क्या आजम का माफी मांगना काफी है

Edited By ,Updated: 31 Jul, 2019 12:59 AM

is it enough to apologize for azam

समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान ने लोकसभा में पीठासीन अधिकारी रमा देवी पर की गई अभद्र टिप्पणी के लिए माफी मांग ली है, किन्तु रमा देवी ने उन्हें दिल से माफ नहीं किया है। जिस तरह की अश्लील टिप्पणी खान ने की, वह क्षम्य नहीं है। वह पहले भी महिलाओं के...

समाजवादी पार्टी के सांसद आजम खान ने लोकसभा में पीठासीन अधिकारी रमा देवी पर की गई अभद्र टिप्पणी के लिए माफी मांग ली है, किन्तु रमा देवी ने उन्हें दिल से माफ नहीं किया है। जिस तरह की अश्लील टिप्पणी खान ने की, वह क्षम्य नहीं है। वह पहले भी महिलाओं के विरुद्ध अशोभनीय टिप्पणी करते रहे हैं। जो व्यक्ति संसद के अंदर सबकी उपस्थिति में ऐसी बात कर सकता है, वह बाहर में या निजी तौर पर कैसी टिप्पणी कर सकता है, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

खान की टिप्पणी से कई महत्वपूर्ण मुद्दे उभरते हैं। पहला है सांसदों-विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा। यह टिप्पणी इतनी बेतुकी एवं अभद्र थी कि शुरू में रमा देवी कुछ समझ ही नहीं पाईं और अनमने भाव से मुस्कराती रहीं। पूरा सदन हत्प्रभ था कि वह क्या बोल रहे हैं। बाद में सत्ता पक्ष की ओर से जोरदार विरोध हुआ। इसके बाद खान ने अपने कुकृत्य पर पर्दा डालने की कोशिश की कि रमा देवी उनकी प्यारी बहन हैं और फिर अकड़ के साथ उठकर बाहर चले गए।

सांसदों-विधायकों के विशेषाधिकार
सांसदों-विधायकों को कई विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इनमें प्रमुख हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गिरफ्तारी से छूट। ये हाऊस ऑफ  कॉमंस के पुराने विशेषाधिकार हैं जिनका उद्भव कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण हुआ। 1376 में स्पीकर पीटर डी ला मेयर को गुड पाॢलयामैंट में उनके आचरण के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और जब तक सम्राट एडवार्ड तृतीय जीवित रहे, उनकी रिहाई नहीं हुई। 

1512 में सांसद स्ट्रोड को स्टैनरी कोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने संसद में कुछ विधेयक पेश किए थे जिन्हें राजा ने नामंजूर कर दिया था। 3 सप्ताह बाद उनकी रिहाई हुई और तब सांसदों को सुरक्षा देने के लिए एक अधिनियम बनाया गया कि किसी संसद में कुछ भी बोलने के लिए किसी सांसद पर न तो कोई मुकद्दमा चलेगा, न उसे दंड दिया जाएगा। 1629 में 3 सांसदों  इलियट, हौलिस एवं वैलेंटाइन को संसद में राजद्रोही भाषण देने के लिए सजा सुनाई गई। परंतु हाऊस ऑफ लॉडर््स ने चाल्र्स द्वितीय के काल में उसे रद्द कर दिया। उसने व्यवस्था दी कि संसद में कही गई किसी बात पर केवल संसद ही निर्णय करेगी। 1689 में बिल ऑफ राइट्स ने इसे और सशक्त बना दिया कि संसद में अभिव्यक्ति या बहस की स्वतंत्रता को किसी अदालत या सदन के बाहर चुनौती नहीं दी जा सकती है। 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 के उपबंध (1) एवं (2) में दो विशेषाधिकारों का उल्लेख है- बोलने एवं कार्यवाही के प्रकाशन की आजादी। उपबंध (3) में अन्य विशेषाधिकारों का जिक्र है। 26 जनवरी 1950 को मूल प्रावधान यह था कि ये विशेषाधिकार वे होंगे जिन्हें समय-समय पर संसद परिभाषित करेगी और जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक हाऊस ऑफ कॉमंस के विशेषाधिकार लागू रहेंगे। 1978 में इससे ‘हाऊस ऑफ कॉमंस’ को हटा दिया गया। इसी प्रकार अनुच्छेद 194 के तहत राज्य विधानसभाओं को भी समान विशेषाधिकार दिए गए हैं। 

अभिव्यक्ति की असीमित स्वतंत्रता
इस तरह स्पष्ट है कि सांसदों-विधायकों को सदन के अंदर अभिव्यक्ति की असीमित स्वतंत्रता है। परन्तु दलबदल निरोधक कानून ने इसे काफी आघात पहुंचाया है क्योंकि उन पर पार्टी व्हिप के मुताबिक ही सदन में मतदान करने की बाध्यता है। इसके अलावा उनकी स्वतंत्रता पूर्ण है लेकिन व्हिप के उल्लंघन पर भी केवल सदन की सदस्यता समाप्त की जा सकती है, उन्हें कोई और दंड नहीं दिया जा सकता। कोई अदालत उन्हें सदन में कही गई किसी बात के लिए सजा नहीं दे सकती है परंतु सदन निश्चित रूप से उन उद्दंड सदस्यों को सजा दे सकता है जो असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हैं या कोई आपराधिक कृत्य करते हैं। 

