बीच के क्षेत्र पर लागू करना चाहते हैं। गलवान घाटी के नुक्सान से बचने के लिए एक अवसर था। 6 जून को कोर कमांडरों के स्तर की वार्ता के तुरन्त बाद मोदी को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फोन पर बात करनी चाहिए थी। दोनों पक्षों को आम सहमति पर कार्य करना चाहिए था, शायद 15-16 जून की त्रासदी न हुई होती। मगर यह मोदी के लिए उनकी ओर से एक बहुत बड़ी त्रुटि थी। 

मोदी का सपना है कि 21वीं शताब्दी चीन-भारत नेतृत्व वाली एशियाई शताब्दी हो। यह स्पष्ट है कि मोदी ने शी का सही ढंग में आंकलन नहीं किया। यह अटकलों का विषय है। दोनों नेता फिर से करीबी दोस्त नहीं हो सकते। वह अभी भी व्यापार कर सकते हैं। एक-एक चरण के समझौतों पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। जिस तरह नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और डा. मनमोहन सिंह ने चीन में अपने समकक्षों के साथ किया था तथा एल.ए.सी. सहित 4056 किलोमीटर लम्बी सीमा पर शांति स्थापित की थी। 

यह स्पष्ट है कि अब और ज्यादा सम्मेलन तथा झूले नहीं झुलाए जाएंगे। मोदी के लिए संत थिरुवलुवर के कथन को याद करना होगा जिन्होंने 2000 वर्ष पूर्व कहा था, ‘‘भाग्य ताकत है, किसी एक की ताकत तथा प्रतिद्वंद्वियों की ताकत सहयोगी दलों की ताकत है इन सबको आंकते हुए अपनी कार्य प्रणाली का निर्णय करें। (कुराल 471)-पी. चिदम्बरम

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