आई.एस. की गतिविधियों के पीछे ‘विकृत मानसिकता’

Edited By ,Updated: 19 Apr, 2019 03:31 AM

is behind the activities of  distorted mentality

क्षेत्रफल के संदर्भ में विश्व के सातवें और जनसंख्या के मामले में दूसरे सबसे बड़े राष्ट्र भारत में इन दिनों आम चुनाव चल रहे हैं। विभिन्न राजनीतिज्ञों के आरोप-प्रत्यारोप, आचरण और शुचिता आदि को लेकर मीडिया से लेकर सड़क पर चर्चा हो रही है। इसी बीच...

क्षेत्रफल के संदर्भ में विश्व के सातवें और जनसंख्या के मामले में दूसरे सबसे बड़े राष्ट्र भारत में इन दिनों आम चुनाव चल रहे हैं। विभिन्न राजनीतिज्ञों के आरोप-प्रत्यारोप, आचरण और शुचिता आदि को लेकर मीडिया से लेकर सड़क पर चर्चा हो रही है। इसी बीच भारतीय विमर्श में एक वैश्विक समाचार को उपयुक्त स्थान मिलने में स्वाभाविक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। वह खबर उस बड़े खतरे से संबंधित है, जिसका दंश भारतीय उपमहाद्वीप सदियों से, तो शेष विश्व बीते कुछ दशक से झेल रहा है। विडम्बना है कि इस पर न ही गंभीर चर्चा हो रही है और न ही उसका वस्तुनिष्ठ हल निकालने का ईमानदार प्रयास किया जा रहा है।

आई.एस. का दावा, तीन दिन में किए 80 हमले
गत 16 अप्रैल को अंग्रेजी समाचार-पत्र डेली मेल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) ने दावा किया है कि उसने तीन दिन के भीतर विश्व की 80 अलग-अलग जगहों पर 92 आतंकी हमले किए हैं, जिसमें 392 निरपराध लोगों की जान चली गई है। आई.एस. ने रूस की राजधानी मास्को के निकट  कोलम्ना में हुए धमाके की भी जिम्मेदारी ली है। 

बकौल रिपोर्ट, आई.एस. के प्रवक्ता अबु हस्सन अल-मुजाहिर ने 44 मिनट लम्बी वीडियो रिकाॄडग में कहा है कि यह सब उसने सीरिया से उसे अमरीका द्वारा खदेडऩे के दावे और न्यूजीलैंड की मस्जिद में हुए हमले की प्रतिक्रिया स्वरूप किया है, जिसमें फिदायीन हमलों के साथ लैंडमाइंस का भी उपयोग किया गया है। इस आतंकी संगठन का दावा है कि उसने 8 से 10 अप्रैल के बीच ईराक में 14, सीरिया में 10 और अफ्रीका, सोमालिया, अफगानिस्तान,  लीबिया, मिस्र और कॉकस में कई हमले किए हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि उन्हें सीरिया, लीबिया, ईराक और मिस्र के बाहर हुए हमलों के पीछे आई.एस. का हाथ होने पर संदेह है क्योंकि कोलम्ना में गैस रिसाव के कारण धमाके की बात सामने आई है। क्या इस बात से विश्व को ङ्क्षचतामुक्त हो जाना चाहिए। 

बड़े हमले की योजना
अभी कुछ दिन पहले ही खुलासा हुआ है कि आई.एस. जर्मनी की हाई-स्पीड ट्रेन या स्विट्जरलैंड की तेल पाइपलाइन या फिर किसी बड़े यूरोपीय नगर में वर्ष 2015 में पैरिस के बाटाक्लान हाल नरसंहार जैसे बड़े हमले की योजना बना रहा है। चार वर्ष पहले, आतंकियों ने पैरिस की सड़कों में निरपराधों को गोलियों से भूनने  के बाद बाटाक्लान हाल में घुसकर 90 से अधिक लोगों को मार डाला था। इस जेहादी जुनून में कुल 130 लोगों की जान चली गई थी। पश्चिमी देश में यह कोई पहली आतंकी घटना नहीं थी। 2001 में न्यूयार्क के 9/11 आतंकी हमले के बाद हाल के वर्षों में कई यूरोपीय नगरों-लंदन, मैनचैस्टर, पैरिस, नीस, स्टॉकहोम, ब्रसल्स, हैमबर्ग, बार्सिलोना, बर्लिन, एमस्टरडम, हनोवर आदि में आतंकी हमले हुए हैं, जिसमें से अधिकांश को इस्लामिक स्टेट के दिशा-निर्देश पर स्थानीय जेहादियों ने अंजाम दिया था। 

