लाडेन परिवार पर ईरान ने की थी अमरीका से सौदेबाजी की कोशिश

Edited By ,Updated: 18 May, 2017 11:51 PM

iran has tried to negotiate with america on the bin laden family

सितम्बर 2001 के प्रारम्भिक दिनों में ओसामा बिन लाडेन का परिवार....

सितम्बर 2001 के प्रारम्भिक दिनों में ओसामा बिन लाडेन का परिवार, इस आतंकी नेता के अफगानिस्तान स्थित बड़े-बड़े घरों में से एक में शांत-सा जीवन बिताता था। उसके बेटे निन्टैंडो गेम खेलते थे और उसकी चारों पत्नियां रेडियो पर मैडोना के गीत सुनती थीं एवं पश्चिमी पकवान तैयार करती थीं। लेकिन 10 सितम्बर की रात उन्हें वहां से प्रस्थान करने का आदेश मिला और वे सभी कंधार से जलालाबाद की 3 दिन की यात्रा पर निकल पड़े, जबकि उसी समय एक कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा था जिसके बारे में वे केवल इतना ही जानते थे कि इसका नाम ‘प्लेन आप्रेशन’ है। 

अगले 9 वर्षों तक लाडेन की 3 पत्नियां और उनके बच्चे मध्य पूर्व के देशों में एक जगह से दूसरी जगह भागते-फिरते रहे क्योंकि उनके आसपास की दुनिया हमेशा के लिए बदल चुकी थी। बेशक प्रारम्भ में वे नहीं जानते थे कि उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन आखिरकार वे ईरान के एक हवालाती शिविर में पहुंच गए। लाडेन परिवार की इस यात्रा को दस्तावेजी रूप में एक नई पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। इस पुस्तक में बताया गया है कि अमरीका पर 9/11 के हमले से पहले ही लाडेन की पहली पत्नी नजवा सऊदी अरब चली गई थी क्योंकि उसके लिए लाडेन की कठोर धार्मिक मर्यादाओं में बंधी जिंदगी जीना मुश्किल हो गया था। उल्लेखनीय है कि उसके जाने से पहले उसका बेटा उमर अपने पिता की जेहादी विचारधारा से नाराज होकर घर से भाग गया था। 

दोनों मां-बेटा ऐसा करके भाग्यशाली ही सिद्ध हुए। उनके चले जाने के बाद लाडेन की शेष पत्नियों और संतानों को जलालाबाद में अलकायदा के प्रशिक्षण शिविर की बैरकों में जबरदस्ती ले जाया गया। उन्हें अन्य लोगों से अलग-थलग रखने के लिए दीवारों पर गलीचे लटका दिए गए और उसके साथ ही उन्हें पुराने गद्दों में कपड़े ठूंसकर उन्हीं को अपना बिस्तर बनाना पड़ा। उन्हें ग्रेनेडों के ढेर और राइफलों के बीच ही सोना पड़ता था। लाडेन की तीनों ही पत्नियों खैरियाह, सेहम और अमाल को यह आदेश मिला हुआ था कि यदि परिवार पर कोई हमला हो तो वे आत्मघाती बनियान प्रयुक्त करके शहीद हो जाएं। 

नवम्बर 2001 में जब लाडेन अपने परिवार को मिलने आया तो उन्हें लगा कि अब उन्हें कुछ राहत मिलेगी लेकिन उनकी उम्मीदें मृगतृष्णा ही सिद्ध हुईं, क्योंकि लाडेन तो उन्हें केवल यह बताने आया था कि वे शीघ्र पाकिस्तान चले जाएं क्योंकि अमरीका उनके बहुत करीब पहुंचता जा रहा है। लेकिन पाकिस्तान में भी परिवार सुरक्षित नहीं था और इसलिए उन्हें एक बार फिर कठिन यात्रा पर निकलना पड़ा। अब की बार यह यात्रा लाडेन के कट्टर दुश्मन ईरान की ओर थी। इन लोगों को उम्मीद थी कि वहां की शिया सरकार उन्हें अमरीका के हवाले करने से इन्कार कर देगी। लेकिन यह जोखिम भरा दाव उन पर ही उलटा पड़ा क्योंकि तेहरान शासन ने 2002 में उनके संबंध में बुश प्रशासन से सौदेबाजी का प्रयास किया था।

