शिअद के लिए घातक होगी अंदरूनी खींचातानी

Edited By ,Updated: 23 Mar, 2021 03:56 AM

internal tussle will be fatal for sad

अपने राजनीतिक जीवन के 100 साल पूरे कर चुके शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का कुर्बानियों भरा एक विलक्ष्ण इतिहास है। इसके लम्बे राजनीतिक सफर में इसने कई रंग देखे हैं। ऐसे ही समुद्री जवारभाटे ...

अपने राजनीतिक जीवन के 100 साल पूरे कर चुके शिरोमणि अकाली दल (शिअद) का कुर्बानियों भरा एक विलक्ष्ण इतिहास है। इसके लम्बे राजनीतिक सफर में इसने कई रंग देखे हैं। ऐसे ही समुद्री जवारभाटे की तरह उतार-चढ़ाव भी देखे गए।

उल्लेखनीय है कि यह महान राजनीतिक दल अक्सर धड़ेबाजी का शिकार रहा है जिसका बड़ा लाभ भारतीय राजनीतिक पार्टियों ने अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए खूब उठाया है। शिरोमणि अकाली दल आज कई छोटे-छोटे दलों में बंट गया है। पंजाब की वर्तमान राजनीति पर मजबूत पकड़ बनाने की स्थिति में शिरोमणि अकाली दल नहीं है। 

शिरोमणि अकाली दल सरदार प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में भाजपा के साथ राजनीतिक गठबंधन के द्वारा 1997 से 2017 तक (2002-2007 को छोड़ कर) पंजाब की सत्ता पर काबिज रहा है। अपने एकाधिकार और परिवारवाद नेतृत्व होने के कारण यह एकजुट नहीं रहा, यह इस राजनीतिक पार्टी और पंजाब की बदकिस्मती है। 2008 में पार्टी के अध्यक्ष बने सुखबीर सिंह बादल दल को एकजुट रखने में बुरी तरह से नाकाम रहे हैं। 

2017 के विधानसभा चुनावों में इसकी बुरी हार के बाद ये पार्टी 3 गुटों में बंट गई। ये गुट शिरोमणि अकाली दल (बादल), शिरोमणि अकाली दल (ब्रह्मपुरा) तथा शिरोमणि अकाली दल (डैमोक्रेटिक) हैं। पंजाब के भीतर वही शिरोमणि अकाली दल ताकतवर और अग्रणी माना जाता है जो इसके धार्मिक विंग शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर काबिज हो। पिछले लम्बे समय से शिरोमणि अकाली दल (बादल) इस कमेटी पर भारी तथा काबिज है। ये कमेटी भारत के अंदर एक स्वायत्त इकाई के तौर पर कार्य करती है जिसके सदस्य प्रत्येक पांच साल बाद सिख वोटों से चुने जाते हैं। ये अलग बात है कि इसके चुनाव कई-कई साल नहीं हुए। इसलिए चुनाव के समय काबिज गुट इसका प्रबंधन चलाता है।

प्रत्येक वर्ष इसका अध्यक्ष तथा अंतरिम कमेटी उसकी मर्जी से चुने जाते हैं। इसका बड़ा सालाना बजट भी उन्हीं के द्वारा पास किया तथा खर्चा जाता है। 2017 के विधानसभा चुनावों में शिरोमणि अकाली दल (बादल) की हार अंदरूनी खींचातानी और धड़ेबंदी का नतीजा थी। 2015 में श्री गुरु ग्रंथ साहब की बेअदबी के रोषस्वरूप सिख संगतों में पैदा हुए गुस्से ने कई महीनों तक सत्ताधारी अकाली दल के नेतृत्व को घरों से बाहर निकलने नहीं दिया। 

शांतमयी ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस की ओर से की गई गोलीबारी तथा लाठीचार्ज के नतीजे में 2 युवक मारे गए और कई अन्य घायल हो गए। बेअदबी और गोलीबारी कांड के दोषियों का पकड़ा न जाना प्रशासनिक और पार्टी का अंदरूनी कुप्रबंधन 2 बड़े कारण हैं जो शिरोमणि अकाली दल (बादल) की चुनावों में हार के बावजूद इसका पीछा नहीं छोड़ रहे। शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की ओर से पार्टी की हार की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफे की पेशकश न करने और न ही हार के कारणों के लिए पार्टी के अंदर मंथन करने की बात को लेकर निराश नेताओं ने 2 अलग-अलग दल गठित कर लिए। ऐसे नेताओं में प्रकाश सिंह बादल के बेहद करीबी तथा प्रमुख राजनेता शामिल थे।

सरदार सुखदेव सिंह ढींडसा का बेटा परमिंद्र सिंह ढींडसा शिरोमणि कमेटी के कुछ सदस्यों को तोडऩे में सफल रहा। जहां एक ओर सरदार ढींडसा और सरदार ब्रह्मपुरा वाले अकाली गुटों ने 2022 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखा हुआ है, वहीं अन्य राजनीतिक पार्टियों से गठजोड़ करने की राजनीति रणनीति भी बनाई जा रही है। उनका बड़ा और प्रमुख निशाना शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को अकाली दल बादल के एकाधिकार की पकड़ से मुक्त करवाना भी है। 

इन राजनीतिक तथा धार्मिक परिस्थितियों के अलावा आज शिरोमणि अकाली दल (बादल) के लिए सबसे बड़ी चुनौती पार्टी की अंदरूनी खींचातानी भी है। ये खींचातानी 2022 के विधानसभा चुनावों के अंतर्गत चल रही है। शिरोमणि अकाली दल (बादल), इसके यूथ तथा जत्थेबंदी विंग में नौजवान नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के तेजी से बढ़ रहे प्रभाव के कारण पार्टी के अंदर कुछ पुराने नेताओं में असहनशीलता पैदा हो गई है। 

अकाली दल बादल न तो बिखरता और न ही आपसी खींचातानी का शिकार होता यदि प्रकाश सिंह बादल पुत्र मोह से ऊपर उठ कर पुराने नेताओं को अपने में समेटने के लिए कोई राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखाते। यदि सुखबीर सिंह बादल दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाते तो पार्टी में अंदरूनी खींचातानी न होती। स. बिक्रम सिंह मजीठिया भ्रष्ट और मौकापरस्त लोगों के साथ सख्ती से पेश आते और ऐसे लोगों को पार्टी के निकट न आने देते। 

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध पंजाबियों ने किसानों का समर्थन किया है और पंजाब के लोगों को राजनीतिक तौर पर जागरूक भी किया है। यदि अकाली दल (बादल) संबंधित नेताओं ने पार्टी के अंदर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अनदेखी की तो ऐसा व्यवहार पार्टी के भीतर और बगावत पैदा करेगा जिसके नतीजे में इसके हाथों से भविष्य में शिरोमणि कमेटी भी निकल जाएगी और 2022 के विधानसभा चुनावों में उसे हार का मुंह देखना पड़ेगा।-दरबारा सिंह काहलों
 

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