समान नागरिक संहिता को लाने का क्या यह समय उचित है?

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2021 06:11 AM

is this time to introduce uniform civil code

क्या भारत को पर्सनल लॉ की धारणा को दूर करते हुए सभी नागरिकों के लिए यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) लाना चाहिए? ऐसे कानून को लाने के लिए क्या यह उचित समय है? समर्थकों

क्या भारत को पर्सनल लॉ की धारणा को दूर करते हुए सभी नागरिकों के लिए यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) लाना चाहिए? ऐसे कानून को लाने के लिए क्या यह उचित समय है? समर्थकों का इस बारे कहना है कि इसके लिए पहले से ही देर हो चुकी है जबकि विरोधियों का तर्क यह है कि इसको लाने के लिए यह समय सही नहीं। यह विचार एक जटिल है तथा इस पर राजनीतिक सहमति की जरूरत है। 

यहां पर एक विधान संबंधी कोण भी है। इसके अलावा एक धार्मिक, एक लिंग, एक राजनीतिक तथा एक संवैधानिक कोण भी है। हालांकि यह मुद्दा कानूनी होने से ज्यादा राजनीतिक हो चुका है। यदि हमारे संविधान के निर्माताओं ने निर्णय स्थगित न किया होता तो अब तक कानून बन गया होता। यहां तक कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने विधेयक के द्वारा इसे आगे नहीं बढ़ाया और दावा किया कि, ‘‘मैं नहीं मानता कि वर्तमान क्षणों में यूनिफार्म सिविल कोड को आगे बढ़ाने की कोशिश के लिए समय उपयुक्त है।’’ गोवा भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पर यूनिफार्म सिविल कोड है। भारत द्वारा गोवा के अतिक्रमण के बाद पुर्तगाल नागरिक संहिता, 1867 में बदलाव नहीं किया गया। 

सत्ताधारी भाजपा दशकों से नागरिक समान संहिता के लिए जोर लगा रही है और उसने इसे अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल भी किया था। भाजपा ने वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आई तो यूनिफार्म सिविल कोड को लाएगी। वोट बैंक की राजनीति के चलते ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध किया था क्योंकि मुसलमान यूनिफार्म सिविल कोड  का विरोध करते हैं।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास जनादेश, योग्यता तथा इच्छाशक्ति है कि वह यूनिफार्म सिविल कोड  को लाएं। आज यह एक वास्तविकता नहीं बन सकती जब तक कि मोदी एक राजनीतिक सहमति न बनाएं। उन्होंने पहले से ही 2 महत्वपूर्ण मुद्दे एक तो अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तथा ज मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त कर स पूर्ण कर लिए हैं। 

यूनिफार्म सिविल कोड एक धर्मनिरपेक्ष धारणा है जो सभी धर्मों या जाति के निजी कानूनों से ऊपर है मगर मुस्लिम, ईसाई तथा पारसी समुदायों के अपने ही निजी कानून हैं। हिन्दू पर्सनल लॉ हिन्दू, सिख, जैन तथा बौद्ध धर्मों के नागरिकों के मुद्दों से निपटता है। वर्तमान में यहां पर देश में ‘एक राष्ट्र, एक कानून’ की धारणा है।

आज नहीं तो कल सबके लिए एक कानून की आवश्यकता होगी। सभी धार्मिक समुदायों के मामलों में इसे लागू करना चाहिए फिर चाहे यह शादी, तलाक, दत्तक ग्रहण इत्यादि के बारे में है। जबकि भारत में आपराधिक कानून एक जैसे हैं और सभी पर लागू होते हैं फिर वे चाहे किसी भी धर्म को मानने वाले हों। यूनिफार्म सिविल कोड  फ्रांस, यू.के., अमरीका तथा आस्ट्रेलिया में प्रचलित है। हालांकि कीनिया, पाकिस्तान, इटली, दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया तथा ग्रीस जैसे देशों के पास यूनिफार्म सिविल कोड नहीं है। 

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा यूनिफार्म सिविल कोड  के लिए एक जरूरत बताए जाने के बाद इस पर धरातल पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। कोर्ट के मुताबिक यूनिफार्म सिविल कोड की जरूरत है ताकि आधुनिक भारत के युवा विभिन्न निजी कानूनों के चलते झगड़ों में न फंसे रहें। यह पहला मौका नहीं है कि कोर्ट में यूनिफार्म सिविल कोड  को लाने का सुझाव दिया है, इससे पूर्व सुप्रीमकोर्ट ने भी यूनिफार्म सिविल कोड को लाने के लिए जोर दिया था और यह कहा था कि संविधान को बनाने वाले इसके संस्थापक पिताओं ने उ मीद की थी कि देश इस तरह का एक कोड (संहिता) लाएगा। यूनिफार्म सिविल कोड पर सुप्रीमकोर्ट ने निरंतर ही अवलोकन किया। यूनिफार्म सिविल कोड की उत्पत्ति ब्रिटिश सरकार के दौरान ही उत्पन्न हुई ।

ब्रिटिश सरकार ने 1835 में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की जरूरत पर बल दिया। इसने विशेष रूप से सुझाया कि ऐसी संहिताकरण के बाहर हिन्दुओं तथा मुसलमानों के निजी कानून रहे। 1985 में शाह बानो मामले में सुप्रीमकोर्ट ने व्या या की कि यूनिफार्म सिविल कोड  देश को एक करके रखेगा। 1995 में अदालत ने सरकार को देश में संविधान के अनुच्छेद 44 को लागू करने का निर्देश दिया। 2019 में भारत में तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के बाद यूनिफार्म सिविल कोड पर बहस धरातल पर एक बार फिर आ गई। तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद को इस वर्ष बताया कि सरकार यूनिफार्म सिविल कोड को लाने के लिए प्रतिबद्ध है। 

इसका सामाजिक रुख देखें तो यूनिफार्म सिविल कोड की संहिताकरण के साथ कमजोर तथा दलित वर्ग के साथ निष्पक्षता से व्यवहार किया जाए। वे निरंतर ही दमन का शिकार होते हैं और उनसे उचित व्यवहार नहीं किया जाता। भारत में विविधता के कारण एक समान नियमों को लाना आसान नहीं। कई समुदाय तथा धर्म विशेषकर मुसलमानों को डर है कि यूनिफार्म सिविल कोड  उनसे उनकी धर्म के अधिकार की स्वतंत्रता छीन लेगा। यूनिफार्म सिविल कोड को लागू करना एक गंभीर बात है। विशेषकर भारत जैसे देश के लिए।-कल्याणी शंकर
 

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