आजम खान ने जो अश्लील टिप्पणी की, उसके लिए उन पर यौन उत्पीडऩ अधिनियम, 2013 एवं भारतीय दंड विधान की धारा 354-ए के तहत मुकद्दमा चलाया जा सकता है यदि यही बात वह सदन के बाहर बोलते। धारा 354 ए के तहत किसी स्त्री के सतीत्व का उल्लंघन करना आपराधिक कृत्य है। इसमें सतीत्व के उल्लंघन की व्याख्या नहीं की गई है, किन्तु उच्चतम न्यायालय ने ‘सतीत्व’ को स्त्रियोचित शालीनता के रूप में परिभाषित किया है जो महिलाओं का एक विशिष्ट गुण है। 

खान विशेषाधिकार हनन के दोषी हैं। इसी आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जेल भेजा गया एवं लोकसभा से उनका निष्कासन हुआ। 1978 में संसद की विशेषाधिकार समिति ने उन्हें मारुति लि. के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर रहे अधिकारियों के काम में व्यवधान उत्पन्न करने का दोषी पाया। 19 दिसम्बर 1978 को छठी लोकसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया कि इंदिरा गांधी को सत्र की समाप्ति तक जेल भेजा जाए एवं सदन की सदस्यता रद्द की जाए। उन पर आरोप था कि उन्होंने कुछ अधिकारियों को धमकी दी, उन्हें काम करने से रोका। एक सप्ताह के बाद 26 दिसम्बर को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। परन्तु 1980 में इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ गईं और सातवीं लोकसभा ने 7 मई 1981 को एक प्रस्ताव पारित कर उनके सदन से निष्कासन वाले प्रस्ताव को पलट दिया और उस कार्यवाही को रिकार्ड से हटा दिया जबकि यह समाचार हर जगह प्रकाशित-प्रसारित हुआ था और हरेक को इसकी जानकारी थी। 

इससे एक अहम सवाल उठता है कि आखिर कार्यवाही से हटाने का मकसद क्या है? मामला तो वैसे खत्म हो गया है लेकिन खान को सजा मिलनी चाहिए थी। केवल ङ्क्षनदा या क्षमा काफी नहीं है। (ये लेखक के निजी विचार हैं)-पार्टी के सांसद आजम खान ने लोकसभा में पीठासीन अधिकारी रमा देवी पर की गई अभद्र टिप्पणी के लिए माफी मांग ली है, किन्तु रमा देवी ने उन्हें दिल से माफ नहीं किया है। जिस तरह की अश्लील टिप्पणी खान ने की, वह क्षम्य नहीं है। वह पहले भी महिलाओं के विरुद्ध अशोभनीय टिप्पणी करते रहे हैं। जो व्यक्ति संसद के अंदर सबकी उपस्थिति में ऐसी बात कर सकता है, वह बाहर में या निजी तौर पर कैसी टिप्पणी कर सकता है, यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है।

खान की टिप्पणी से कई महत्वपूर्ण मुद्दे उभरते हैं। पहला है सांसदों-विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा। यह टिप्पणी इतनी बेतुकी एवं अभद्र थी कि शुरू में रमा देवी कुछ समझ ही नहीं पाईं और अनमने भाव से मुस्कराती रहीं। पूरा सदन हत्प्रभ था कि वह क्या बोल रहे हैं। बाद में सत्ता पक्ष की ओर से जोरदार विरोध हुआ। इसके बाद खान ने अपने कुकृत्य पर पर्दा डालने की कोशिश की कि रमा देवी उनकी प्यारी बहन हैं और फिर अकड़ के साथ उठकर बाहर चले गए।

सांसदों-विधायकों के विशेषाधिकार
सांसदों-विधायकों को कई विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इनमें प्रमुख हैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गिरफ्तारी से छूट। ये हाऊस ऑफ  कॉमंस के पुराने विशेषाधिकार हैं जिनका उद्भव कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण हुआ। 1376 में स्पीकर पीटर डी ला मेयर को गुड पाॢलयामैंट में उनके आचरण के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और जब तक सम्राट एडवार्ड तृतीय जीवित रहे, उनकी रिहाई नहीं हुई। 

