युवाओं में फैशन ट्रैंड बन रहा नशा

Edited By ,Updated: 05 Jul, 2022 06:02 AM

intoxication is becoming a fashion trend among the youth

नशा वह खतरा है जिसके आगे जिंदगी घुटने टेक रही है। यह दरअसल ऐसी लत है जो आहिस्ता-आहिस्ता पहले नसों में उतर कर इंसान को अपनी गिरफ्त में लेती है और फिर उसे पूरी तरह तबाह कर

नशा वह खतरा है जिसके आगे जिंदगी घुटने टेक रही है। यह दरअसल ऐसी लत है जो आहिस्ता-आहिस्ता पहले नसों में उतर कर इंसान को अपनी गिरफ्त में लेती है और फिर उसे पूरी तरह तबाह कर देती है। समाज में पनप रहे विभिन्न अपराधों का एक महत्वपूर्ण कारण नशा है।

वास्तव में नशा वह भयावह स्थिति है जिसका भविष्य मृत्यु ही है। नशा केवल एक व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि पूरे परिवार और उससे भी आगे जाकर पूरे समाज को बर्बाद करता है। कुछ लोग लूट-मार जैसी वारदातें केवल इसीलिए अंजाम देते हैं ताकि वे नशीले पदार्थों की अपनी जरूरतें पूरी कर सकें, खासकर वे युवा, जो बेरोजगार हैं या जिनकी आमदनी कम है। पहले वे अपने घर से ही छोटी-मोटी चोरी या हेराफेरी की शुरूआत करते हैं और जब यह आगे नहीं चल पाती तो बाहर लूट-मार का रूप ले लेती है। 

देश का युवा वर्ग इस दलदल में और अधिक न फंसने पाए, इसके लिए सबसे जरूरी है कि नशों की तस्करी पर प्रभावी रोक लगाई जाए, उनकी आपूॢत के सारे रास्ते बंद कर दिए जाएं। यह काम मुश्किल जरूर है, लेकिन नामुमकिन कतई नहीं। हमें यह देखना होगा कि वे कौन-कौन से रास्ते हैं, जहां से नशीले पदार्थ हमारे देश में आते हैं। साथ ही, उन जगहों पर भी नजर रखनी होगी, जहां से ये पदार्थ लोगों तक पहुंचते हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में ऐसी कई जगहें हैं, जहां जाहिर तौर पर कुछ और कारोबार होता है, लेकिन पर्दे के पीछे नशीले पदार्थों की आपूर्ति भी की जाती है। नशे की तस्करी में भ्रष्ट पुलिसकर्मियों की संलिप्तता रोकने की जिम्मेदारी भी पुलिस के आला अफसरों को ही उठानी होगी। 

हाल ही में 2 पुलिसकर्मी पंजाब के कपूरथला में हैरोइन के साथ पकड़े गए। जब खुद पुलिसकर्मी नशीले पदार्थों के साथ पकड़े जा रहे हैं तो यह कैसे सोचा जा सकता है कि वे इन चीजों की तस्करी करने वालों को संरक्षण नहीं देते होंगे? सीमा पार कराने से लेकर विभिन्न इलाकों में ऐसी चीजों को बिकवाने तक में कुछ पुलिसकर्मियों की भूमिका होती है। नशीले पदार्थों की तस्करी या उनकी बिक्री में किसी भी तरह से सहयोग करने वाले पुलिसकर्मियों को किसी भी कीमत पर छोड़ा नहीं जाना चाहिए। 

हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी लंबे समय तक केवल सामाजिक दबाव के कारण गलत कार्यों से बची रही है। नशाखोरी रोकने के लिए भी नए सिरे से पहले जैसे सामाजिक दबाव का प्रयोग किया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं कि हम नशाखोरी में फंस चुके युवाओं का सामाजिक बहिष्कार करें। ऐसी स्थिति में वे और अधिक अकेले पड़ जाएंगे। होना तो यह चाहिए कि उनसे सामान्य व्यवहार करते हुए हम उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि नशा किस तरह तुम्हारे जीवन का नाश कर रहा है। यह कैसे तुमसे तुम्हारे धन और सम्मान के साथ-साथ सुख-शांति भी छीन रहा है। सच तो यह है कि समझा-बुझाकर किसी को भी गलत रास्ते पर जाने से रोका जा सकता है। 

असल में नशा अपने शिकार हो चुके लोगों से उनका आत्मविश्वास छीन लेता है। वे सामान्य जीवन में सक्रिय हो सकें, इसके लिए जरूरी है कि उनका आत्मविश्वास जगाया जाए। शासन-प्रशासन की भूमिका तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन समाज के गण्यमान्य लोगों और बड़े-बुजुर्गों को भी यह दायित्व उठाना चाहिए। भारत को एक युवा देश कहा जाता है और युवाओं के दम पर देश को विश्व गुरु बनाने की हुंकार भरी जाती है, लेकिन वे युवा राष्ट्र निर्माण की बजाय नशे के साम्राज्य का निर्माण कर रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में युवा देश को ‘विश्व गुरु’ कैसे बनाएगा? 

युवाओं में नशा एक फैशन की तरह हो गया है। युवा अपनी एक अलग दुनिया बनाने, अपनी मस्ती में चूर रहने के लिए नशे में ही अपनी अनुमानिक जिंदगी खोजता है। लेकिन ऩशे से जिन्दगी नहीं, अंधकार देखने को मिलता है, यह स्पष्ट है। ‘लेकिन नशे की एक विशेष बात यह है कि नशा युवाओं को कभी बुढ़ापा नहीं दिखाता, यानी वह युवावस्था में ही नशे का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठता है’! मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे बदलती जीवनशैली, परिवार का दबाव, पारिवारिक झगड़़े, इंटरनैट का अत्यधिक इस्तेमाल, एकाकी जीवन, परिवार से दूर रहने जैसे अनेक कारण हो सकते हैं। 

आजादी के बाद देश में शराब की खपत 60 से 80 गुना बढ़ी है। यह सच है कि शराब की बिक्री से सरकार को एक बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है, मगर इस प्रकार की आय से हमारा सामाजिक ढांचा क्षत-विक्षत हो रहा है और परिवार के परिवार खत्म होते जा रहे हैं। हम विनाश की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में शराबबंदी के लिए कई बार आंदोलन हुआ, मगर सामाजिक, राजनीतिक चेतना के अभाव में इसे सफलता नहीं मिली।

यहां तक कि राजस्थान में एक पूर्व विधायक को शराबबंदी आंदोलन में लम्बे अनशन के बाद अपनी जान तक गंवानी पड़ी। सबसे पहले सरकार को राजस्व प्राप्ति का यह मोह त्यागना होगा, तभी समाज और देश मजबूत होगा और हम इस आसुरी प्रवृत्ति से दूर होंगे। युवाओं को अगर नशा करना ही है तो पढ़ाई का करें, देशभक्ति का करें, समाज सेवा का नशा करें, माता-पिता की सेवा का नशा करें, गरीबों की सहायता का नशा करें, रक्त दान का नशा करें।-प्रो. मनोज डोगरा
 

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