क्या महात्मा गांधी आज वास्तव में ‘प्रासंगिक’ हैं

Edited By ,Updated: 01 Oct, 2019 12:36 AM

is mahatma gandhi really  relevant  today

कल लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएंगे। कौन? आपका तात्पर्य उस गांधी से है जिनकी जयंती पर हमें छुट्टी मिलती है और जिन्होंने हमें सत्य, नैतिकता और मूल्यों के बारे में शिक्षा दी? पर उन्होंने किया क्या? प्रिय देशवासियो! भारत...

कल लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएंगे। कौन? आपका तात्पर्य उस गांधी से है जिनकी जयंती पर हमें छुट्टी मिलती है और जिन्होंने हमें सत्य, नैतिकता और मूल्यों के बारे में शिक्षा दी? पर उन्होंने किया क्या? प्रिय देशवासियो! भारत की नई पीढ़ी महात्मा गांधी के बारे में किस तरह सोचती है, जिन्हें हम आदर से राष्ट्रपिता कहते हैं। कल तक हम गांधी जी का केवल औपचारिक रूप से स्मरण करते थे किन्तु आज प्रत्येक चीज में गांधीवादी बनने की हम लोगों में होड़ लगी हुई है। 

सरकार ने दुनिया भर में उनके बारे में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनमें पोस्टर प्रतियोगिता से लेकर वाद-विवाद, प्रश्नोत्तर, पद यात्रा, साइकिल यात्रा, कार्यक्रमों का आदान-प्रदान, नुक्कड़ नाटक आदि शामिल हैं और इनके माध्यम से स्वच्छता और पर्यावरण सुरक्षा का संदेश दिया जा रहा है। योग और रक्तदान शिविर आयोजित किए जा रहे हैं, साथ ही उनके जीवन और आदर्शों पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। रेलवे ने अपने डीजल लोकोमोटिव पर तिरंगे की पृष्ठभूमि में गांधी जी की तस्वीर छापी है तो खेल मंत्रालय ने 2 अक्तूबर को ‘फिट इंडिया’ दौड़ का आयोजन किया है और इस दौड़ के दौरान प्लास्टिक और अन्य कचरे को उठाया जाएगा साथ ही एकल उपयोग प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान चलाया जाएगा। वृक्षारोपण किया जाएगा और गांधी जी के संदेशों के प्रचार के लिए गांधी कथा का आयोजन किया जाएगा। 

किन्तु क्या वे ईमानदारी से गांधी जी की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं? उनके मूल्यों का पालन करते हैं? भूल जाइए। उन्हें इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया गया है किन्तु कल सुबह होते ही हमारे नेता बापू की समाधि पर पुष्पांजलि देने राजघाट पहुंच जाएंगे और एक यांत्रिक मुस्कान के साथ उनकी समाधि पर पुष्प अॢपत करेंगे। हालांकि अंदर से वे इसे समय की बर्बादी मानेंगे। मौन होकर अपना सिर झुकाएंगे, टी.वी. पर अपनी टिप्पणियां करेंगे कि वे गांधी जी के आदर्शों का पालन करेंगे, उन्हें श्रद्धांजलि देकर वे अपना कत्र्तव्य पूरा समझेंगे और सुरक्षा काफिले के साथ अपनी गाड़ी में बैठ जाएंगे और यही लोकतंत्र का कारोबार है और कानून द्वारा शासित है। 

गांधी के सपने से कितनी दूर
वस्तुत: वर्षों पूर्व गांधी जी ने जो शिक्षाएं दी थीं उसके बाद हमने एक लम्बी यात्रा कर ली है। आज वह एक बौद्धिक ङ्क्षचतन का विषय बन कर रह गए हैं, जहां पर उनके आदर्शों को भुला दिया गया है और उनकी शिक्षाओं को चयनात्मक ढंग से याद किया जाता है या गलत समझा जाता है। अगर आप अपने आसपास नजर दौड़ाएंगे तो आपको पता चल जाएगा कि आप स्वतंत्रता के पश्चात के भारत के गांधी के सपने से कितने दूर हैं। 