तेहरान चाहता था कि लाडेन परिवार पर प्रतिबंधों में कमी की जाए और उन्हें कूटनीतिक मान्यता प्रदान की जाए लेकिन बुश प्रशासन ने यह मांग ठुकरा दी थी। ईरान को लाडेन परिवार के साथ कोई विशेष हमदर्दी नहीं थी क्योंकि वह सुन्नी आतंकवादियों से संबंधित था लेकिन साथ ही ईरान उनकी कीमत भी समझता था इसलिए उनकी रिहाई नहीं करना चाहता था। अगले 8 वर्षों तक लाडेन की पत्नियां और बच्चे तेहरान की हिरासत में ही सड़ते रहे। यहां तक कि अन्य परिजनों को भी उनका कोई अता-पता नहीं था और उन्होंने यही मान लिया था कि वे मर चुके हैं। 

चूंकि हिरासती शिविर में इस परिवार की उपस्थिति अन्य कैदियों में बेचैनी पैदा करती थी और कई बार दंगा हो जाता था इसलिए उन्हें थोड़े-थोड़े अर्से बाद एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था। उन्हें प्रसन्न रखने के लिए ईरान गार्ड उन्हें यदा-कदा शानदार भोजन करवाते थे और आइसक्रीम उपलब्ध करवाया करते थे। बीच-बीच में उन्हें तेहरान के विश्व प्रसिद्ध स्थलों पर भ्रमण के लिए भी ले जाया जाता था और अमरीकन पर्यटकों के साथ घुलने-मिलने दिया जाता था। जब कभी भी उन्हें स्थानीय तरणतालों में ले जाया जाता था तो वे कूटनयिकों के लिए  आरक्षित  लेन से सटी हुई लेन  में ही तैरते थे। 

ओसामा का एक बेटा साअद अपने पिता को पाकिस्तान में ढूंढ निकालने की कसम खाकर शिविर से भाग निकलने में सफल हो गया। वास्तव में वह अपने परिवार को ईरान के चंगुल से बचाना चाहता था लेकिन 2009 के ड्रोन हमले में वह भी मारा गया था। भाई की मौत से विचलित हुए बिना लाडेन की बेटी इमान ने एक बार फिर ईरान से भाग निकलने की योजना बनाई और उसने इसे 2009 में तब अंजाम दिया जब उसे शापिंग के लिए जाने का मौका मिला। उसने फटाफट अपने कपड़े बदले और एक खिलौना गुडिय़ा को गोदी में लेकर भाग कर सऊदी अरब के दूतावास में पहुंच गई। 

वहां जाकर उसने परिवार के अन्य सदस्यों से सम्पर्क साधा जिन्होंने आखिरकार तेहरान की हिरासत में से परिवार को छुड़ाने के लिए सौदेबाजी की। सीरिया में रह रही अपनी मां नजवा के पास जाने की अनुमति मिलने से पूर्व इमान को 100 दिन तक सऊदी दूतावास में रहना पड़ा। ओसामा की अन्य सभी पत्नियां पाकिस्तान चली गईं जहां  ओसामा एक परिसर में छिपा हुआ था और वहीं 2011 में अमरीकी हमले में मारा गया। यह माना जाता है कि खैरियाह, सेहम और अमाल अमरीकी हमले के समय लाडेन के साथ थीं और जब अमरीकी नौसेना के सील्ज कमांडो ने फायर खोला तो अमाल लाडेन के बचाव के लिए आगे आ गई थी। 

इस हमले में अमाल का बेटा खालिद भी मारा गया था। जब विशेष बलों ने उर्दू में उसका नाम लेकर आवाज लगाई तो खालिद ने सीढिय़ों में से गर्दन निकालकर यह देखने की कोशिश की कि क्या हो रहा है तभी कमांडो की गोली उसके सिर में से आर-पार हो गई। खैरियाह की कोख से पैदा हुआ लाडेन का इकलौता बेटा ही इस हमले में जिंदा बचा था और अब वह अलकायदा प्रमुख के रूप में अपने पिता की विरासत पर दावेदारी जता रहा है। इस वर्ष के प्रारम्भ में अमरीका ने उसे ‘ग्लोबल आतंकी’ घोषित किया था।  

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