इसी वर्ष 23 मार्च को अमरीका समर्थित और कुर्द नेतृत्व वाले सीरियाई सुरक्षाबलों ने घोषणा की थी कि उन्होंने सीरिया में इस्लामिक स्टेट के कब्जे वाले अंतिम गढ़ बघौज को मुक्त करा उसके 2014 से घोषित ‘खिलाफत’ का अंत कर दिया है। यही नहीं, अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी दम भरा था कि आई.एस. अब सीरिया के किसी भी क्षेत्र में नियंत्रण नहीं रखता है। यक्ष प्रश्न यह है कि जिस विषाक्त ङ्क्षचतन से बौद्धिक और साहित्यिक खुराक लेकर इस्लामिक स्टेट, विश्वभर में निरपराधों को अपना शिकार बना रहा है, क्या उसे सीरिया स्थित बघौज या फिर उसके अन्य चिन्हित  गढ़ों को जमींदोज करके खत्म किया जा सकता है। 

डेली मेल की हालिया रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि इस्लामिक स्टेट का गढ़ भले ही अमरीका के समर्थन से नष्ट कर दिया गया हो, किन्तु शेष विश्व में इस आतंकी संगठन का तंत्र खतरनाक रूप से न केवल सक्रिय है, साथ ही वह अन्य देशों में आतंकी घटनाओं की पटकथा भी लिख रहे हैं। इस स्थिति का कारण क्या है? इसका उत्तर खोजने से पहले पाकिस्तान और ईराक की अन्य हालिया खबरों पर भी पाठकों का ध्यान आकॢषत करना आवश्यक है।

12 अप्रैल को पाकिस्तान के अशांत क्वेटा में एक फल-सब्जी बाजार में बम धमाका हुआ, जिसमें 20 से अधिक लोग मारे गए और कई घायल हो गए। अधिकतर मृतक/घायल शिया हजारा समुदाय के थे। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आए दिन शिया-सुन्नी समुदाय के कट्टरपंथी और आतंकी संगठन एक-दूसरे पर हमला करते रहते हैं। बीते रविवार (14 अप्रैल) को ईराक के समावा से 170 किलोमीटर दूर एक और सामूहिक कब्र मिली है। बताया जा रहा है कि यह सब तानाशाह सद्दाम हुसैन के उस दौर की है, जब मजहबी ‘‘अनफल’’ अभियान के अंतर्गत 1980 के दशक में कुर्द समुदाय के 1,80,000 लोगों को रसायन गैस के हमले से बड़ी ही निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया गया था। 

मजहब के नाम पर हत्याएं
इन तीन हालिया खबरों की पृष्ठभूमि में यह जानना आवश्यक है कि मजहब के नाम पर सबसे ज्यादा हत्याएं कौन कर रहा है? और उनकी ङ्क्षहसा में जान गंवाने वाले अधिकतर किस समुदाय के होते हैं। क्या यह सत्य नहीं कि मजहब के नाम पर ङ्क्षहसा करने वाले और उस ङ्क्षहसा के अधिकतर शिकार एक ही मजहब के हैं। कैथोलिक चर्च बनाम प्रोटैस्टैंट चर्च के बीच ङ्क्षहसक टकराव के एक कालखंड के अपवाद को छोड़ दें, तो मजहब के नाम पर ङ्क्षहसा दूसरे मतों-पंथों में नहीं हुई। वह कौन-सी विचारधारा है, जो इस विकृत मानसिकता को पुष्ट करती है। क्यों मिस्र, तुर्की, लीबिया, सीरिया, ईरान, ईराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि मुस्लिम बहुल देशों में लोग मजहबी ङ्क्षहसा में झुलस रहे हैं।