शायद कम लोगों को पता होगा कि गांधी जी शासन के वैस्टमिंस्टर मॉडल के विरुद्ध थे, जिसका आज हम पालन कर रहे हैं क्योंकि इसमें शासक और शासित दो वर्ग थे। ब्रिटिश संसद स्वयं अंतिम निर्णय नहीं ले सकती है और सांसदों को पार्टी के सचेतक का पालन करना होता है जिसके कारण वे रबर स्टैम्प बन गए हैं। किन्तु दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता के बाद भारत ने गांधी जी की सलाह पर ध्यान नहीं दिया न ही उनके सादा जीवन, उच्च विचार, सही और गलत तथा मूल्य प्रणाली के आदर्शों का पालन किया गया और एक राजनीतिक, सामाजिक और नैतिक दृष्टि से दीवालिया राष्ट्र से किसी प्रतिक्रिया की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? 

आज हमारे नेता कुर्सी और पैसे से चिपके हुए हैं जबकि बेरोजगार युवाओं में हताशा है, मध्यम वर्ग निराश है, विभिन्न जातियों और पंथों में ध्रुवीकरण बना हुआ है। यदि अहिंसा के कारण महात्मा गांधी को विश्व भर में जाना जाता है तो आज हमारे समाज में हिंसा सार्वभौमिक सत्य बन गया है। बापू की शिक्षाओं को केवल दिखावा बना दिया गया है। उनका स्मरण केवल उनकी जयंती और शहीदी दिवस या चुनावों के दौरान किया जाता है और इसका कारण हमारे संकीर्ण मानसिकता के नेता हैं। उनके करो या मरो के नारे पर सारा देश एकजुट हो गया था किन्तु आज शक्ति प्रदर्शन के लिए किराए की भीड़ जुटाई जाती है और आज के कागजी शेरों से हम और अपेक्षा भी क्या कर सकते हैं। क्या यह दुखद नहीं है कि गांधी जयंती आतंक, हिंसा, अपराध, भ्रष्टाचार और उदासीनता तथा धन बल, बाहुबल और माफियाबल के माहौल में मनाई जा रही है जिनसे महात्मा घृणा करते थे? 

नए ‘महाराजाओं’ बारे अंदाजा नहीं था
आज ऐसी हास्यास्पद स्थिति बन गई है कि लगता है गांधी जी किसी दूसरे ग्रह से आए थे। गांधी जी ने कहा था, ‘‘मंत्री जनता के सेवक होते हैं। उन्हें पदों से चिपके नहीं रहना चाहिए। ये पद कांटों के ताज होने चाहिएं न कि प्रसिद्धि के ताज।’’ किन्तु उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि हमारे नए महाराजा, प्रभावशाली मंत्री और सांसद अपने पद सत्ता और उससे जुड़े लाभों को हल्के से नहीं पकड़ेंगे अपितु उनसे चिपके रहेंगे और उनकी मानसिकता जी हुजूर सामंती होगी। बापू चाहते थे कि नेता सीजर की पत्नी की तरह संदेह से परे हों, किन्तु आज यह सच्चाई नहीं है। 

आज भ्रष्ट और दोषसिद्ध नेता बेशर्मी से सत्ता पक्ष में विभिन्न पदों पर विराजमान हैं। क्या कभी किसी ने सोचा भी होगा कि पूर्व गृह मंत्री भ्रष्टाचार के कारण जेल की हवा खाएगा और एक अन्य मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में होगा तथा एक शीर्ष नौकरशाह गिरफ्तारी से बचने के लिए अंडरग्राऊंड हो जाएगा? क्या आप कल्पना भी कर सकते हैं कि गांधी जी यह सब करने के लिए व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ कर सकते थे? बिल्कुल नहीं। आज भारत में कल के महाराजाओं का स्थान मंत्रियों और सांसदों ने ले लिया है और वे अपने को विजेता मानते हैं तथा लुटियन की दिल्ली को वे पवित्र गाय समझते हैं। उनके लिए कोई नियम नहीं हैं। 