1512 में सांसद स्ट्रोड को स्टैनरी कोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार किया गया क्योंकि उन्होंने संसद में कुछ विधेयक पेश किए थे जिन्हें राजा ने नामंजूर कर दिया था। 3 सप्ताह बाद उनकी रिहाई हुई और तब सांसदों को सुरक्षा देने के लिए एक अधिनियम बनाया गया कि किसी संसद में कुछ भी बोलने के लिए किसी सांसद पर न तो कोई मुकद्दमा चलेगा, न उसे दंड दिया जाएगा। 1629 में 3 सांसदों  इलियट, हौलिस एवं वैलेंटाइन को संसद में राजद्रोही भाषण देने के लिए सजा सुनाई गई। परंतु हाऊस ऑफ लॉडर््स ने चाल्र्स द्वितीय के काल में उसे रद्द कर दिया। उसने व्यवस्था दी कि संसद में कही गई किसी बात पर केवल संसद ही निर्णय करेगी। 1689 में बिल ऑफ राइट्स ने इसे और सशक्त बना दिया कि संसद में अभिव्यक्ति या बहस की स्वतंत्रता को किसी अदालत या सदन के बाहर चुनौती नहीं दी जा सकती है। 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 के उपबंध (1) एवं (2) में दो विशेषाधिकारों का उल्लेख है- बोलने एवं कार्यवाही के प्रकाशन की आजादी। उपबंध (3) में अन्य विशेषाधिकारों का जिक्र है। 26 जनवरी 1950 को मूल प्रावधान यह था कि ये विशेषाधिकार वे होंगे जिन्हें समय-समय पर संसद परिभाषित करेगी और जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक हाऊस ऑफ कॉमंस के विशेषाधिकार लागू रहेंगे। 1978 में इससे ‘हाऊस ऑफ कॉमंस’ को हटा दिया गया। इसी प्रकार अनुच्छेद 194 के तहत राज्य विधानसभाओं को भी समान विशेषाधिकार दिए गए हैं। 

अभिव्यक्ति की असीमित स्वतंत्रता
इस तरह स्पष्ट है कि सांसदों-विधायकों को सदन के अंदर अभिव्यक्ति की असीमित स्वतंत्रता है। परन्तु दलबदल निरोधक कानून ने इसे काफी आघात पहुंचाया है क्योंकि उन पर पार्टी व्हिप के मुताबिक ही सदन में मतदान करने की बाध्यता है। इसके अलावा उनकी स्वतंत्रता पूर्ण है लेकिन व्हिप के उल्लंघन पर भी केवल सदन की सदस्यता समाप्त की जा सकती है, उन्हें कोई और दंड नहीं दिया जा सकता। कोई अदालत उन्हें सदन में कही गई किसी बात के लिए सजा नहीं दे सकती है परंतु सदन निश्चित रूप से उन उद्दंड सदस्यों को सजा दे सकता है जो असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हैं या कोई आपराधिक कृत्य करते हैं। 

आजम खान ने जो अश्लील टिप्पणी की, उसके लिए उन पर यौन उत्पीडऩ अधिनियम, 2013 एवं भारतीय दंड विधान की धारा 354-ए के तहत मुकद्दमा चलाया जा सकता है यदि यही बात वह सदन के बाहर बोलते। धारा 354 ए के तहत किसी स्त्री के सतीत्व का उल्लंघन करना आपराधिक कृत्य है। इसमें सतीत्व के उल्लंघन की व्याख्या नहीं की गई है, किन्तु उच्चतम न्यायालय ने ‘सतीत्व’ को स्त्रियोचित शालीनता के रूप में परिभाषित किया है जो महिलाओं का एक विशिष्ट गुण है। 

खान विशेषाधिकार हनन के दोषी हैं। इसी आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जेल भेजा गया एवं लोकसभा से उनका निष्कासन हुआ। 1978 में संसद की विशेषाधिकार समिति ने उन्हें मारुति लि. के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर रहे अधिकारियों के काम में व्यवधान उत्पन्न करने का दोषी पाया। 19 दिसम्बर 1978 को छठी लोकसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया कि इंदिरा गांधी को सत्र की समाप्ति तक जेल भेजा जाए एवं सदन की सदस्यता रद्द की जाए। उन पर आरोप था कि उन्होंने कुछ अधिकारियों को धमकी दी, उन्हें काम करने से रोका। एक सप्ताह के बाद 26 दिसम्बर को उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। परन्तु 1980 में इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ गईं और सातवीं लोकसभा ने 7 मई 1981 को एक प्रस्ताव पारित कर उनके सदन से निष्कासन वाले प्रस्ताव को पलट दिया और उस कार्यवाही को रिकार्ड से हटा दिया जबकि यह समाचार हर जगह प्रकाशित-प्रसारित हुआ था और हरेक को इसकी जानकारी थी। इससे एक अहम सवाल उठता है कि आखिर कार्यवाही से हटाने का मकसद क्या है? मामला तो वैसे खत्म हो गया है लेकिन खान को सजा मिलनी चाहिए थी। केवल ङ्क्षनदा या क्षमा काफी नहीं है। (ये लेखक के निजी विचार हैं)-सुधांशु रंजन

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