क्या भारत वाकई ‘रेप कैपिटल’ है?

Edited By ,Updated: 13 Dec, 2019 03:06 AM

is india really a rape capital

क्या भारत वास्तव में विश्व की ‘रेप कैपिटल’ है? 7 दिसम्बर को बकौल (अपने लोकसभा क्षेत्र वायनाड में) कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘‘भारत दुनिया की रेप कैपिटल के रूप में जाना जाता है। दूसरे देश पूछ रहे हैं कि क्यों भारत अपनी बहन-बेटियों...

क्या भारत वास्तव में विश्व की ‘रेप कैपिटल’ है? 7 दिसम्बर को बकौल (अपने लोकसभा क्षेत्र वायनाड में) कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, ‘‘भारत दुनिया की रेप कैपिटल के रूप में जाना जाता है। दूसरे देश पूछ रहे हैं कि क्यों भारत अपनी बहन-बेटियों की सुरक्षा नहीं कर पा रहा है।’’ लगभग इसी प्रकार का वक्तव्य 10 दिसम्बर को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में चर्चा के दौरान भी दिया। उनके अनुसार, ‘‘भारत धीरे-धीरे ‘मेक इन इंडिया’ से ‘रेप इन इंडिया’ की ओर बढ़ता जा रहा है।’’ 

क्या सच में ही भारत विश्व का ‘रेप कैपिटल’ बन गया है और यहां महिलाएं पूरी तरह असुरक्षित हैं? राहुल गांधी द्वारा लगाए इस गंभीर आरोप को तथ्यों की कसौटी पर कसना आवश्यक है। दिलचस्प बात तो यह है कि ‘रेप कैपिटल’ से  संबंधित वक्तव्य देने वाले राहुल गांधी पर वर्ष 2006-07 में एक युवती ने भी बलात्कार का आरोप लगाया था, जो बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम के पश्चात अक्तूबर 2012 में निरस्त हो गया। 

यदि भारत वाकई विश्व की ‘बलात्कार राजधानी’ बन चुका है, तो यक्ष प्रश्न उठता है-यह कब से बना? क्या इसका उत्तर 27 नवम्बर के हैदराबाद वीभत्स मामले में निहित है, जिसमें एक महिला पशु चिकित्सक से बलात्कार के बाद जीवित जलाकर उसकी हत्या कर दी गई थी और कालांतर में एक पुलिसिया मुठभेड़ में चारों आरोपी मार दिए गए थे?

क्या इस सवाल का जवाब उत्तरप्रदेश के उन्नाव घटनाक्रम में मिलता है, जिसमें बलात्कार के एक मामले में पीड़िता को 5 दिसम्बर को जला दिया गया था और दो दिन पश्चात अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया था? क्या यह भाजपा से निष्कासित नेता कुलदीप सिंह सेंगर का वर्ष 2017 के बलात्कार मामले में आरोपी बनने के बाद हुआ है, जिस पर निचली अदालत अगले सप्ताह निर्णय सुना सकती है? या फिर भारत विश्व में ‘रेप कैपिटल’ के रूप में 16 दिसम्बर 2012 के निर्भया कांड से स्थापित है, जहां दक्षिण दिल्ली स्थित युवती का चलती निजी बस में 5 नरपिशाचों ने दरिंदगी की हदों को पार करते हुए बलात्कार किया था और 11 दिन बाद पीड़िता ने दम तोड़ दिया था? 

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) की मानें, तो वर्ष 2017 में महिलाओं से बलात्कार के मामले 32 हजार से अधिक थे। स्पष्ट है कि सख्त कानून और उसमें कड़ी सजा का प्रावधान होते हुए भी बलात्कार या उनके साथ होने वाले यौन उत्पीडऩ के मामलों में कोई कमी नहीं आई। इस स्थिति का कारण क्या है? कॉलम में इस प्रश्न का उत्तर खोजने से पहले शेष विश्व की स्थिति पर भी नजर डालना आवश्यक है। 

इंगलैंड-वेल्स में महिलाओं द्वारा पुरुषों से बलात्कार के 12000 मामले
विश्व के सबसे सम्पन्न और समृद्ध देशों में से एक इंगलैंड-वेल्स की कुल आबादी लगभग 6 करोड़ है। वहां वर्ष 2018 में बलात्कार-यौन उत्पीडऩ के 58,567 मामले सामने आए थे,  जिनमें महिलाओं द्वारा पुरुषों से बलात्कार के 12,000 मामले भी शामिल हैं। इंगलैंड-वेल्स की कुल आबादी भारत की कुल जनसंख्या 137 करोड़ का 22वां हिस्सा है, फिर भी वहां बलात्कार के मामले भारत से कहीं अधिक हैं!