वे अपने नियम स्वयं बनाते हैं और सब कुछ जानने का दावा करते हैं। वे तथ्यों को तोडऩे-मरोडऩे और सौदे करने में सिद्धहस्त हैं। फिर भी हम अपने देश को लोकतंत्र कहते हैं जबकि यह सामंतशाही की तरह दिखता है। विभिन्न चुनावी रैलियों में हमारे नेता गांधीवादी मूल्यों की वापसी पर बल देते हैं। हमारी जीवन शैली में बदलाव आना चाहिए। अपशब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए, आत्मनिर्भरता के लिए सादगी, कार्यकुशलता और प्रतिबद्धता प्रमुख कारक हैं। यह सब सुनने में अच्छे लगते हैं किन्तु उनका पालन नहीं किया जाता है। आज हमारे राजनेताओं के शब्दकोष में विचारधारा, सिद्धांत, पार्टी हित या नीतियां नहीं मिलते हैं। अतीत में हमारे नेता कम से कम अपने विचारों पर वैचारिक पर्दा डाल देते थे किन्तु आज ऐसा भी नहीं करते हैं। 

कहां हैं गांधीवादी नेता
गांधी जी ने कहा था, ‘‘जिस सत्य का मैं दावा करता हूं वह पर्वतों से भी पुराना है’’ किन्तु शायद उन्हें यह अहसास नहीं था कि पहाड़ों को ध्वस्त किया जा सकता है, सत्य को मिटाया जा सकता है और उसका एकमात्र लक्ष्य आजकल गद्दी रखो पैसा पकड़ो है अर्थात किसी भी कीमत पर सत्ता और पैसा। देश और लोकतंत्र जाए भाड़ में। किन्तु सच्चाई यह भी है कि भारत की जनता गांधी जी को भूलना नहीं चाहती है। आज सम्पूर्ण विश्व की जनता एक बेहतर विश्व के निर्माण के लिए उन्हें मार्गदर्शक के रूप में देखती है। आज लोग उनकी शिक्षाओं के साथ खिलवाड़ करने वालों का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं होते क्योंकि हमारी प्रवृत्ति अनैतिक और भ्रष्ट हो गई है। साथ ही देश में गरीबी व्यापक पैमाने पर है। 

गांधी जी के आदर्शों के लिए किसके पास समय है। लोग रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके अलावा मुकाबला करने से आसान उदासीन बनना होता है और हमारी मानसिकता ‘की फर्क पैंदा है’ की बन गई है। आज गांधीवादी नेता कहां हैं? आज जनता का, जनता के लिए और जनता से नेता कहां हैं? कुल मिलाकर हमारे राजनेता महात्मा गांधी की कसमें तो खाते हैं किन्तु उनकी शिक्षाओं पर ध्यान नहीं देते हैं। इसकी बजाय वे सारे पाप करते हैं जिनसे गांधी जी स्वयं घृणा करते थे और वे पाप हैं : सिद्धान्तों के बिना राजनीति, कार्य के बिना सम्पत्ति, नैतिकता के बिना व्यापार, चरित्र के बिना शिक्षा, चेतना के बिना आनंद, मानवता के बिना विज्ञान और बलिदान के बिना पूजा।

अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपैरिमैंट विद ट्रुथ’ में गांधी जी ने कहा, ‘‘मैं नहीं चाहता कि मेरे घर पर चारों तरफ से दीवारें बनी हों और मेरी खिड़की पर दरवाजे लगे हों। मैं हवा में चलना नहीं चाहता हूं। मेरा धर्म बंधा नहीं है। आज मैं आपका नेता हूं किन्तु कल आप मुझे जेल में भी बंद कर सकते हैं क्योंकि यदि आप रामराज नहीं  लाओगे तो मैं आपकी आलोचना करूंगा।’’ हमने गांधी जी को जेल में बंद नहीं किया अपितु उनकी हत्या की और दैनिक आधार पर ऐसा करते जा रहे हैं और यह असत्य के साथ हमारा प्रयोग है।-पूनम आई. कोशिश

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!