नदियों को जोडऩे से ही ‘जल संकट’ से छुटकारा संभव

Edited By ,Updated: 31 May, 2016 01:52 AM

interlinking of rivers water crisis possible to get rid of

भारत विश्व में एक महान कृषि प्रधान देश है। इसमें आज भी 60 प्रतिशत खेती बारिश पर निर्भर करती है और शेष 40 प्रतिशत नहरों और ट्यूबवैलों के जरिए सींची जाती है।

(प्रो. दरबारी लाल): भारत विश्व में एक महान कृषि प्रधान देश है। इसमें आज भी 60 प्रतिशत खेती बारिश पर निर्भर करती है और शेष 40 प्रतिशत नहरों और ट्यूबवैलों के जरिए सींची जाती है। भारत में केवल 4 प्रतिशत जल उपलब्ध है जबकि विश्व की 18 प्रतिशत आबादी यहां रहती है, जबकि कनाडा और अमरीका में 65 प्रतिशत जल उपलब्ध है परन्तु दोनों देशों की आबादी भारत की आबादी का चौथा हिस्सा भी नहीं बनती। 

 
भारत के कई इलाकों में मूसलाधार बारिश होती है जिससे बाढ़ आ जाती है, जबकि दूसरे क्षेत्रों में लोगों को सूखे के संकट से गुजरना पड़ता है। भारत में 2014 में 15 प्रतिशत, 2015 में 12 प्रतिशत कम बारिश हुई और 2016 में भारत के 10 प्रदेशों के 252 जिले पानी की भारी कमी के कारण जल संकट से ग्रस्त हो गए। पीने का पानी तो दरकिनार रहा। पानी की भारी कमी के कारण खेत खलिहान भी उजड़ गए। लोगों को कई-कई मील पैदल चल कर पीने का पानी लाना पड़ रहा है। यद्यपि केन्द्र सरकार तथा प्रदेश की सरकारों ने संकटग्रस्त इलाकों में पानी पहुंचाने की पूरी कोशिश की परन्तु  इतने बड़े संकट से निपटना कोई आसान काम नहीं है। 
 
हकीकत में 1947 से पहले भारत में 24 लाख तालाब थे जो छप्पड़ों, तालाबों, तलइयों, पोखरों और बावडिय़ों के नाम से जाने जाते थे। देश के हर गांव में एक से लेकर तीन, परन्तु कइयों में इससे भी ज्यादा तालाब थे जिनका लोग मवेशियों एवं कृषि के अतिरिक्त अपनी निजी आवश्यकताओं के लिए भी इस्तेमाल करते थे। परन्तु विकास की अंधाधुंध दौड़ ने इन तालाबों के आसपास की जमीन ही नहीं बल्कि इन्हीं पर कब्जे करके इमारतों का निर्माण करना शुरू कर दिया और प्राकृतिक जल स्रोतों को करीब-करीब खत्म कर दिया। 
 
वास्तव में लोगों ने स्वयं ही अपने भविष्य को अंधकारमय बना दिया। 2000-2001 में इन तालाबों की संख्या केवल साढ़े 5 लाख रह गई। इससे स्पष्ट है कि 53 वर्षों में हमने 20 लाख तालाबों का नामो-निशान मिटा दिया। 
 
पानी के इस गहरे संकट से सबसे अधिक देश का अन्नदाता प्रभावित होता है। समय पर बारिश न होने से कई किसान आत्महत्या कर लेते हैं और कई किसान कर्जे के बोझ तले दबकर खुदकुशी कर लेते हैं। भारत में यह सबसे बड़ी त्रासदी है कि जो किसान कड़कती धूप में कठिन परिश्रम करके देश के अन्न भंडारण को भरता है उसे ही अक्सर गॢदश के दौर से गुजरना पड़ता है। भारत में पानी की कमी नहीं है क्योंकि देश की सभी बड़ी नदियां 12 महीने पानी से भरपूर रहती हैं। 
 
यदि नदियों के फालतू पानी को पानी की कमी वाले इलाकों में मुहैया करवा दिया जाए तो भारत में पानी के संकट की समस्या काफी हद तक हल की जा सकती है। 
 
भारत में नदियों को जोडऩे का सुझाव ब्रिटिश शासनकाल में मद्रास प्रैजीडैंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर क्राटोन ने 1919 में रखा था। 1947 में भारत आजाद हो गया और प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के समय 1960 में गंगा और कावेरी को जोडऩे का प्रस्ताव के.एल. राव ने रखा था परन्तु फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 1982 में इंदिरा गांधी ने पानी के संकट की समस्या को दूर करने के लिए नैशनल वाटर डिवैल्पमैंट एजैंसी का गठन किया परन्तु इसे व्यावहारिक रूप प्रदान करने की बजाय लम्बे विचार-विमर्श के पश्चात समाप्त कर दिया गया।  इसके पश्चात 2002 में भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका ने केन्द्र सरकार को इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए कहा और यह भी निर्देश दिया कि सरकार 2003 में इस योजना की रूपरेखा तैयार कर ले और 2016 तक इसे पूरा कर दिया जाए। 
 
नदियों को जोडऩे की योजना की महत्ता को समझते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्तमान रेल मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टॉस्क फोर्स का गठन किया और इस परियोजना को पूरा करने के लिए 5 लाख 60 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान लगाया गया। सन् 2016 भी आ चुका है परन्तु मसला वहीं का वहीं खड़ा है। यही भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी विडम्बना है। जिन मसलों को शीघ्रतापूर्वक हल करने की आवश्यकता है उन्हें जानबूझ कर लटकाया जाता है पर किसी समस्या को लटकाना उसका समाधान नहीं होता। 
 
उदाहरण के तौर पर स्वतंत्रता के 69 वर्षों के पश्चात भी नदियों को जोडऩे की एक अति लाभदायक परियोजना को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। दक्षिणी भारत में केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पिछले कई वर्षों से जल विवाद एक समस्या बना हुआ है। 1966 में पंजाब, हरियाणा और हिमाचल के बंटवारे के पश्चात सतलुज-यमुना लिंक नहर के विवाद कारण पंजाब को भयानक आतंकवाद का सामना करना पड़ा। यदि समय की सरकारें समस्या के पैदा होते ही उसका समाधान ढूंढने की कोशिश करतीं तो न तो केन्द्र और प्रदेशों का झगड़ा पड़ता और न ही 2 या 3 प्रदेशों में विवाद खड़े होते। 
 
दूसरे देशों ने अपनी जहाजरानी की समस्याओं को दूर करने के लिए तथा अन्य आवश्यकताओं को पूूरा करने के लिए बड़े कारगर कदम उठाए। विश्व के कई देशों ने जल संकट को हल करने के लिए सकारात्मक एवं सृजनात्मक कदम उठाए हैं। चीन ने भी ब्रह्मपुत्र से नहरें निकाल कर अपनी आवश्यकता को पूरा किया है और लीबिया ने तो कई मील तक जमीन के अंदर नहर का निर्माण किया है। यदि दूसरे देश इन बड़ी परियोजनाओं का निर्माण कर सकते हैं तो भारत जल संकट को दूर करने के लिए नदियों को आपस में क्यों नहीं जोड़ सकता? 
 

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