अमरीका में प्रतिवर्ष 2 लाख यौन उत्पीडऩ/बलात्कार के मामले
अमरीका की कुल आबादी 33 करोड़ अर्थात भारत की कुल जनसंख्या के एक चौथाई हिस्से से भी कम है। यहां महिलाओं से प्रतिवर्ष 2 लाख से अधिक यौन उत्पीडऩ/बलात्कार के मामले प्रकाश में आते हैं, जिसमें से 50 प्रतिशत मामलों में प्राथमिकी ही दर्ज नहीं होती और 95 प्रतिशत से अधिक बलात्कारी जेल में एक दिन भी नहीं बिताते हैं। अर्थात भारत की तुलना में अमरीका में चार गुना अधिक बलात्कार के मामले सामने आते हैं।

अढ़ाई करोड़ की आबादी वाले ऑस्ट्रेलिया में औसतन 23-25 हजार बलात्कार के मामले सामने आते हैं। वहां की मीडिया रिपोटर््स के अनुसार, इन  मामलों में पिछले 6 वर्षों  में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीं कई वैबसाइट्स की मानें, तो दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं से यौन उत्पीडऩ और बलात्कार के प्रतिवर्ष 5 लाख मामले सामने आते हैं। क्या इन देशों में किसी भी जिम्मेदार राजनीतिज्ञ ने अपने देश के बलात्कार/महिला उत्पीडऩ के इन आंकड़ों को देखकर अपने देश को विश्व का ‘रेप कैपिटल’ कहा है? संभवत: नहीं। 

भारत की स्थिति अमरीका,कई यूरोपीय देशों से अच्छी
सच तो यह है कि प्रति एक लाख (आबादी) अपराध दर के मामले में भारत की स्थिति अमरीका और कई यूरोपीय देशों की तुलना में काफी अच्छी है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति एक लाख मानव-हत्या दर 3 है, तो अमरीका में 5.3 है। अन्य शोध की मानें तो भारत में प्रति एक लाख बलात्कार की दर 2.5 है, तो दक्षिण अफ्रीका 132, स्वीडन 63, ऑस्ट्रेलिया 28, अमरीका 27 और न्यूजीलैंड 26 है। 137 करोड़ की आबादी होने के कारण भारत में बलात्कार, हत्या सहित अपराधों का कुल आंकड़ा बहुत अधिक हो जाता है। 

बलात्कार जैसे मामलों में शून्य-सहनशक्ति होनी चाहिए 
अब भारत में बलात्कार सहित अन्य अपराधों की दर विश्व के शेष देशों से कम है, तो यह अपने आप में संतोष का विषय बिल्कुल भी नहीं हो सकता। किसी भी सभ्य समाज में बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के लिए ‘शून्य-सहनशक्ति’ होनी चाहिए, क्योंकि महिलाओं का किसी भी प्रकार उत्पीडऩ, यौन शोषण और बलात्कार-वीभत्स अपराध ही नहीं, बल्कि पाप है और समाज के लिए कलंक के समान है। यदि उपरोक्त आंकड़ों को अलग रख भी दें, तो पूरे देश में इस प्रकार का एक भी मामला हमारे समाज के मुंह पर कालिख है। 

क्या देश में बढ़ती विकृति का एक बड़ा कारण समाज से पाप और पुण्य की धारणा का निरंतर क्षय होना नहीं है? पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, नैतिक-अनैतिक की परिभाषा सनातन भारत के जीवन मूल्य हैं। यदि समाज के सभी लोगों के मन में यह भावना जागृत हो जाए कि भले ही कानून दिन के 24 घंटे उन पर नजर नहीं रख सकता हो, किंतु ईश्वर की दृष्टि हर क्षण बनी रहती है, तो अनैतिक, अधर्म और पाप का विचार ही उनकी आत्मा को कचोटने लगेगा। यह ईश्वर की ही कृपा है कि उसके ‘दैवीय भय’ के कारण भारत अभी विश्व की ‘रेप कैपिटल’ बनने से बहुत दूर है।-बलबीर पुंज
 

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