क्या यह सत्य नहीं कि भारतीय उपमहाद्वीप पर 1,300 वर्ष पहले विदेशी आक्रांताओं का हमला, लूटपाट के बाद मंदिरों को तोडऩा, स्थानीय लोगों का बलात् मतांतरण, 19वीं शताब्दी में मजहबी अलगाववाद का जन्म, खिलाफत आंदोलन, मोपला कांड, 1946 की सीधी कार्रवाई, 1947 में भारत का विभाजन और कश्मीर संकट के पीछे जो विषाक्त मानसिकता मुख्य रूप से जिम्मेदार है-उसने ही इस्लामिक स्टेट और अन्य आतंकवादी संगठनों के साथ कई मुस्लिम बहुल देशों में रक्तरंजित हिंसा को जन्म दिया है। घाटी में जो लोग भारत विरोधी नारा लगाते हुए सुरक्षा कर्मियों पर पथराव करते हैं और मुठभेड़ में आतंकवादियों की ढाल बनते हैं, क्या उन्हें और आई.एस. जेहादियों को एक ही दर्शन से प्रेरणा नहीं मिल रही है?

अभी बीते दिनों जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता चंद्रकांत शर्मा और उनके अंगरक्षक राजिंद्र की आतंकियों ने हत्या कर दी। यह घटना तब हुई, जब चंद्रकांत एक स्वास्थ्य केन्द्र में पहुंचे थे। इससे पहले नवंबर 2018 में भी भाजपा के राज्य सचिव अनिल परिहार और उनके भाई की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। क्या इन घटनाओं को अंजाम देने वाले आतंकियों   और आई.एस. जेहादियों को प्रोत्साहित करने वाला ङ्क्षचतन एक नहीं है? कुछ वर्ष पहले केरल से कई लोगों के मतांतरण के बाद अफगानिस्तान और सीरिया में आई.एस. से जुडऩे की खबरों ने सार्वजनिक विमर्श में जगह बनाई थी। क्या उस समय इस स्वाभाविक प्रश्न का उत्तर खोजने का ईमानदार प्रयास हुआ कि मतांतरण के बाद उन सभी का व्यक्तित्व और चिंतन क्यों बदल गया? और वह क्यों अन्य लोगों को मौत के घाट उतारने के लिए तैयार हो गए? 

जहरीला दर्शन जिम्मेदार
वास्तव में, इस विकृति के पीछे वह जहरीला दर्शन जिम्मेदार  है, जिसमें सातवीं शताब्दी से पहले की सभ्यता, संस्कृति और परंपराओं का स्थान न केवल नगण्य है, अपितु उसमें घृणा का भी भाव है। कालांतर में इसने वीभत्स रूप ले लिया है और अन्य मजहब के अतिरिक्त उनके समुदाय का कोई व्यक्ति भी यदि उनके दर्शन में विश्वास नहीं रखता है या फिर वह उसे अपने दर्शन के अनुकूल नहीं मानते हैं तो उनका जीवन भी उस रुग्ण वर्ग के लिए निरर्थक हो जाता है। 

पश्चिमी देशों सहित शेष विश्व ने प्रत्येक आतंकवादी घटनाओं या मजहबी ङ्क्षहसा की निंदा तो की है, किन्तु उसके निर्णायक निवारण हेतु मूल जड़ पर गंभीर चर्चा या प्रहार करने के प्रतिकूल दिशाहीन अभियान चला कर जेहादी मानसिकता को पहले से कहीं अधिक पुष्ट करने का काम किया है। गत माह मार्च में अमरीका द्वारा इस्लामिक स्टेट के गढ़ को तबाह करने का दावा और फिर आई.एस. द्वारा विश्व के 80 अलग-अलग जगहों पर 92 हमलों की जिम्मेदारी लेना-विश्व के शक्तिशाली देशों की मजहबी हिंसा और आतंकवाद के प्रति अर्थहीन दृष्टिकोण का प्रमाण है।-बलबीर पुंज

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