ईरान ने ‘दुबई’ को कभी भी निशाना बनाने का नहीं सोचा

Edited By ,Updated: 11 Jan, 2020 05:26 AM

iran never thought to target  dubai

ईरान के साथ चल रहे संघर्ष का असर नवम्बर में अमरीकी चुनावों  के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर पड़ेगा, यह कहना है कि यू.ए.ई. तथा ईरान में पूर्व भारतीय राजदूत के.सी. सिंह का। उन्होंने कहा कि यह जल्दबाजी होगी कि ईरान के सर्वोच्च नेता का गुस्सा तथा...

 ईरान के साथ चल रहे संघर्ष का असर नवम्बर में अमरीकी चुनावों  के दौरान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर पड़ेगा, यह कहना है कि यू.ए.ई. तथा ईरान में पूर्व भारतीय राजदूत के.सी. सिंह का। उन्होंने कहा कि यह जल्दबाजी होगी कि ईरान के सर्वोच्च नेता का गुस्सा तथा व्यवहार क्या कहता है। वह चुप बैठ कर नहीं रह सकते और इस आशा में हैं कि दूसरे देश इस पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देते हैं। हालांकि ईरान ने अमरीका पर पलटवार किया है। 

यह बड़ी दिलचस्प बात है कि ईरान ने 3 बेस को ही चुना। इनमें से एक ऐसा बेस है जो अलग-थलग पड़ा है। इसके साथ-साथ यह जनसंख्या वाले क्षेत्र से भी दूर है। यहां पर ज्यादा अमरीकी भी नहीं हैं। यह सब पाकिस्तान द्वारा बालाकोट के काऊंटर अटैक जैसा है जहां पर उन्होंने ब्रिगेड हैडक्वार्टर पर हमला किया मगर वास्तव में ब्रिगेड हैडक्वार्टर हिट नहीं हुआ। इसलिए ईरानी ऐसी कार्रवाइयां एक संकेत के रूप में कर रहे हैं। मगर ईरान ने यह यकीनी बनाया है कि वह ऐसे क्षेत्र को निशाना नहीं बना रहा जहां पर अमरीकियों की गिनती ज्यादा है। वह जानता है कि ऐसा करने से क्षेत्र में तनाव बढ़ जाएगा। 

हालांकि ईरान ने बयान जारी कर कहा कि यदि आप हम पर हमला करोगे तब हम हाइफा तथा दुबई पर आक्रमण करेंगे। युद्ध का एक नया स्तर होगा क्योंकि इससे पहले ईरान ने दुबई को निशाना बनाने का जिक्र नहीं किया। सिंह का मानना है कि ट्रम्प का शुरूआती व्यवहार जांच लिया गया है क्योंकि वह इस तनाव को बढ़ाना नहीं चाहते। 

जापान, चीन तथा रूस संयम रखने का सुझाव देंगे
कुछ दिन पूर्व ट्रम्प ने कहा था कि उनके लिए ईरान के 52 टार्गेट हैं। उनके इस ट्वीट का वित्तीय बाजार पर असर पडऩे वाला था। वहीं भारत तथा यूरोपियन यूनियन को लेकर पूर्व राजदूत का मानना है कि भारत की भूमिका सीमित है। हालांकि जापान, रूस तथा चीन जैसे पी-5 देश न्यूयार्क में इस पर चर्चा करेंगे। वे संयम बरतने का सुझाव देंगे। वे कहेंगे कि आपने वह कर दिया जो करना था। ईरान बदले में चोट नहीं देगा क्योंकि पाला अमरीकी खेमे में है। 

वहीं अमरीका में डैमोक्रेट्स इस सारे घटनाक्रम की आलोचना कर रहे हैं। वे यह पक्ष नहीं रख रहे कि तत्काल रूप से अमरीकी सम्पत्ति को किसी भी प्रकार का खतरा है। दूसरी तरफ ट्रम्प के खिलाफ महाभियोग भी है और नवम्बर माह में चुनाव भी होने हैं। यदि ट्रम्प चुनावों को देखते हुए यह तनाव बढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए अभी समय है। यकीनी तौर पर ईरानी अमरीकी राष्ट्रपति को महंगे पड़ सकते हैं और चुनावों में ट्रम्प को इसका फायदा नहीं मिलेगा। इसलिए वर्तमान में महाभियोग ही है जिसकी तरफ हम देख सकते हैं और इस पर कुछ भी घटने वाला नहीं। यदि इस युद्ध को और तीव्र कर दिया जाता है तो ट्रम्प के लिए घाटे का सौदा हो सकता है। भारत में भी चुनावों से एक माह पूर्व बालाकोट की घटना घटी थी। हालांकि यदि आपके पास 7 से 8 माह का समय है तो ऐसी किसी प्रकार की तनाव में वृद्धि ट्रम्प के खिलाफ कार्य कर सकती है क्योंकि सिंह का मानना है कि जहां तक अमरीकी जनता का सवाल है, वह एक अन्य युद्ध नहीं चाहती। 

घर में इसराईल के राष्ट्रपति नेतन्याहू दबाव में
शीर्ष कमांडर कासिम सुलेमानी मारा जा चुका है। ईरान में उसके आदेशों को मानने वाले अब स्वतंत्र रूप से चोट कर सकते हैं। हिजबुल्ला भी इसराईल के खिलाफ स्वतंत्र रूप से कार्रवाई कर सकता है। घर में इसराईल के राष्ट्रपति नेतन्याहू दबाव में हैं। वह तीसरे चुनाव का सामना कर रहे हैं, इसलिए वह कोई भी तनाव झेलना नहीं चाहते। भारत के अलावा जापान, चीन का इसमें ऊर्जा हित या यूं कहें कि व्यापारिक हित भी हो सकता है। भारत को अपने 60 लाख से अधिक लोगों की ओर भी देखना होगा जो खाड़ी में रह रहे हैं। हालांकि अमरीका खाड़ी के तेल तथा गैस पर निर्भर नहीं, यदि तेल की कीमतें बढ़ीं तो इसका लाभ अमरीका को होगा क्योंकि वह तो तेल का एक बड़ा निर्यातक है। अब तेल कीमतों में वृद्धि वास्तव में अमरीका को लाभ दे रही है और इससे उसका नुक्सान नहीं हो रहा। इसलिए यह अमरीका के लिए दबने वाला कारक नहीं हो सकता।-लता वेंकटेश, सोनिया शिनॉय

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